Tuesday 19 December 2017

जयपुर नगर के संस्थापक महाराजा सवाई जयसिंह - खगोलशास्त्र (एस्ट्रोनामी) के विद्वान

मेरी जीवन-गाथा (39)
ठा. ओंकारसिंह, आई. ए. एस. (से. नि.)


जयपुर नगर के संस्थापक महाराजा सवाई जयसिंह - खगोलशास्त्र (एस्ट्रोनामी) के विद्वान

जयपुर में कार्यरत रहते हुए मुझे कई प्रकार के अनुभव हुए। मैंने अपनी जिज्ञासा की प्रवृत्ति से जयपुर भी मुझे कई अनोखी जानकारियाँ प्राप्त हुई, इनमें से एक दो उदाहरण देना समीचीन होगा। एक प्रकरण था जिसमें मकान मालिक और किरायेदार के बीच विवाद था। मकान मालिक किरायेदार से मकान खाली कराना चाहता था। मकान मालिक का नाम डी-सिल्वा था।


उसके वकील से मैंने पूछा तो उसने बताया कि इस परिवार के पूर्वज को जयपुर नगर के संस्थापक महाराजा सवाई जयसिंह (द्वितीय) ने गोवा से बुलाया था। वहाँ से महाराजा ने एक पुर्तगाली खगोलशास्त्री (एस्ट्रोनॉमर) को बुलाया था जिसे महाराजा यूरोप भेजकर वहाँ के ज्योतिष संबंधी साहित्य और यंत्रों को ले आवें। महाराजा स्वयं खगोलशास्त्र (एस्ट्रोनामी) के विद्वान थे और जयपुर, दिल्ली, उज्जैन और बनारस में जंतर-मंतर बनवा रहे थे।

गोवा से उन्होंने एक प्रसिद्ध पुर्तगाली डॉक्टर को भी बुलाया था, उसी के वंशज श्री डी. सिल्वा थे। महाराजा ने उनके पूर्वज को एक हवेली जोरावरसिंह गेट के पास इनायत की थी। इसी में डी. सिल्वा परिवार रहता था और हवेली के कुछ हिस्सों में किरायेदार भी रहते थे। मैंने अनुमान लगाया कि डी. सिल्वा गोरे रंग के यूरोपियन जैसे होंगे परन्तु जब वे अपने बयान दर्ज करवाने अदालत में पेश हुए तो मुझे देखकर आश्चर्य हुआ कि वे पाजामा कोट पहने हुए थे और सिर पर साफा बांधे हुए थे, उनका रंग भी गोरा न होकर गेहुंआ था।

बयानों में उनकी भाषा हिन्दी थी और उसमें ढूंढाड़ी के कई शब्द थे। उनके मुकदमें का निष्पादन उनके पक्ष में हुआ। (उनकी विशाल हवेली हकोमजी की हवेली कहलाती थी, अब उसे गिराकर सिनेमा हॉल बना दिया गया है जिसका नाम 'सम्राट टॉकीज' है।)


बाद में मैंने महाराजा सवाई जयसिंह द्वितीय से संबंधित इतिहास में रुचि ली और इस बहुमुखी महान नरेश के महत्वपूर्ण कार्यों व उपलब्धियों का अध्ययन किया।

No comments

Post a Comment