Wednesday 15 July 2015

रायसिंह बिकानेर

                  रायसिंह जी बिकानेर


रायसिंह बिकानेर उनके इस कारनामे की पुरे हिन्दुस्थान में चर्चा हुई थी । उन्होंने अहमदाबाद के नबाब अहमदशाह को ज़िंदा पकड़ लिया था । उनकी इस वीरता से खुस होकर  महाराणा उदयसिंह ने प्रताप की बहन (जसमादे ) का विवाह  उनके साथ किया।हालाँकि वे अकबर की तरफ से लड़े थे, उम्र में भी बड़े थे, लेकिन उन दिंनो वीरता देखी जाती थी ।

इस के पूर्व अटक की महान विजय में मानसिंह जी आमेर व् रायसिंह जी दोनों ससुरों जँवाई अपना कमाल दिखा चुके थे । इसी से खुस होकर अहमदाबाद विजय का ज़िम्मा उन्हें सौंपा था, जो उन्होंने इस बहादुरी से निभाया जिसकी इतिहास में मिसाल नहीं है ।

मुझे ऐसा लगता है, महाराणा प्रताप ने उनके एक कारनामे को दोहराने का प्रयास किया था । रायसिंह बिकानेर ने एक झटके मे हाथी का सिर दाँत सहित काट दिया था ।इस कारनामे को हल्दीघाटी में राणा प्रताप ने दोहराने का प्रयास किया था, मानसिंह के हाथी पर अपना घोडा कूदाया था जिसमे वे विफल हो गए और इस प्रयास में उनका घोडा जख्मी हो गया और वे खुद युद्ध से बहार हो गए ।

अहमदावाद विजय ना होती तो चितोड़ को हमेसा अहमदावाद से खतरा था, पूर्व में चितोड़ वह सब भोग चूका था । अटक की विजय न होती तो पश्चिम से भारत और तत्कालिन हिन्दुत्व पर बराबर प्रहार हो रहे थे । अटक के प्रयास में बीरबल मारा जा चूका था, टोडरमल असफल हो चुका था, हमे इतिहास को समग्र दृश्टिकोण से देखना चाहिए।

साभार - नाथुसिंह शेखावत ।

Monday 13 July 2015

गढ़ सिवाणा ।

गढ़ सिवाणा के दोहें :-

मरूधर म्हारे देश रा, कांई करूँ बखाण।
बाढ़ाणे रो सुरग हैं, सांची गढ़ सिंवियाण॥

परमारे गढ़ रोपियों रक्षा करै चहुँआण !
छप्पन भाखर में बसे म्हारों गढ़ सिंवियाण !!

दुरग री स्वामीभगति, सुं कुण है अणजाण !
करमभूमि उण वीर री, सुंदर गढ़ सिंवियाण !!

गढ़ां गढ़ां सूं सोवणो, शूर सती री खाण।
चहुँकूंटां चावौं घणों, सांची गढ सिंवियाण॥

कटे माथ अ'र धड लडै, राखण मायड़ मान।
कला कमध वाळी कथा, गावै गढ सिंवियाण॥

अलाद्दीन सूं आथड्यौ, तीर खाग जो तांण।
शीतलदे चहुआण री, शाख भरे सिंवियाण॥

सगळां सिर नामे झुक्या, (जद) अकबर मुगल
महान।
चंद्रसेन तद नी नम्यौ, (वा) साख भरे सिंवियाण॥

रक्षा खातर मात रे, घण खेल्या घमसाण।
कटिया पण झूकियां नही रंग रे गढ़ सिंवियाण॥

संतां रो तप देखने, भयो अचंभित भांण।
मंछगुरू मठ जिण तप्या, सरस भुमि सिंवियाण॥

भाखर पर भय भंजणी, हाजर है हिंगळाज।
गढ उंचा सवियाण पर, रखै भगत री लाज॥

प्रमाण अलेखूं पुख्ता है ।

                                                 प्रमाण अलेखूं पुख्ता है ।


प्रमाण अलेखूं पुख्ता है, इतिहास जिकण रो साखी है।
इण आजादी री इज्जत नैं, म्हे राजस्थान्यां राखी है।।

म्हैं इतिहासां में बांच्योड़ी, साचकली बात बताऊं हूं।
घटना दर घटना भारत रै, गौरव री गाथ सुणाऊं हूं।

इण गौरवगाथा रै पानां में, सोनलिया आखर म्हारा है।
कटतोड़ा माथा, धड़ लड़ता, बख्तर अर पाखर म्हारा है।

धारां धंसतोड़ां, भड़बंकां, मर कर राखी है आजादी।
सिंदूर, दूध अर राखी री, कीमत दे राखी आजादी।

म्हे रीझ्या सिंधू रागां पर, खागां री खनकां साखी है।
इण आजादी री इज्जत नैं, म्हे राजस्थान्यां राखी है।।

पदमनी

पदमनी


गढ़ बंका गेंदल बिछे, अमल बंटे अप्रमाण !
घर घर प्द्मण निपजे, अइयो घर जेसाण !!

इस दोहे मे कही ना कही रानी पदमनी का जन्म स्थान जैसलमेर था ऐसा बताने कि कोशिश है ।
सत्य क्या है कोई नही जानता !!