Tuesday 30 June 2020

लाओत्से कि न्याय व्यवस्था ओर लिहित्जू

लाओत्से कि न्याय व्यवस्था ओर लिहित्जू




लाओत्से कहता है मै तो उस धर्म कि बात करता हूँ कि अन्याय ही ना हो।
अगर अन्याय नहीं होगा तो न्याय कि जरूरत ही नहीं पड़ेगी ।
चीन मे एक महान दार्शनिक हुवे है लाओत्से, लाओत्से का एक अनुयायी हुआ था लिहित्जू, लिहित्जू एक राज्य मे न्याय मंत्री चुन लिए गए, पहला ही मुकदमा आया जिस मे नगर के सबसे धनी आदमी के यहाँ चोरी हो गयी, चोरी बड़ी थी ।
लिहित्जू ने मुकदमा सुना ओर जिसने चोरी कि थी उसे छः महीने कि सजा ओर जिसके घर चोरी हुई थी उसे छः महीने कि सजा सुना दी ।
अमीर तो बोंखलाह गया, उसने कहा लिहित्जू तुम पागल तो नहीं हो, न्याय कि कुछ बुद्धि भी है, कभी सुना है ऐसा अन्याय, ओर अभी पहला ही दिन है तुम्हारा न्यायाधीश के पद पर ओर यह तुम क्या कर रहे हो, सम्राट से शिकायत करूंगा कि तुम मजाक कर रहे हो, छः महीने कि सजा मुझे भी जिसके यहाँ चोरी हुई है ।
लिहित्जू ने कहा तुमने इतना पैसा नगर मे इकट्ठा कर लिया कि चोर तुम्हारी वजह से पैदा होंगे । तुम जब तक तुम हो चोरी नहीं रुक सकती, ओर जुरमी तुम पहले हो, यह तो नंबर दो है, ना तुम इतना धन इकट्ठा करते ना यह चोरी करता, इसकी चोरी मे तुम्हारा हाथ है तुम सांझेदार हो ।
इसलिए मै तो जड़ से ही अन्याय मिटाऊँगा, अन्याय मिटाने को हम न्याय कहते है लिहित्जू ने कहा ।
लिहित्जू को सम्राट के सामने पेश होना पड़ा, सम्राट ने कहा ऐसा न्याय हमने भी कभी नहीं सुना, मै तुम्हें न्याय मंत्री नहीं रख सकता नहीं तो किसी दिन तुम मुझे भी सजा सुना दोगे, सारी व्यवस्था कि बात है ओर यह साहूकार जुरमी है तो मै कितनी देर जुर्म से बाहर रहूँगा ।
लिहित्जू ने कहा कि महाराज यही आपको स्मरण दिलाने के लिए यह सजा दी है, हम सब अपराधी है, बड़े अपराधी बच जाते है, छोटे अपराधी फंस जाते है, बड़े अपराधियों के हाथ मे सारी व्यवस्था है इसलिए बड़े अपराधियों के विपरीत जो चलता है वह फंस जाता है ।
लिहित्जू ने कहा मै तो न्याय ऐसे ही करूंगा, अन्यथा बाहर हो जाऊ, क्योंकि जिसको आप न्याय कहते है मेरे गुरु ने सिखाया है वह न्याय नहीं है ।