Sunday 23 April 2017

नोख परगने का सांस्कृतिक इतिवृत

नोख परगने का सांस्कृतिक इतिवृत
डा. आईदानसिंह भाटी


जैसलमेर रियासत का नोख एक परगने का केन्द्रीय ठिकाना था|  जैसलमेर रियासत में आने से पहले यह पूगल रियासत का एक ठिकाना था | जब अंग्रेजों से राजपूताने के शासकों की संधियाँ हो रही थी, उस समय पूगल पर बीकानेर रियासत का अधिकार हो चुका और बरसलपुर तथा बीकमपुर के जागीरदार अपने आप में स्वतंत्र थे |

नोख उस समय बीकमपुर के साथ था और जसहड़ भाटियों की जागीर था | जब जैसलमेर रियासत से इन दोनों जागीरों की संधि हुई, तब नोख में जैसलमेर रियासत का हाकिम बैठने लगा, जो बरसलपुर तथा बीकमपुर के जागीरदारों पर रियासत की तरफ से नजर रखता था | अंग्रेजों से हुई इस संधि के बाद ठिकाना नोख खालसा कर दिया गया और यहाँ कचहरी स्थापित हुई | जसहड़ो की तब से केवल जमीदारी रह गई | इसके प्रमाण महता अजीतसिंघ लिखित जुयोग्राफिया राज जैसलमेर में इस तरह दर्ज है –

परगनो नोख
ग्राम नोख जमीदार जसोड़ भाटी पेज –४३

यहाँ यह उल्लेखनीय है कि नोख में पश्चिमी दिशा में भुणकमल भाटियों की जमींदारी थी | नोख में सन. १८६८ के आसपास बरसिंग भाटियों का आगमन हुआ | बीकमपुर ठिकाने का आपसी कलह इसका कारण था | नोख में भाटियों की इन तीन शाखाओं के अतिरिक्त पडिहार, मांगलिया और दहिया राजपूत संबंधों के कारण आकर बसे | (दूसरी सामाजिकता का वर्णन आगे –फिर कभी )

मुहता नैणसी की ख्यात के दूसरे भाग में भी इस गाँव की ऐतिहासिक जानकारी मिलती है जो इस प्रकार है –
राजपूतों और दूसरे लोगों के बंट के गाँव—
जसहड़ां रै –गाँव नोख | कोहर बीस |
यहाँ यह उल्लेखनीय है कि आज भी गाँव बस्ती जसहड़ां के साथ होने के कारण पंचायती राज में भी इनका वर्चस्व रहता आया है | इन दिनों  जसहड़ां में पाटवी हरिसिंह के बेटे मेघसिंह गाँव के सरपंच है |

विक्रम स. १९९६ के अकाल के समय नोख में जैसलमेर रियासत की तरफ से अकाल राहत के काम से कोट का निर्माण हुआ , जिसमे पहले तहसील, थाना, स्कूल और टिड्डी प्रतिरक्षा विभाग चलता था |
(नोख अंचल का सांस्कृतिक इतिवृत का अंश )

Sunday 9 April 2017

रावत रिङमल



रिङमल अपनी नवविवाहिता राणी को छोङकर ईडर की चाकरी मेँ चलेँ गये किसी कारणवश बारह साल तक घर नहीँ आ सके,
तब राणिसाँ ने रावत जी को बुलावा कागद भेजा रावत जी की राणीसाँ को लगा की ईडर की राणियाँ रावत जी से प्रेम करने लगी है !
-ईङरगढ री राणीयाँ आपो कुलरो ल्याँ थाँरे देस म्हाँरो सायबो जल्दी मोकल दयाँ !

तब ईङर की राणियोँ ने वापिस कागद भेजा की ईडरगढ की चाकरी मेँ रिङमल बारह साखोँ के हैँ आप किस रिङमल को बुलाना चाहती हैँ !
-ईडर आमा आमली ईडर दाङम दाख ईडरगढ री चाकरी रिङमल बारह साख !

तब रावतजी की राणीसा ने लिखा
- काका ज्याँ रा कूँपदे भाई भारमल, घोङा ज्याँरा नवलखाँ ओ रावतिया रिङमल !
तब ईडरगढ की राणियो ने रावतजी को राणी का सन्देश दिखायाँ और सम्मान के साथ ईडर से विदा किया !

रावत रिङमल की जागीर खावङा कच्छ गुजरात थी कई मत हैँ की रावत रिङमल ईडर के दिवान थे सोढी रानी और रावत रिङमल के दोहे जग प्रसिध्द है !!

Friday 7 April 2017

चुरु चाली ठाकरां

चुरु चाली ठाकरां


बहुत सी घटनाये कहावते बन जाती हैं। 
"चुरू चली ठाकरां बाजनते ढोलां" 
इस से निकम्मे लोगों को नसीहत दी जाती है। 
शासक विलासी व गुमास्ता जब घर भर ने में लग जाये तो दासता सामने दिखती है.

कांदा खाया कामधजां, घी खायो गोलां !
चुरू चाली ठाकरां , बाजतां ढोला  !!

राजस्थानी भाषा व्यंजना

राजस्थानी भाषा में शब्दों की व्यंजना बहुत ही सुन्दर है !


यहाँ के वीर रण में पीठ नही दिखाते,
यहाँ की ललनाये भी पीठ नही दिखाती,
जहाँ जरूरत पड़े अपूठी फिरती हैं,
"किंकर फिरूं रै अपूठी, राणाजी म्हाने आ बदनामी लागे मिट्ठी "
पीठ दिखाना और अपुठी फिरने में बहुत झीना सा अंतर है।
यहाँ गाली दी नही जाती पर गाल गाई जाती है "
काम से खोटी होने व इश्वर ने किसी के साथ खोटी करी में अंतर है,
आडो देणो व आडो ओढलणो में फर्क है,
आडी देणी अर आड़ी घालणी मैं भी अंतर है,
हाथ फेरणे अर माथे हाथ फेरणे में भी अंतर है,
हमारे यहाँ कटकारा नही दिया जाता पर सिद्ध सारु कहा जाता है !

साभार- Madansingh Shekhawat Jhajhar