नोख परगने का सांस्कृतिक इतिवृत
डा. आईदानसिंह भाटी
जैसलमेर रियासत का नोख एक परगने का केन्द्रीय ठिकाना था| जैसलमेर रियासत में आने से पहले यह पूगल रियासत का एक ठिकाना था | जब अंग्रेजों से राजपूताने के शासकों की संधियाँ हो रही थी, उस समय पूगल पर बीकानेर रियासत का अधिकार हो चुका और बरसलपुर तथा बीकमपुर के जागीरदार अपने आप में स्वतंत्र थे |
नोख उस समय बीकमपुर के साथ था और जसहड़ भाटियों की जागीर था | जब जैसलमेर रियासत से इन दोनों जागीरों की संधि हुई, तब नोख में जैसलमेर रियासत का हाकिम बैठने लगा, जो बरसलपुर तथा बीकमपुर के जागीरदारों पर रियासत की तरफ से नजर रखता था | अंग्रेजों से हुई इस संधि के बाद ठिकाना नोख खालसा कर दिया गया और यहाँ कचहरी स्थापित हुई | जसहड़ो की तब से केवल जमीदारी रह गई | इसके प्रमाण महता अजीतसिंघ लिखित जुयोग्राफिया राज जैसलमेर में इस तरह दर्ज है –
परगनो नोख
ग्राम नोख जमीदार जसोड़ भाटी पेज –४३
यहाँ यह उल्लेखनीय है कि नोख में पश्चिमी दिशा में भुणकमल भाटियों की जमींदारी थी | नोख में सन. १८६८ के आसपास बरसिंग भाटियों का आगमन हुआ | बीकमपुर ठिकाने का आपसी कलह इसका कारण था | नोख में भाटियों की इन तीन शाखाओं के अतिरिक्त पडिहार, मांगलिया और दहिया राजपूत संबंधों के कारण आकर बसे | (दूसरी सामाजिकता का वर्णन आगे –फिर कभी )
मुहता नैणसी की ख्यात के दूसरे भाग में भी इस गाँव की ऐतिहासिक जानकारी मिलती है जो इस प्रकार है –
राजपूतों और दूसरे लोगों के बंट के गाँव—
जसहड़ां रै –गाँव नोख | कोहर बीस |
यहाँ यह उल्लेखनीय है कि आज भी गाँव बस्ती जसहड़ां के साथ होने के कारण पंचायती राज में भी इनका वर्चस्व रहता आया है | इन दिनों जसहड़ां में पाटवी हरिसिंह के बेटे मेघसिंह गाँव के सरपंच है |
विक्रम स. १९९६ के अकाल के समय नोख में जैसलमेर रियासत की तरफ से अकाल राहत के काम से कोट का निर्माण हुआ , जिसमे पहले तहसील, थाना, स्कूल और टिड्डी प्रतिरक्षा विभाग चलता था |
(नोख अंचल का सांस्कृतिक इतिवृत का अंश )
डा. आईदानसिंह भाटी
जैसलमेर रियासत का नोख एक परगने का केन्द्रीय ठिकाना था| जैसलमेर रियासत में आने से पहले यह पूगल रियासत का एक ठिकाना था | जब अंग्रेजों से राजपूताने के शासकों की संधियाँ हो रही थी, उस समय पूगल पर बीकानेर रियासत का अधिकार हो चुका और बरसलपुर तथा बीकमपुर के जागीरदार अपने आप में स्वतंत्र थे |
नोख उस समय बीकमपुर के साथ था और जसहड़ भाटियों की जागीर था | जब जैसलमेर रियासत से इन दोनों जागीरों की संधि हुई, तब नोख में जैसलमेर रियासत का हाकिम बैठने लगा, जो बरसलपुर तथा बीकमपुर के जागीरदारों पर रियासत की तरफ से नजर रखता था | अंग्रेजों से हुई इस संधि के बाद ठिकाना नोख खालसा कर दिया गया और यहाँ कचहरी स्थापित हुई | जसहड़ो की तब से केवल जमीदारी रह गई | इसके प्रमाण महता अजीतसिंघ लिखित जुयोग्राफिया राज जैसलमेर में इस तरह दर्ज है –
परगनो नोख
ग्राम नोख जमीदार जसोड़ भाटी पेज –४३
यहाँ यह उल्लेखनीय है कि नोख में पश्चिमी दिशा में भुणकमल भाटियों की जमींदारी थी | नोख में सन. १८६८ के आसपास बरसिंग भाटियों का आगमन हुआ | बीकमपुर ठिकाने का आपसी कलह इसका कारण था | नोख में भाटियों की इन तीन शाखाओं के अतिरिक्त पडिहार, मांगलिया और दहिया राजपूत संबंधों के कारण आकर बसे | (दूसरी सामाजिकता का वर्णन आगे –फिर कभी )
मुहता नैणसी की ख्यात के दूसरे भाग में भी इस गाँव की ऐतिहासिक जानकारी मिलती है जो इस प्रकार है –
राजपूतों और दूसरे लोगों के बंट के गाँव—
जसहड़ां रै –गाँव नोख | कोहर बीस |
यहाँ यह उल्लेखनीय है कि आज भी गाँव बस्ती जसहड़ां के साथ होने के कारण पंचायती राज में भी इनका वर्चस्व रहता आया है | इन दिनों जसहड़ां में पाटवी हरिसिंह के बेटे मेघसिंह गाँव के सरपंच है |
विक्रम स. १९९६ के अकाल के समय नोख में जैसलमेर रियासत की तरफ से अकाल राहत के काम से कोट का निर्माण हुआ , जिसमे पहले तहसील, थाना, स्कूल और टिड्डी प्रतिरक्षा विभाग चलता था |
(नोख अंचल का सांस्कृतिक इतिवृत का अंश )
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