रिङमल अपनी नवविवाहिता राणी को छोङकर ईडर की चाकरी मेँ चलेँ गये किसी कारणवश बारह साल तक घर नहीँ आ सके,
तब राणिसाँ ने रावत जी को बुलावा कागद भेजा रावत जी की राणीसाँ को लगा की ईडर की राणियाँ रावत जी से प्रेम करने लगी है !
तब राणिसाँ ने रावत जी को बुलावा कागद भेजा रावत जी की राणीसाँ को लगा की ईडर की राणियाँ रावत जी से प्रेम करने लगी है !
-ईङरगढ री राणीयाँ आपो कुलरो ल्याँ थाँरे देस म्हाँरो सायबो जल्दी मोकल दयाँ !
तब ईङर की राणियोँ ने वापिस कागद भेजा की ईडरगढ की चाकरी मेँ रिङमल बारह साखोँ के हैँ आप किस रिङमल को बुलाना चाहती हैँ !
-ईडर आमा आमली ईडर दाङम दाख ईडरगढ री चाकरी रिङमल बारह साख !
तब रावतजी की राणीसा ने लिखा
- काका ज्याँ रा कूँपदे भाई भारमल, घोङा ज्याँरा नवलखाँ ओ रावतिया रिङमल !
तब ईडरगढ की राणियो ने रावतजी को राणी का सन्देश दिखायाँ और सम्मान के साथ ईडर से विदा किया !
- काका ज्याँ रा कूँपदे भाई भारमल, घोङा ज्याँरा नवलखाँ ओ रावतिया रिङमल !
तब ईडरगढ की राणियो ने रावतजी को राणी का सन्देश दिखायाँ और सम्मान के साथ ईडर से विदा किया !
रावत रिङमल की जागीर खावङा कच्छ गुजरात थी कई मत हैँ की रावत रिङमल ईडर के दिवान थे सोढी रानी और रावत रिङमल के दोहे जग प्रसिध्द है !!
No comments
Post a Comment