Wednesday 29 November 2017

राजपूत क्षत्रिय शाही राजवंश - राजकुमार सुखपाल शाही (नवासाशाह) 1008 ई.

राजपूत क्षत्रिय शाही राजवंश - राजकुमार सुखपाल शाही (नवासाशाह) 1008 ई.



उत्बी, गर्दीजी, फरिश्ता, निजामुद्दीन अहमद बदायूनी, अल्बरूनी के वर्णनों के आधार पर यही समझ में आता है कि सुखपाल राजा आनन्दपाल का पुत्र था । उसने एक रणनीति के अनुसार इस्लाम अपना कर अपना नाम नवासाशाह रखा और महमूद गजनवी ने उसे मुल्तान सिंध का सूबेदार बनाया था ।

जब महमूद गजनवी इलक खां के विद्रोह को दबाने में व्यस्त हुआ तो सुखपाल ने जिसने अपनी शक्ति संगठन बना लिया था, उसने विद्रोह कर दिया और उसने हिन्दू धर्म पुनः अपना लिया। उसने महमूद के अधिकारियों को भी बाहर खदेड़ दिया ।

जब महमूद को इस बात की सूचना मिली तो वह सुखपाल के विरूद्ध रवाना हुआ और सुखपाल ने खूब संघर्ष किया परन्तु वह हार कर कशनादे या कश्मीर के पहाड़ों की ओर भागा परन्तु जब तक वह सुरक्षित जगह पहुंचता उससे पहले ही बन्दी बना लिया गया ।
उसे दण्डस्वरूप 4 लाख दिरहम देने पड़े और उसे बन्दी गृह में डाल दिया गया । इतिहासकार उत्बी के अनुसार उसे केवल राजधानी से निर्वासित ही किया गया था ।

जो भी हो सुखपाल ने अपने देश की स्वतन्त्रता और अपने देश के और पूर्वजों के धर्म के प्रति त्याग और संघर्ष का रास्ता अपनाया ना कि गुलामी में सुख आराम का रास्ता जो भारत संतान को प्रेरणा देता रहेगा ।

महमूद गजनवी का राजा आनन्दपाल शाही पर आक्रमण, दिसम्बर 1008 ई.-

महमूद गजनी से चल कर सिंधु तट पर आ पहुंचा । फरिश्ता लिखता है कि आनन्द पाल की सहायता में उज्जैन के परमार, कालिन्जर के चन्देल, कन्नौज के प्रतिहार दिल्ली के तोमर और अजमेर के चौहान राजपूतों ने सेनाएं भेजी ।
सम्भव हो कि कश्मीर के राजा ने भी सेना भेजी जिसका नाम फरिश्ता ने नहीं लिखा है। फरिश्ता ने लिखा कि हिन्दू नारियों ने अपने सोना, चान्दी और जवाहरात बेच कर सहायता दी।
1962 ई. में भारत पर जब चीन ने आक्रमण किया था तब भी पूरे देश की महिलाओं ने भारत सरकार को अपने स्वर्ण आभूषण से सहायता देकर इतिहास को दोहराया था ।
बीकानेर के महाराजा करणी सिंह राठौड़ ने भी भारत सरकार को इस अवसर पर सोना दिया था ।

खोखर राजपूत -
आनन्दपाल की सहायतार्थ पंजाब के 30 हजार खोखर राजपूत आए।

युद्ध भूमि -

इतिहासकार इस युद्ध भूमि को सिन्ध नदी के किनारे या पेशावर में या वैहिन्द में या वैहिन्द में उन्द या उन्द और पेशावर के मध्य आदि स्थानों को बताते हैं ।
ऐसा भी इतिहासज्ञ कहते हैं कि युद्ध सिंधु नदी के पूर्वी तट पर अटक और हजरों के बीच छछ नामक स्थान पर लड़ा गया होगा । राजा आनन्दपाल अपने पुत्र त्रिलोचनपाल के साथ रणभूमि पहुंचे । 40 दिन दोनों सेनाएं आमने-सामने पड़ी रही। मुसलमानों ने अपने चारों और खाइयां खोदी ।

महमूद ने अपने 6 हजार धनुर्धरों को आक्रमण का आदेश दिया। परन्तु वीर बहादुर खोखर राजपूतों ने उनके धावे को विफल करते हुए 5 हजार मुसलमानों को मौत के घाट उतार दिया ।
परन्तु भारत के भाग्य ने पलटा खाया और राजा आनन्दपाल के हाथी के नफथे की चोट लगी जिससे वह घायल और बैचेन होकर रणभूमि से निकल भागा । राजा को इस हाल में देख भारतीय सेना ने उसे पलायन करने का समझ लिया और इस कारण सेना भी युद्ध से निकल भागी ।

6 हजार अरबी, 10 हजार तुर्क, अफगान और खिलजी मुसलमानों ने भारतीय सेना का दिन-रात पीछा किया और 20 हजार भारतीयों को मार डाला । महमूद को धन सम्पत्ति के अलावा 30 हाथी प्राप्त हुए।

भीमनगर पर आक्रमण -

महमूद ने भी भारतीय सेना का पीछा किया और चारों तरफ से पानी से घीरे भीमनगर दुर्ग को जा घेरा। भीम नगर की सेना तो आनन्दपाल की सहायता में गई हुई थी पीछे दुर्ग में केवल ब्राह्मण ही थे। दुर्ग रक्षकों ने तीन दिन तक तो प्रतिरोध किया और फिर समर्पण कर दिया । यहां महमूद को अपार और अथाह धन सम्पति के अलावा एक चांदी का बना मकान प्राप्त हुआ ।
भीमनगर वर्तमान में नगर कोट या कांगड़ा या कोट कागड़ा हो सकता है । पाकिस्तान की हिस्ट्री कॉन्फेन्स 1955 ई. में बताया गया कि भीमनगर अटक जिले में तरबेला के समीप लंगरकोट या नगरकोट नामक दुर्ग के खण्डहर हो सकते हैं।

जून 1009 ई. में महमूद गजनवी लौट गया जिसके बाद राजा आनन्दपाल ने अपनी राजधानी नन्दना में आकर आगे के संघर्ष की तैयारी शुरू की परन्तु 1012 ई. के लगभग उसकी मृत्यु हो गई और उसका पुत्र त्रिलोचनपाल राजा बना ।

राजपूत क्षत्रिय शाही राजवंश - राजा आनंदपाल शाही -1002 ई.

राजपूत क्षत्रिय शाही राजवंश - राजा आनंदपाल शाही -1002 ई.

राजपूत क्षत्रिय शाही राजवंश (काबुल और जाबुल के राज्य)



आज हम राजपूत क्षत्रिय शाही राजवंश के राजा आनंदपाल शाही -1002 ई. के बारे में जानकारी दे रहे है इस विषय पर ज्यादा जानकारी हो तो जरूर शेयर करें !!

राजा आनंदपाल शाही -1002 ई.
इस समय राजधानी ओहिन्द से हट कर झेलम के तट पर नन्दना हुई । 1006 ई. में महमूद गजनवी ने मुल्तान के करामाती धर्म मानने वाले अबुल दाउद पर अभियान किया । क्योंकि सिंधु नदी में बाढ़ आई हुई थी इसलिये उसने आनन्दपाल से रास्ता देने की अनुमति मांगी ।
आनन्दपाल ने उसे अनुमति नहीं दी इस कारण महमूद ने आनन्दपाल पर आक्रमण कर दिया । आनन्दपाल युद्ध करने हेतु अपनी राजधानी छोड़ आगे बढ़ा और सिंधु नदी के तट पर दोनों में भीषण युद्ध हुआ। इस युद्ध में आनन्दपाल हार गया और वह भावी संघर्ष के लिए तैयार होने कश्मीर की तरफ चला गया ।

Tuesday 28 November 2017

राजपूत क्षत्रिय शाही राजवंश - राजा जयपाल शाही

राजपूत क्षत्रिय शाही राजवंश (काबुल और जाबुल के राज्य)


आज हम राजपूत क्षत्रिय शाही राजवंश के राजा जयपाल शाही के बारे में जानकारी दे रहे है इस विषय पर ज्यादा जानकारी हो तो जरूर शेयर करें !!

राजा जयपाल शाही :-

962-63 ई. में अल्प्तगीन के सेनापती सुबुक्तगीन ने मुल्तान और लमघान सिंघ पर आक्रमण किया जिसका सामना उदभाण्डपुर के राजा जयपाल शाही ने किया । छम्ब के साहिल्यवर्मन के शिलालेख में वर्णित है कि तुकों की सेना को रोक दिया गया था ।

इसी वर्ष अलतगीन की गजनी में मृत्यु हो गई। उसका पुत्र इसहाक जब सुल्तान बना तो पूर्व के अपदस्थ सुल्तान लवीक ने राजा जयपाल की सहायता से इसहाक को भगा दिया और लवीक गजनी
का सुल्तान बन गया । परन्तु कुछ समय बाद इसहाक ने लवीक को फिर हटा दिया और इसहाक सुल्तान बन गया ।

इसहाक की मृत्यु 966 ई. में हुई और फिर दस वर्ष इसहाक के सेनापति बल्तगीन ने 975 ई. तक शासन किया । उसके बाद पिरे नामक सुल्तान बना तो जनता ने पूर्व अपदस्थ सुल्तान लवीक को बुलाया ।

राजा जयपाल ने लवीक की सहायता में अपने पुत्र के साथ सेना भेजी परन्तु अलप्तगीन के दास सुबुक्तगीन ने उस सेना को हरा दिया । इस घटना के बाद पिरे को हटा कर 977 ई. में सुबुक्तगीन सुल्तान बना ।
इस समय उदभण्डपुर के शाही राजवंश की सीमा लामधान से चिनाब नदी तक फैली थी।

सुबुक्तगीन गजनवी का आक्रमण -

986-87 ई. में सुबुक्तगीन ने राजा जयपाल के राज्य के पहाड़ी दुर्गों पर अधिकार कर लिया । जयपाल ने गजनवी के विरूद्ध अभियान शुरू किया और वह लमधान और गजनी के बीच आ खड़ा हुआ ।
सुबुक्तगीन अपने पुत्र महमूद के साथ आया और दोनों और से युद्ध शुरू हुआ जो कई दिनों तक चला ।

अचानक भारी तूफान और बर्फबारी हुई जिसके कारण दोनों पक्षों में संधी हो गई। जब जयपाल गजनी के अधिकारी जो संधी की रकम लेने उसके साथ आए थे को लेकर अपनी राजधानी पहुंचा तो उसने संधी तोड़ कर अधिकारियों को बन्दी बना लिया ।

गजनी में जब यह समाचार पहुंचा तो सुबुक्तगीन सेना लेकर जयपाल के विरूद्ध चला और मार्ग के मंदिरों को तोड़ मस्जिदें बनवाई ।

जयपाल को जब यह ज्ञात हुआ तो वह भी ससैन्य चला और उसे आसपास के राजाओं ने भी सहायता दी। जयपाल के पास विशाल सेना हो गई। अब दोनों सेनाओं में घमासान युद्ध हुआ और शाम होते-होते भारतीय सेना हार गई। सुबुक्तगीन ने लमधान को गजनी राज्य में मिला लिया । इसके बाद 10 वर्ष तक गजनी के सुल्तानों ने राजा जयपाल पर कोई आक्रमण नहीं किया ।

महमूद गजनवी का आक्रमण (1001 ई.)

महमूद 15 हजार सेना लेकर पेशावर नगर के बाहर शिविर लगा कर युद्ध के लिए तैयार हुआ। राजा जयपाल भी 12 हजार घुड़सेना, 30 हजार पैदल और 300 हाथी लेकर आगे बढ़ा । जयपाल और सेना आने की प्रतीक्षा में ही था कि महमूद ने आक्रमण कर दिया ।
यह युद्ध दोपहर तक चला और भारतीय सेना पराजित हो गई और लगभग 5 हजार सैनिक काम आए और राजा जयपाल अपने परिवार में 15 लोगों सहित बन्दी बना लिया गया। महमूद अब शाही राजवंश की राजधानी ओहिन्द की तरफ बढ़ा क्योंकि वहां के लोगों ने समर्पण नहीं किया था और वे पहाड़ों और जंगलों में जाकर अवसर ढूंढ रहे थे।

महमूद ने राजधानी ओहिन्द पर अधिकार किया और गजनी लौट गया जहां जयपाल से 50 हाथी लेकर संधी हुई और उसे छोड़ दिया गया ।

उन दिनों भारत में यह मान्यता प्रबल थी कि जो राजा मुसलमानों द्वारा बन्दी बना दिया गया या दो बार पराजित हो चुका तो वह अपने को अपवित्र मान कर अपने पुत्र को राज्य दे देता था और स्वयं अग्नि में जल जाता था ।

मुसलमान इतिहासकार उत्बी, मुस्तौफी और फरिश्ता ने ऐसा लिखा है। इस कारण राजा जयपाल ने 1002 ई. में अपने पुत्र आनन्दपाल को राज्य सौंप दिया और स्वयं अग्नि प्रवेश कर गया ।

नोट:- छायाचित्र काल्पनिक है