हाड़ा राजवंश मूल पुरुष और मूल स्थान |
हाडौती मैं हाड़ा शाखा का लंबा राज्य-काल रहा है और हाड़ावो के दो बड़े राज्य और 12 कोटरियात (एक प्रकार के छोटे राज्य) रहे है। बूंदी नरेशो के सरक्षण मैं तीन महाकाव्य लिखे गये है जिसमें वँश भास्कर सुर्जन चरित्र प्रमुख है ।पर सभी मैं अलग भिन्नताएं दिखाई पड़ती है।
हम सभी इतिहासकारो पर भिन्न भिन्न चर्चा करेंगे |
1. कर्नल टॉड का वर्णन बड़वा गोविंदराम के राजग्रन्थ पर आधारित है। उसका सारांश इस प्रकार है कि वीसलदेव ( अजमेर का राजा ) के पुत्र अनुराज से हाड़ा शाखा की उतपति हुई। अनुराज को सीमावर्ती असीरगढ(हाशि ) नामक देश पर अधिकार था ।।
2.विरविनोद के कथन अनुसार के सार पर आधारित की सांभर के राजा सोमेश्वर के छोटे बेटे के उरथ की नोवी पीढ़ी मैं भोमचन्द्र हुआ ।उसका पुत्र भानुराज जुआ ।जिसका दूसरा नाम अस्थिपाल था ।उसके वँश मैं देव सिंह हुये जिनोने बूंदी मैं अपना राज्य स्थापित किया ।
3. वास्तव मे बूंदी के हाड़ा नाडोल के चोहान राजा आसराज के छोटे पुत्र और मणिक्यराज(माणिकराज) के वंसज है जैसा कि मुहणोत नेनसी की ख्यात ओर मेनाल से मिले हुये बम्बावदा के हाड़ा के वी.स. 1446 (ई.स. 1389) के शिलालेख से जान पड़ता है बूंदी के हाड़ा अपने मूल पुरूष हरराज से हाड़ा कहलाये।
4.राजपूत वंशावली मैं ठा. ईश्वर सिंह मडाढ़ के लिखितअनुसार चोहान वँश मैं भानुराज अस्थिपाल के नाम से प्रसीद्ध था। अस्थि को हिंदी मैं हड्डी या हाड़ भी कहते है इसलिये अस्थिपाल के वंसज हाड़ा कहलाये।
5.इनके अतिरिक्त लल्लूभाई देसाई ओर जगदीश सिंह गहलोत आदि ने भी हाड़ावो को नाडोल के उपरोक्त आसराज के पुत्र मणिक्यराज से वंसज होना बताया ।
6. ठा. रघुनाथसिंह शेखावत ने नाडोल के आसराज( द्वितीय) (वी.स. 1167-1172) के पुत्र भानकयराज से भिन्न लक्षमण के पौत्र मणिक्यराज से हाड़ा राजवंश का प्रादुभाव होना अनेक प्रमाणों से सिद्ध किया है। और शेखावत साहब ने विवेचना करते हुये वंशावली दी लिखा कि भांणवर्धन ( भानुराज या सभरान ) नाडोल के लक्ष्मण के पुत्र आसराज( अधिराज, अश्वपाल ) के पुत्र माणिकराव ( मणिक्यराज) का पुत्र था।इनके बाद कि वंशावली देते हुये
3. अस्थिपाल
4. चन्द्रकर्ण
5.लोकपाल
6. हम्मीर
7. जोधराव
8.कलिकर्ण
9.महामुग्ध
10. राव वाचा
11. रामचन्द्र
12. रेणसी
13.जेतराव
14.आसुपाल
15. विजयपाल
16. हरराज ( हाड़ा)
17. वांगा
18. राव देवा
उपरोक्त विश्लेषण का निष्कर्ष यह है कि नाडोल शाखा का अस्थिपाल (भांणवर्धन ) ही हाड़ा शाखा का प्रथम- पुरुष हुआ और नाडोल के निकट असी ( असीरगढ़ ,आसलपुर) दुर्ग ही हाड़ा वो का पाट स्थान रहा ।
मध्यकाल मैं जब से किलो की घेरा बन्दी करने प्रचलन चला तब से अपने युवकों को दुश्मन के ग्रास से बचाने हेतु किसी तरह खुपिया रास्ते से घेरे से बचाकर निकाल देते थे ।उनमें से कोई संतानो मैं योग्य हो जाता तो खोया राज्य वापस पुनः प्राप्त कर लेता था या नया राज्य बना लेता । इसी प्रकार हस्थीकुंडी हाड़ा वो का प्रथम राज्य कुतुबुद्दीन के आक्रमण करने पर राव चन्द (राम) ने रेणसी को घेराव से निकाल दिया । ओर 1253 मैं कुतुबुद्दीन ने हस्थीकुंडी पर आक्रमण करके सबको समूल परिवार के साथ सभी को मौत के घाट उतार दिया । ओर हाड़ा राज्य का अंत हो गया ।
उसके पीछे एक मात्र पुत्र रेणसी बच पाया । तब वहाँ के चोहान भीनमाल ओर सांचोर मैं जा बसे । रेणसी के जथे ने सांचोर के पास हाडेचा नामक कस्बे मैं पहला पड़ाव डाला। आज भी सांचोर मैं दो गांव हाड़ेचा, हाडेतर आज भी आबाद है ।
रेणसी जो चितोड़पति महाराणा का भांजा था वहाँ सुरक्षित पहुँचा दिया गया । चन्द्रावती था समस्त मरु प्रदेश मैं रेणसी के जथ्य को सुनहरा भविष्य द्रष्टिगोचर नही हुआ तो मेवाड़ जाना ठीक समजा।
रेणसी जब बड़ा हुआ तो उसने सबसे पहले भेसरोड गढ़ पर अधिकार किया, बाद मैं बम्बावदा पर अधिकार करके उसको राजधानी बनाया ।
आगे इनको पुत्रो ने मेनाल क्षेत्र पूरा जीत लिया।
Note- आगे बूंदी कैसे जीता अगली पोस्ट मैं।
By- मनोज सिंह हाड़ा गगचाना
By- मनोज सिंह हाड़ा गगचाना
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