साभार पुस्तक - राजा मानसिंह आमेर ( भूमिका )
आधुनिक इतिहासकारों ने राणा प्रताप व राजा मानसिंह को कट्टर शत्रुओं के रुप में प्रदर्शित किया है । इस प्रकार के प्रदर्शन के पिछे या तो उनकी स्वयं कि हठधर्मी कारण रही है अथवा इतिहास के सम्यक् ज्ञान का अभाव । राजा मानसिंह मुसलमानों के इस्लामीकरण की योजना को जहाँ विफल कर स्वधर्म रक्षा के प्रयत्न में लगे हुए थे, वही पर राणा प्रताप स्वतन्त्रता की रक्षा में संलग्न थे । यह दोनों ही कार्य उस समय की अनिवार्य आवश्यकताएँ थीं । इसलिए समस्त राजपूत...ों का ही नही समस्त जनता का भी समर्थन इन दोनों महापुरुषों के साथ था ।
इस तथ्य के प्रबल प्रमाण यह है कि राणा प्रताप व राजा मानसिंह के समकालीन समस्त कवियों ने इन दोनों वीरों की वीरता व महिमा का समान रुप से बखान किया है । आमेर के राजाओं व राणा प्रताप के बीच उत्पन्न कटुता का कारण वैचारिक भिन्नता नहीं थी । मेवाड़ के राणा उदयसिंह ने अपने जीवन काल में ही अपने छोटे पुत्र जगमाल को अपना उतराधिकारी घोषित कर दिया था, किन्तु राणा उदयसिंह की मृत्यु के बाद मेवाड़ के जागीरदारों ने जगमाल को राणा के रुप में स्वीकार नहीं किया व राणा प्रताप को शासक घोषित कर दिया । जगमाल ने उतराधिकार को प्राप्त करने के लिए अपने नजदीकी सम्बन्धी आमेर के राजा भगवन्तदास से मदद माँगी ।
आमेर के राजा ने न केवल जगमाल की मदद की बल्कि बादशाह अकबर से भी सहयोग दिलवाया । कुछ समय के संघर्ष के बाद जगमाल दाँताणी के युद्ध में मारा गया, तदोपरान्त आमेर के शासकों ने इस अध्याय को यहीं समाप्त कर दिया, किन्तु राणा प्रताप के मन में खटास समाप्त नहीं हूई, वही खटास हल्दीघाटी युद्ध का कारण बनी ।
आमेर के राजा ने न केवल जगमाल की मदद की बल्कि बादशाह अकबर से भी सहयोग दिलवाया । कुछ समय के संघर्ष के बाद जगमाल दाँताणी के युद्ध में मारा गया, तदोपरान्त आमेर के शासकों ने इस अध्याय को यहीं समाप्त कर दिया, किन्तु राणा प्रताप के मन में खटास समाप्त नहीं हूई, वही खटास हल्दीघाटी युद्ध का कारण बनी ।
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