राजस्थानी भाषा में शब्दों की व्यंजना बहुत ही सुन्दर है !
यहाँ के वीर रण में पीठ नही दिखाते,
यहाँ की ललनाये भी पीठ नही दिखाती,
जहाँ जरूरत पड़े अपूठी फिरती हैं,
"किंकर फिरूं रै अपूठी, राणाजी म्हाने आ बदनामी लागे मिट्ठी "
पीठ दिखाना और अपुठी फिरने में बहुत झीना सा अंतर है।
यहाँ की ललनाये भी पीठ नही दिखाती,
जहाँ जरूरत पड़े अपूठी फिरती हैं,
"किंकर फिरूं रै अपूठी, राणाजी म्हाने आ बदनामी लागे मिट्ठी "
पीठ दिखाना और अपुठी फिरने में बहुत झीना सा अंतर है।
यहाँ गाली दी नही जाती पर गाल गाई जाती है "
काम से खोटी होने व इश्वर ने किसी के साथ खोटी करी में अंतर है,
आडो देणो व आडो ओढलणो में फर्क है,
आडी देणी अर आड़ी घालणी मैं भी अंतर है,
हाथ फेरणे अर माथे हाथ फेरणे में भी अंतर है,
काम से खोटी होने व इश्वर ने किसी के साथ खोटी करी में अंतर है,
आडो देणो व आडो ओढलणो में फर्क है,
आडी देणी अर आड़ी घालणी मैं भी अंतर है,
हाथ फेरणे अर माथे हाथ फेरणे में भी अंतर है,
हमारे यहाँ कटकारा नही दिया जाता पर सिद्ध सारु कहा जाता है !
साभार- Madansingh Shekhawat Jhajhar
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