धमोरा ठिकाणा कि गणगौर :-
आज भी यहां सैंकड़ो वर्षों से चली आ रही परम्परा के अनुसार ही मनाया जाता है गणगौर का त्योंहार । बड़े हि हर्षोल्लास के साथ गांव में 36 कौम के लोगों द्वारा मनाया जाता है यह त्योंहार ।।
"ईशर-गणगोर" कि सवारी धार्मिक तरिके क्षत्राणियों द्वारा पुजा के बाद "श्री उदयगढ़" से रवाना होती है जिसमें दो घुड़सवार केसरिया ध्वज लिये अगुवाई करते हैं । इस समय सवारी के साथ सभी क्षत्रिय समाज बन्धु दादोसा, काकोसा, बाबोसा सभी अपनी पारम्परिक राजपूती पोशाक व साफे के साथ होते हैं जिनमें लगभग 50 बन्ना केशरिया साफे व तलवार लिये "ईशर-गणगोर" कि रक्षा करते हुए साथ साथ चलते हैं ।
उदयगढ़ से रवाना होने के बाद कुमावत मोहल्ले से होते हुए गांव के एक पुराने कुए तक पहुंचती है जहां 36 कौम कि महिलाएं विद्यमान होती है पुजा के बाद "ईशर-गणगोर" को 4 फेरे दिलाए जाते हैं और विसर्जित करने वाली सामग्री को यहीं विसर्जित कर दिया जाता है ।
फैरों से पहले तक दोनों का मुंह एक दुसरे के विपरित होता है तथा पौराणिक कथा के अनुसार फैरों के बाद दोनों का मुंह एक तरफ कर दिया जाता है ।
इसके बाद ठाकुर जी के मंन्दिर जाते हैं फिर ब्राह्मणों के मोहल्ले में जाते है जहां ब्राह्मण समाज व आस पास में रहने वाले अन्य समाज कि स्त्रियां पुजा करती है उसके बाद बणियों के मोहल्ले में जाते है वहां भी आस पास में रहने वाले सभी समाजों कि स्त्रियां पुजा करती है इसी तरह आगे भी 2-3 जगह और वहां भी आस पास में रहने वाले समाजों कि स्त्रियां पुजा करती है उसके बाद वापस उदयगढ़ पहुंच जाते हैं ।।
इस तयोंहार को किस खुशी से मनाया जाता है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि होली व दिपावली कि तरह इस दिन भी जो भी बन्धु गांव से बाहर रहते हैं वो गांव पधारते हैं । सदियों से 36 कौम को साथ लेकर चलते आया यह क्षत्रिय समाज आज भी अपनी परम्परा को निभाते हुए हर त्योंहार व धार्मिक अनुष्ठान 36 कौम को साथ लेकर मनाता है ।।
एक बार पुन: सभी को गणगौर उत्सव कि हार्दिक शुभकामनाएं ।।
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