मेरी जीवन-गाथा (39)
ठा. ओंकारसिंह, आई. ए. एस. (से. नि.)
संत थानेदार रामसिंह भाटी
एक मुकदमा जयपुर नगर के पास स्थित गाँव मनोहरपुर का था, उसमें एक पक्षकार थे रामसिंह भाटी। मुझे आश्चर्य हुआ कि भाटी परिवार ढूंढ़ाड़ में कैसे आया। उनके वकील ने बताया कि 'इस परिवार का इतिहास तो मुझे मालूम नहीं है परन्तु रामसिंह भाटी जयपुर रियासत में पुलिस थानेदार के पद से सेवानिवृत्त हुए थे। वे केवल उर्दू शिक्षित थे परन्तु अपनी योग्यता से थानेदार के पद तक पहुँचे थे। वे जयपुर राज्य को पुलिस बल में सबसे ईमानदार आदमी गिने जाते थे। वे कहीं भी दौरों में जाते तो किसी के घर का खाना नहीं खाते थे और उन्होंने कभी किसी भी मुल्जिम को सताया नहीं था।'
उन्होंने मेरे न्यायालय में एक बागड़ा ब्राह्मण परिवार के विरुद्ध दावा किया था। उनका आरोप था कि उनके एक बाड़े के हिस्से पर बागड़ा परिवार ने अवैध कब्जा कर लिया था। दोनों पक्षों के वकीलों के तर्क सुनने के बाद मैंने निश्चय किया कि मौके का मुआयना करना चाहिए। मैं वकीलों और पक्षकारों के साथ मनोहरपुर पहुँचा और देखकर पाया कि रामसिंह भाटी का दावा सच्चा है। फैसला उनके पक्ष में गया।
बाद में कई लोगों से यह पता चला कि रामसिंह एक सन्त पुरुष हैं। वे किसी मुसलमान सूफी फकीर के शिष्य बन गये थे, सनातन धर्म के सिद्धान्तों को मानते हुए सूफी मत के सिद्धान्तों को भी मानते थे और हिन्दू-मुसलमान से कोई भेद नहीं रखते थे। (कुछ वर्ष बाद श्री रामसिंह का देहान्त हो गया तो मनोहरपुर गाँव में उनका एक स्मारक बना जहाँ हर वर्ष उनके भक्तों का मेला लगता है। मैंने भी सत्तर के दशक में इस स्मारक को देखा था। अब जयपुर का हवाई अड्ड़ा इस स्मारक तक पहुँच गया है।)
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