भखरी ठाकुर केशर सिंह !!
जयपुर महाराजा जयसिंह किसी सैनिक अभियान मे मारवाड़ से होकर जा रहे थे,
तब ताना मारा की हमारी तोपे भरी हुई वापस जा रही है ?
अर्थात मेरे से मुकाबला करने का किसी राठौड़ मे साहस नही हुआ ।
यह बात जब भखरी ठाकुर केसरसिंह को मालुम हुई तो वह अपने गिने चुने सरदारों को साथ लेकर जयपुर कि विशाल सेना से भिङ गये और महाराजा जयसिंह का पूजा का हाथी उनसे छीन लिया ।
उस समय का कविता में वर्णन :-
"केहरिया करनाल, जेनह जुङतो जय साह सूं ।
तो मोटी अगवाल रहती, सिर मरुधरा ।।
शेखी जयपुर सेन री, भखरी मैं भागी रै ।
करगो टकरी केहरी, लंगर धर लागी है ।।
तो मोटी अगवाल रहती, सिर मरुधरा ।।
शेखी जयपुर सेन री, भखरी मैं भागी रै ।
करगो टकरी केहरी, लंगर धर लागी है ।।
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