मध्यप्रदेश के राजपूतों ने स्वतंत्रता समर सहयोग !
मध्यप्रदेश के राजपूतों ने स्वतंत्रता समर अपना बहुत सहयोग दिया । मालवा मे जौधा राठौङो का एक छोटा सा राज्य अभझरा था ।1857 के समर के समय यहाँ के राजा बख्तावर सिंह थे । जुलाई 1857 मे नीमच मे स्वतंत्रता कि चिनगारी जाग उठी !
2 जुलाई को धार अभझरा व भोपाल मे क्रांति हो गई । इस क्रांति का नेतृत्व राजा बख्तावर सिंह राठौड़ ने किया । अंग्रेजी सेना 20 अक्टूबर 1857 को धार पहुँची । 11 दिन तक तोपो का जबरदस्त युद्ध हुआ । क्रांतिकारी वहाँ से निकले और मन्दसौर पर अधिकार कर लिया ।
मध्यप्रदेश के राजपूतों ने स्वतंत्रता समर अपना बहुत सहयोग दिया । मालवा मे जौधा राठौङो का एक छोटा सा राज्य अभझरा था ।1857 के समर के समय यहाँ के राजा बख्तावर सिंह थे । जुलाई 1857 मे नीमच मे स्वतंत्रता कि चिनगारी जाग उठी !
2 जुलाई को धार अभझरा व भोपाल मे क्रांति हो गई । इस क्रांति का नेतृत्व राजा बख्तावर सिंह राठौड़ ने किया । अंग्रेजी सेना 20 अक्टूबर 1857 को धार पहुँची । 11 दिन तक तोपो का जबरदस्त युद्ध हुआ । क्रांतिकारी वहाँ से निकले और मन्दसौर पर अधिकार कर लिया ।
अंग्रेजी सेना ने धार व अभझरा आदि पर अधिकार कर लिया तो बख्तावर सिंह लालगढ़ के किले मे चले गए ।
अंग्रेजी सेना के एक भारतीय अधिकारी जो अपने आपको क्रान्तिकारी बताता था, ने धोखे से बख्तावर सिंह को अंग्रेजों द्वारा कैद करवा दिया । इनके साथ कुछ सैनिक भी पकङे गए ।
इनके निकट के भाई ठाकुर सेदला और दीवान गुलाबराय को अंग्रेजों ने फांसी दे दी और 10 फरवरी 1858 को अंग्रेजी सरकार ने बख्तावर सिंह जी को फांसी दे दी ।।
अंग्रेजी सेना के एक भारतीय अधिकारी जो अपने आपको क्रान्तिकारी बताता था, ने धोखे से बख्तावर सिंह को अंग्रेजों द्वारा कैद करवा दिया । इनके साथ कुछ सैनिक भी पकङे गए ।
इनके निकट के भाई ठाकुर सेदला और दीवान गुलाबराय को अंग्रेजों ने फांसी दे दी और 10 फरवरी 1858 को अंग्रेजी सरकार ने बख्तावर सिंह जी को फांसी दे दी ।।
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