सनातन धर्म रक्षक राजा मानसिंह आमेर ।
एक कुशल राजनीतिज्ञ :-
गीता सहीत सम्पूर्ण क्षत्रिय शास्त्र इस तथ्य की पुष्टि करते हैं कि बिना निति के शासन नहीं किया जा सकता है इसलिए इस नीतिशास्त्र का नाम ही राजनीति शास्त्र बन गया । नीती का अर्थ है जिसके द्वारा विजय प्राप्त की जाती है । दुर्बल पक्ष नीति का आश्रय लेकर ही सबल शत्रु पर विजय प्राप्त कर सकता है । निति शास्त्र का कथन है यदि आपका पक्ष दुर्बल है तो सबल से समझौता कर उसको अपने सिर पर घङे की तरह धारण कर लो व अपनी शक्ति का संचय करते रहो । जब तुम स्वयं सबल हो जाओ तो शत्रु रुपी घङे को सिर पर से उठाकर ऐसे गिरा दो जिससे वह पुरी तरह नष्ट हो जाये ।
इतिहास साक्षी है कि राजपूत काल में क्षत्रियों व क्षत्राणियों ने ऐसी अद्भुत वीरता का परिचय दिया जिसकी तुलना अन्य किसी काल व देश से नहीं की जा सकती लेकिन उनका उद्देश्य केवल कर्तव्य पालन भाव था, उसके साथ नीति का मिश्रण नहीं होने के कारण उनका अद्भुत पराक्रम व वीरता उनको विजय तक नहीं पहुँचा सकी । इतिहास में जिसको राजपूत काल कहा जाता है उसमें केवल तीन नीतिज्ञ क्षत्रियों (राजपूतों) के उदाहरण मिलते हैं ।
पहला उदाहरण है मेवाड़ के राणा उदयसिंह का जिन्होंने किलों में बन्द होकर लङने की आत्मघाती परम्परा को समाप्त कर दिया, खुले में लङने की नीति अपनाई । अकबर के आक्रमण के समय केवल सांकेतिक युद्ध लङने के लिए जयमल जी व फत्ता को कुछ सौ सैनिकों के साथ किले में किले की रक्षा के लिए छोड़ा व अपनी सारी सेना, सम्पत्ति व परिवारजनों को साथ लेकर किले के बाहर निकल गये व बाहर से छापामार युद्ध के द्वारा शत्रु को परेशान करते रहे । उसी अपने धन से सुरक्षित स्थान पर उदयपुर बसाया उसे अपनी राजधानी बनाया व उसी धन के बल पर राणा प्रताप जीवन भर अकबर से संघर्ष करने में सफल हुए ।
दुसरा उदाहरण है आमेर के राजाओं का राजा भारमल, भगवन्तदास व मानसिंह तीन पीढ़ी तक लगातार वीर व नीतिज्ञ राजा हुये जिन्होंने इस सच्चाई को स्वीकार किया कि राजपूत शक्ति इतनी कमजोर हो चुकी है कि वह मुगलों का सामना नहीं कर सकती है इसलिए भारमल ने अकबर से समझौता किया व उस समझौते का सर्वाधिक लाभ राजा मानसिंह ने अपने अद्भुत नेतृत्व, वीरता व नीतिज्ञता के कारण उठाया ।
तीसरे नीतिज्ञ पुरुष दुर्गादास राठौड़ हुए जिन्होंने औरंगजेब जैसे कट्टर व क्रुर शासक से संघर्ष कर जोधपुर राज्य पर पुनः अधिकार कर अजीतसिंह को राजा बनाया, मुगलों से सन्धि भी कि, संघर्ष भी किया । यदि पूर्व काल के लोगों ने भी नीति का आश्रय लिया होता तो राजपूतों की शक्ति का उतना क्षय नहीं होता जितना राजपूत काल के 600 वर्षों में हुआ ।
सनातन धर्म रक्षक राजा मानसिंह आमेर स्मृति समारोह
29 जनवरी 2017
रविवार, 1 बजे से ।
श्री राजपूत सभा भवन जयपुर ।
29 जनवरी 2017
रविवार, 1 बजे से ।
श्री राजपूत सभा भवन जयपुर ।
निवेदक- इतिहास शुद्धिकरण अभियान ।
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