रावल भोजदेव भाटी (1176-178 ई.)
"उत्तर भङ किवाङ भाटी"
Defenders of the Northern Gates of India
लोद्रवा ( प्राचीन जैसलमेर )
लोद्रवा के रावल विजयराज लांजा (1165-11 76 ई.) जब विवाह के लिए आबू के परमार राजा के यहां गए तो तोरण पर वर की आरती करते समय उनकी सास ने उन्हें दही का तिलक (दही लिलाड) करते समय कहा था कि बेटा "उत्तर दिसा भड किवाङ हुवै" उत्तर दिशा के किवाड (द्वार) के भड (योद्धा रक्षक) होना |
रावल वियजराज ने उसे यह वचन दे दिया था। रावल विजयराज की मृत्यु के बाद उनके पुत्र भोजदेव भाटी लोद्रवा के रावल बने ।
1178 ई. में गजनी के सुल्तान मोहम्मद गौरीने गुजरात के चालुक्य 'सोलंकी' राज्य और मार्ग में पङने वाले आबू के परमार राज्य पर आक्रमण का मन बनाया तब उसने लोद्रवे के रावल भोजदेव को मनाया कि भोजदेव इस आक्रमण की सूचना आबू के परमात्रों को नहीं देवे ।
इस पर भोजदेव की माता ने उसे उसके पिता के दिए वचन कि ‘वह उत्तर दिशा की रक्षा करेगा' की याद दिलाई । अत: भोजदेव ने आबू को सूचना भेज दी और मोहम्मद गौरी के देश रक्षा करने के अपने निश्चय से सूचित कर दिया ।
1178 ई. में गौरी की सेना लोद्रवे से 2 मील दूर 'मोढी की माल' में पड़ाव डाले हुए थी । वहां से गौरी ने 1 178 ई. में लोद्रवा पर आक्रमण कर दिया । रावल भोजदेव ने साका (धर्मयुद्ध) किया और अनेक योद्धाओं के साथ वीरगति प्राप्त की। मुस्लिम कमाण्डर मजेज खां भी मारा गया ।
उसी दिन से भाटी राजपूतों को उत्तर भड़ किवाड़ भाटी के सम्मानजनक विरूद्ध से अभिभूषित किया जाने लगा ।
1. भाटी वंश का गौरवमय इतिहास (प्रथम) डॉ. हुकम सिंह भाटी
2. जैसलमेर राज्य का इतिहास - मांगीलाल मयंक ।
Yeh bhi to bata dete ki yeh bhati rajputo se pahle yeh lodhi rajputo ki rajdhani thi lekin bhati rajputo ne chhal karke yaha ke raja niprbhanu pratap lodhi ko chhal se mardiya
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