जब सत्य की खोज करने वालों का अभाव हो जाता है :-
जब सत्य की खोज करने वालों का अभाव हो जाता है, तब प्रदूषित बुद्धि वाले विद्वान, पूर्व पुरुषों द्वारा प्रकट किए हुए ज्ञान में अपनी बुद्धि से प्रदूषण का मिश्रण कर शास्त्रों का निर्माण करते हैं । शासक वर्ग भी प्रदूषित बुद्धि व आचरण वाले लोगों पर नियंत्रण करने के नाम पर नियम व कानूनों का निर्माण करने में संलग्न हो जाते हैं । इस प्रदूषण की होङ में नित नये शास्त्रों व उनकी व्याख्याओं के युग का आरंभ होता है । प्रदूषित शास्त्रों का अनुसरण करने से श्रेष्ठ मानव की जगह आसुरी शक्तियों का उदय होने लगता है ।
इस काल में जो व्यक्ति आसुरी शक्तियों पर विजय प्राप्त करता है, उसे लोग ईश्वर तुल्य मानकर, उसकी पूजा करने लगते हैं । ये श्रेष्ठ लोग आसुरी शक्तियों के विनाश की लोगों को प्रेरणा देने के लिए ज्ञान का आश्रय लेने के स्थान पर, अपने उज्ज्वल चरित्र से लोगों को प्रभावित कर उन्हें सत्य पथ का पथिक बनाना चाहते हैं । ऐसे युग को ही "त्रेतायुग" कहा जाता है, जहाँ ज्ञान के अभाव में पौरुष के प्रदर्शन को ही सर्वश्रेष्ठ कृत्य समझा जाता है । -
अबोध बोध - देवीसिंह महार साहब
जब सत्य की खोज करने वालों का अभाव हो जाता है, तब प्रदूषित बुद्धि वाले विद्वान, पूर्व पुरुषों द्वारा प्रकट किए हुए ज्ञान में अपनी बुद्धि से प्रदूषण का मिश्रण कर शास्त्रों का निर्माण करते हैं । शासक वर्ग भी प्रदूषित बुद्धि व आचरण वाले लोगों पर नियंत्रण करने के नाम पर नियम व कानूनों का निर्माण करने में संलग्न हो जाते हैं । इस प्रदूषण की होङ में नित नये शास्त्रों व उनकी व्याख्याओं के युग का आरंभ होता है । प्रदूषित शास्त्रों का अनुसरण करने से श्रेष्ठ मानव की जगह आसुरी शक्तियों का उदय होने लगता है ।
इस काल में जो व्यक्ति आसुरी शक्तियों पर विजय प्राप्त करता है, उसे लोग ईश्वर तुल्य मानकर, उसकी पूजा करने लगते हैं । ये श्रेष्ठ लोग आसुरी शक्तियों के विनाश की लोगों को प्रेरणा देने के लिए ज्ञान का आश्रय लेने के स्थान पर, अपने उज्ज्वल चरित्र से लोगों को प्रभावित कर उन्हें सत्य पथ का पथिक बनाना चाहते हैं । ऐसे युग को ही "त्रेतायुग" कहा जाता है, जहाँ ज्ञान के अभाव में पौरुष के प्रदर्शन को ही सर्वश्रेष्ठ कृत्य समझा जाता है । -
अबोध बोध - देवीसिंह महार साहब
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