महाराजाधिराज बीसलदेव चौहान 'उतरदेश रक्षक' अजमेर, सपादलक्ष सांभर का स्वर्णयुग (1153 - 1163 ई.)
अजमेर के महाराजा अणोंराज के वीर पुत्र बीसलदेव ने देश की रक्षा के पराक्रम में बहुत सफलता प्राप्त की थी । गजनी के सुल्तान खुसरो शाह मलिक ने एक विशाल सेना के साथ भारत पर आक्रमण कर दिया था और वह खेतड़ी के पास विवेरा गांव तक आ पहुंचा था । विवेरा (बम्बेरा) खेतड़ी के पास का तीर्थ स्थान था जहां ब्राह्मण रहते थे । खुसरो की सेना ने तीर्थ स्थान पर आक्रमण करके पास के नगर बाघोट पर विजय प्राप्त कर ली । बीसलदेव को उसके मुख्यमंत्री श्रीधर ने सलाह दी कि वह धन देकर समझौता कर ले परन्तु उस वीर ने युद्ध करके आक्रमणकारी को खदेड़ दिया । इस युद्ध में गोगा तोमर और बाघ तोमर भाईयों ने अपूर्व वीरता दिखा कर अपना बलिदान दिया था । इस युद्ध में विजय प्राप्त करने पर बीसलदेव ने उत्तर देश के रक्षक की उपाधि धारण की ।
1163 ई. के दिल्ली शिवालिक स्तम्भ (फिरोजशाह कोटला, दिल्ली में) का शिलालेख बीसलदेव की प्रशंसा में लिखता है कि बीसलदेव ने बार-बार मल्लेछो (मलिन इच्छा) का विनाश करके विंध्याचल से हिमालय के बीच के देश को पुन: केवल नाम का ही नहीं वरन् सच में आर्यावृत बना दिया है । बीसलदेव अपनी भावी संतानों को कहते है कि उद्योग मत छोड़ना और शेष प्रदेशों को तुम आर्यावृत बनाना ।’ यह शिलालेख अशोक स्तम्भ पर अम्बाला के पहाड़ों की तराई में गांव साधौरा में था । सोमदेव रचित नाटक ललित विग्रहराज में बीसलदेव कहते हैं कि मुझे जीने की परवाह नहीं, मैं ब्राह्मणों, मन्दिरों की, गजनी के अमीरों से रक्षा करके रहूंगा । बीसलदेव कवियों के आश्रयदाता था इसलिए उन्हें कविबोधक की उपाधि दी गई । वे कवि सोमदेव के सरंक्षक थे ।
बीसलदेव ने सैकड़ों गढ़ और मन्दिर बनवाए तथा अजमेर में संस्कृत कंठाभरण विद्यालय बनवाया जिसे मुसलमान आक्रमणकारियों ने बाद में तोड़ कर अढ़ाई दिन का झौंपड़ा बना दिया । अंग्रेज पुरातत्वविद्कन्हिगम ने इस विद्यालय की सुन्दरता को विश्व में बेजोड़ बताया है । बीसलदेव ने अजमेर में जैन विहार बनवाया और पवित्र तिथियों पर पशु हत्या पर रोक लगाई ।इतिहासकार डॉ. दशरथ शर्मा के Rajasthan Throught the Ages-I के अनुसार बीसलदेव का राज्यकाल सपादलक्ष क्षेत्र का स्वर्ण युग कहलाने योग्य है । यह युग उन सभी उपलब्धियों से भरा था जिससे एक देश को महान कहा जा सकता है । प्रबंधकोष भी बीसलदेव को तुर्क विजयी कहता है।
आंचल और आग - प्रसिद्ध उद्योगपति श्री जी.डी. बिड़ला के ज्येष्ठ पुत्र श्री लक्ष्मीनाथ बिड़ला ने बीसलदेव चौहान पर यह उपन्यास लिखा है, जिसमें वे लिखते हैं कि 'इस उपन्यास का नायक बीसलदेव स्वतन्त्रता के अमर पुजारियों की श्रेणी में आता है और उसका स्थान इस कोटि के महापुरुषों में काफी ऊंचा है ।' Early Chauhan Dyasties- Dashrath Sharma (1150-1164),
(सल्तनत काल में हिन्दू प्रतिरोध - डॉ. अशोक कुमार सिंह, बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी की पीएच.डी. हेतु स्वीकृत शोध ग्रंथ, पृष्ठ 74) इतिहास दर्पण 2005
अजमेर के महाराजा अणोंराज के वीर पुत्र बीसलदेव ने देश की रक्षा के पराक्रम में बहुत सफलता प्राप्त की थी । गजनी के सुल्तान खुसरो शाह मलिक ने एक विशाल सेना के साथ भारत पर आक्रमण कर दिया था और वह खेतड़ी के पास विवेरा गांव तक आ पहुंचा था । विवेरा (बम्बेरा) खेतड़ी के पास का तीर्थ स्थान था जहां ब्राह्मण रहते थे । खुसरो की सेना ने तीर्थ स्थान पर आक्रमण करके पास के नगर बाघोट पर विजय प्राप्त कर ली । बीसलदेव को उसके मुख्यमंत्री श्रीधर ने सलाह दी कि वह धन देकर समझौता कर ले परन्तु उस वीर ने युद्ध करके आक्रमणकारी को खदेड़ दिया । इस युद्ध में गोगा तोमर और बाघ तोमर भाईयों ने अपूर्व वीरता दिखा कर अपना बलिदान दिया था । इस युद्ध में विजय प्राप्त करने पर बीसलदेव ने उत्तर देश के रक्षक की उपाधि धारण की ।
1163 ई. के दिल्ली शिवालिक स्तम्भ (फिरोजशाह कोटला, दिल्ली में) का शिलालेख बीसलदेव की प्रशंसा में लिखता है कि बीसलदेव ने बार-बार मल्लेछो (मलिन इच्छा) का विनाश करके विंध्याचल से हिमालय के बीच के देश को पुन: केवल नाम का ही नहीं वरन् सच में आर्यावृत बना दिया है । बीसलदेव अपनी भावी संतानों को कहते है कि उद्योग मत छोड़ना और शेष प्रदेशों को तुम आर्यावृत बनाना ।’ यह शिलालेख अशोक स्तम्भ पर अम्बाला के पहाड़ों की तराई में गांव साधौरा में था । सोमदेव रचित नाटक ललित विग्रहराज में बीसलदेव कहते हैं कि मुझे जीने की परवाह नहीं, मैं ब्राह्मणों, मन्दिरों की, गजनी के अमीरों से रक्षा करके रहूंगा । बीसलदेव कवियों के आश्रयदाता था इसलिए उन्हें कविबोधक की उपाधि दी गई । वे कवि सोमदेव के सरंक्षक थे ।
बीसलदेव ने सैकड़ों गढ़ और मन्दिर बनवाए तथा अजमेर में संस्कृत कंठाभरण विद्यालय बनवाया जिसे मुसलमान आक्रमणकारियों ने बाद में तोड़ कर अढ़ाई दिन का झौंपड़ा बना दिया । अंग्रेज पुरातत्वविद्कन्हिगम ने इस विद्यालय की सुन्दरता को विश्व में बेजोड़ बताया है । बीसलदेव ने अजमेर में जैन विहार बनवाया और पवित्र तिथियों पर पशु हत्या पर रोक लगाई ।इतिहासकार डॉ. दशरथ शर्मा के Rajasthan Throught the Ages-I के अनुसार बीसलदेव का राज्यकाल सपादलक्ष क्षेत्र का स्वर्ण युग कहलाने योग्य है । यह युग उन सभी उपलब्धियों से भरा था जिससे एक देश को महान कहा जा सकता है । प्रबंधकोष भी बीसलदेव को तुर्क विजयी कहता है।
आंचल और आग - प्रसिद्ध उद्योगपति श्री जी.डी. बिड़ला के ज्येष्ठ पुत्र श्री लक्ष्मीनाथ बिड़ला ने बीसलदेव चौहान पर यह उपन्यास लिखा है, जिसमें वे लिखते हैं कि 'इस उपन्यास का नायक बीसलदेव स्वतन्त्रता के अमर पुजारियों की श्रेणी में आता है और उसका स्थान इस कोटि के महापुरुषों में काफी ऊंचा है ।' Early Chauhan Dyasties- Dashrath Sharma (1150-1164),
(सल्तनत काल में हिन्दू प्रतिरोध - डॉ. अशोक कुमार सिंह, बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी की पीएच.डी. हेतु स्वीकृत शोध ग्रंथ, पृष्ठ 74) इतिहास दर्पण 2005
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