राजा दिलीप
राजा दिलीप अयोध्या के सूर्यवंशी राजा थे। दिलीप के कोई पुत्र नहीं हुआ इस हेतु उन्होंनें गो सेवा का संकल्प लिया। उन्होंनें एक गाय की सेवा करनी शुरू की जिसका नाम नन्दिनी था। एक दिन हिमालय के जंगलों में राजा दिलीप जब इस गाय को चरा रहे थे तब वहाँ एक शेर आया और उसने नन्दिनी पर आक्रमण किया। राजा दिलीप ने नन्दिनी की रक्षा हेतु अपने धनुष से शेर पर बाण चलाया परन्तु वह बाण नहीं चला। शेर ने राजा से कहा कि राजा तुम मुझे नहीं मार सकते - मैं बहुत भूखा हूँ और अपनी भूख मिटाने हेतु इस गाय का भक्षण करूंगा।
राजा दिलीप ने शेर से कहा कि तुम्हें अपनी भूख मिटाने के लिए भोजन चाहिए तो तुम इस गाय को छोड दो मैं अपने आपको तुम्हें समर्पित करता हूँ। मेरे शरीर से तुम अपनी भूख मिटाओ। शेर ने राजा से कहा राजा तुम कैसे प्राणी हो, एक पशु मात्र के लिए अपने आप को समर्पित कर रहे हो ? राजा ने फिर कहा तुम्हें इससे क्या लेना तुम अपनी भूख मिटाओ-मैं क्षत्रिय हूँ और तीनों लॉकों में यह प्रसिद्ध है कि 'क्षय तृणात इति क्षत्रिय’ यानी जो विनाश से बचाता है वह क्षत्रिय है। राजा दिलीप के इस समर्पण से शेर ने नन्दिनी को छोड दिया इस तरह स्वयं को समर्पित कर राजा दिलीप ने गौ की रक्षा की।
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