समाज में संगठनों कि भरमार
समाज में संगठनों कि भरमार है कोई भी संगठन ठिक से अपना काम नही कर पा रहा है ।
20-30 कि उम्र के नौजवान संगठनों में पद लेकर 4-6 साल खराब कर देते है ।
किसी भी संगठन के पास कोई ढंग कि गाइड लाइन नही है कि क्या कार्य हमें करना है और कैसे ।
किसी भी संगठन के पास कोई ढंग कि गाइड लाइन नही है कि क्या कार्य हमें करना है और कैसे ।
व्यक्तिवाद भी समाज पर हावी होता जा रहा है अपने डेकोरम के दम पर तराह तराह के नाटक रचे जाते है वर्चस्व कि लङाई इन संगठनों पर इतनी ज्यादा हावी है कि ढंग का आदमी इनके आस पास ना भटके ।
आजकल संगठन संख्याबल दिखाकर अपनी सफलता असफलता प्रदर्शित करते है तो स्पष्ट बात यह है कि हमारे समाज में आज भौतिक रुप से सक्षम लोग अपना हित साधने के लिये है कुछ भी आमजन से करवा सकते है ।
हमारे समाज के युवाओं के पास उनके भविष्य को लेकर को प्लान नही है । कोई भी व्यक्ति जोश भरा भाषण देकर उन्हें आकर्षित कर लेता है और युवा उनके पिछे हो जाते है यह आकर्षण भी बहुत कम समय का होता है लेकिन इस समय में युवा वर्ग अपना कीमती समय गवां चुका होता है ।
सामाजिक संगठनों को युवाओं को अपने तामझाम से दुर रखना चाहिए उनके भविष्य से खिलवाड़ नही करना चाहिए ।
"बलवीर"
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