संघठन और समाज
आज लोग संघठन बनाकर समाज का कल्याण करना चाहते हे | वे यह भी अभिलाषा संजोते है कि समाज का नेतृत्व प्रदान कर सकेंगे लेकिन वे यह नहीं जानते कि लोगों को अपनी बात सुनाने व उनके विचारों व भावों को गति देने के लिए उन लोगों से ऊपर उठना आवश्यक है |
अपने आप को बदलने के लिए व्यक्ति को अच्छी संगत जिसका तात्पर्य है, अपने से श्रेष्ठ लोगों कि संगत करना आवश्यक है, क्यों कि "कच्ची सरसों को पेलकर कोई भी तेल निकलने कि कल्पना नहीं कर सकता" | अगर तेल चाहिए तो उसके पहले सरसों को पकाना पड़ेगा |
इसलिए सबसे पहली आवश्यकता है कि श्रेष्ठ साहित्य का सानिध्य प्राप्त किया जावे, जिसकी संगती से हम परंपरागत कुसंस्कारों से मुक्त रह सके | आज हम जिसे धर्म समझे हुए है, उसी ने हमारा सर्वनाश किया है |
आज लोग संघठन बनाकर समाज का कल्याण करना चाहते हे | वे यह भी अभिलाषा संजोते है कि समाज का नेतृत्व प्रदान कर सकेंगे लेकिन वे यह नहीं जानते कि लोगों को अपनी बात सुनाने व उनके विचारों व भावों को गति देने के लिए उन लोगों से ऊपर उठना आवश्यक है |
अपने आप को बदलने के लिए व्यक्ति को अच्छी संगत जिसका तात्पर्य है, अपने से श्रेष्ठ लोगों कि संगत करना आवश्यक है, क्यों कि "कच्ची सरसों को पेलकर कोई भी तेल निकलने कि कल्पना नहीं कर सकता" | अगर तेल चाहिए तो उसके पहले सरसों को पकाना पड़ेगा |
इसलिए सबसे पहली आवश्यकता है कि श्रेष्ठ साहित्य का सानिध्य प्राप्त किया जावे, जिसकी संगती से हम परंपरागत कुसंस्कारों से मुक्त रह सके | आज हम जिसे धर्म समझे हुए है, उसी ने हमारा सर्वनाश किया है |
तपहीन ज्ञानी हमेशा समाज का शोषण करता है | अगर हम तपस्या से रहित रह कर किसी प्रकार से बुद्धिबल का उपार्जन भी कर लें तो समाज का शोषण करने के अलावा और कोई शुभ कार्य करने कि कल्पना नहीं कर सकते |
लेखक : श्री देवीसिंह महार
लेखक : श्री देवीसिंह महार
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