Wednesday 26 October 2016

"राजा मानसिंह आमेर"

"राजा मानसिंह आमेर"
भूमिका- देवीसिंह महार साहब


जब राजा मानसिंह आमेर आगरा से आमेर आ गये तो आने के बाद सर्व प्रथम सलिम समर्थक व मानसिंह विरोधीयों का दमन किया । जहाँगीर अपने समर्थकों के दमन से दुःखी व क्रुद्ध हुआ व उसने रोहतासगढ़ की जो जागीर अकबर ने मानसिंह को दी थी छीन ली व वहाँ के हथियार भी जब्त कर लिए । उसे यह भी भय हुआ कि मानसिंह अपने समर्थकों से कहीं बंगाल में बगावत नहीं करवा दे, इसलिए उसने सभी मानसिंह समर्थकों को बंगाल से वापस बुला लिया व मानसिंह को आदेश दिया कि वह दक्षिण ...कि तरफ जायें व परवेज व खानेखानम के नेतृत्व में भेजी गई सेना का सहयोग करे ।


विद्वान लेखक ने इस पुस्तक में लिखा है कि राजा मानसिंह आमेर दक्षिण में मुगल सेनापतियों के नेतृत्व में सफल नही रहे, लेकिन इस बात की ओर ध्यान नहीं दिया गया कि राजपूतों के सहयोग की आवश्यकता व अपने नेतृत्व के महत्व को जहाँगीर के सामने स्थापित करने के लिये यह आवश्यक था कि वहाँ पर मुगल सेनापति को असफलता मिले । क्योंकि वहाँ मानसिंह सेनापति नही थे वह केवल सहयोगी थे इसलिए उन्होंने अपनी पहल पर सफलता के लिए कोई भी कार्य करना उचित नहीं समझा व ऐसा भी कोई कार्य नहीं किया जिससे असहयोग प्रदर्शित हो । यह कार्य उनकी नीतिज्ञता को ही प्रकट करता है ।


जहाँगीर मानसिंह से कितनी शत्रुता रखता था इस बात का अन्दाजा इससे लगाया जा सकता है कि मानसिंह कि मृत्यु के बाद भी उसने मानसिंह के बङे पुत्र जगतसिंह के पुत्र महासिंह को गद्दी पर नहीं बैठने दिया व मानसिंह के दुसरे पुत्र भावसिंह को आमेर का राजा घोषित कर दिया । खुद के उतराधिकार के अवसर पर जहाँगीर व उसके समर्थक वंश परम्परा के नियमों का बार बार हवाला दे रहे थे लेकिन मानसिंह के उतराधिकार के विषय में उन्होंने स्वयं राजपूतों के वंश परम्परा के नियमों को तोङकर जगतसिंह के पुत्र महासिंह को राज्य देने की बजाय मानसिंह के छोटे पुत्र भावसिंह को गद्दी पर बैठा दिया ।


जब कछवाहों में विरोध के स्वर उठने लगे तो बादशाह ने महासिंह को दक्षिण में ही सूबेदारी देकर पाँच हजार का मनसब दिया । इससे असन्तुष्ट कछवाहे इसलिए संतुष्ट हो गए कि भावसिंह के कोई सन्तान नहीं थी जिसके परिणामस्वरूप भावसिंह कि मृत्यु के बाद महासिंह के पुत्र जयसिंह ( मिर्जा राजा ) आमेर के शासक बने ।।
उपर्युक्त तथ्य यह साबित करने के लिये पर्याप्त है कि जहाँगीर मानसिंह के विरोधियों के चंगुल में बुरी तराह फंसा हुआ था और यह कारण भी था कि मानसिंह ने मुस्लिम परम्परागत इस्लामीकरण को उनके काल में पनपने नही दिया इसलिए मुस्लिम सरदार व जहाँगीर मानसिंह विरोधी थे ।

यथार्थ में मानसिंह आमेर ने जहाँगीर के शत्रुतापूर्ण व्यवहार को भी केवल इसलिए बर्दाश्त किया कि मुगलों से संबंध विच्छेद करने परिणामस्वरूप पठान मुगल गठजोङ से सनातन धर्म को आघात पहुँचने कि पुरी संभावना थी ।


सनातन धर्म रक्षक राजा मानसिंह आमेर स्मृति समारोह
29 जनवरी 2017 ।
रविवार, 1 बजे से ।
श्री राजपूत सभा भवन जयपुर ।


निवेदक - इतिहास शुद्धिकरण अभियान ।

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