Monday 31 October 2016

अनुठी परम्परा

अनुठे पारम्परिक रिवाज का निर्वाह होता है डढे़ल में ।।

वर्तमान में सामूहिक परिवार विघटन व आधुनिक चकाचौंध के बिच जहाँ एक एक पारम्परिक परम्पराएँ, रिती रिवाज का हास हो रहा है वहाँ आज भी दिपावली व होली पर सामूहिक राम राम करने कि परम्परा हमारे गांव डढे़ल में जीवांत अवस्था में है ।

ढोल के साथ राम राम करने का रिवाज एक मात्र राजपूत जाति में ही है और यह परम्परा रियासत काल में प्रत्येक गाँव में थी, लेकिन नये दौर में विघटन के साथ यह परम्पराएँ एक एक करके खत्म हो गयी लेकिन हमारे गाँव में यह परम्परा आज भी है ।।

ढोल व नंगारे का राजपूत रिवाजों में मुख्य किरदार रहता है अन्य किसी समाज में यह रिवाज नही है और राजपूत ढोल व नंगारे को अपने स्वाभिमान का प्रतीक भी मानते है कालान्तर में ढोल और नंगारे के लिये युद्ध भी हुए है ।।

दिपावली व होली पर सुबह सर्वप्रथम गाँव के गढ में सुबह ढोल बजने पर सभी राजपूत वहाँ उपस्थित होते है और बङो से आशीर्वाद लेते है और वर्तमान में समाज कि क्या दिशा होनी चाहिए इस पर चर्चा होती है । इसके बाद ठाकुर जी के मंदिर में सभी साथ जाकर धौक लगाते है व अन्य मंदिरों में दर्शन करने के बाद सामूहिक राम राम पुरे गाँव में किये जाते है ।।

संगठन हमारी प्राचीन परम्परा :- भगवान बुद्ध ने क्षत्रियों से आह्वान किया था कि अपनी विरोधी शक्तियों को परास्त करने के लिये संगठन आवश्यक है और साल में कम से कम एक बार सबको एक जगह एकत्रित होना चाहिए ।

राजपूत संत व महात्माओं का मानना है कि वर्तमान में विध्यमान दुष्ट शक्तियों का कोई अकेला आदमी या परिवार सामना कर सके यह संभव नही इसलिए संगठन में रहकर दुष्ट शक्तियों से लङा जा सकता है उन्हें परास्त किया जा सकता है ।।

हमारी इस परम्पराएँ में आज के दिन तीन से चार पिढियाँ एक साथ होती है व बङो को देखकर आने वाली पिढी अनुशासित होती है ।।

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