सती व जौहर - कुंवर अवधेश शेखावत (धमोरा)
सर्वप्रथम सतीयों को नमन । अब विषय पर आता हू्ं चूंकि कुछ समय से पद्मावती फिल्म के कारण देश के राजनीतिक व सामाजिक वातावरण में हलचल चल रही है तो हर विषय कि भांती इस विषय पर भी विरोध में लिखने व बोलने वाले बुद्दिजीवी कुकरमुते कि तरह उग आए हैं ।
कुछ लोग सतीयों के खिलाफ लिख रहे हैं तो कुछ जौहर के खिलाफ जहर उगल रहे हैं । पहले तो आपको सती के आगे प्रथा शब्द लगाने से पहले 'प्रथा' का आश्य समझना होगा । प्रथा का मतलब है कोई भी ऐसा कार्य जो किसी जाती, धर्म या वर्ग के सभी या अधिकतर लोगों द्वारा किया जाता है ।
जैसे दहेज एक प्रथा है क्योंकि लगभग हर व्यक्ति इससे ग्रस्त है, इसके अलावा तीन तलाक, मृत्युभोज, घुंघट, पर्दा आदि को प्रथाओं कि श्रेणी में रखा जा सकता है क्योंकि इससे एक वर्ग विशेष के लगभग सभी लोग ग्रस्त थे या हैं । ये कुप्रथाएं हैं या नहीं वो अलग विषय है ।
अब जब आपको ये समझ आ गया कि प्रथा क्या होती है तो सती के आगे प्रथा लगाने से पहले अपने परिवार जाती या धर्म का इतिहास उठाकर देखें कि अब तक कितनी औरतें पति कि मृत्यु पर सती हुई है ? क्या वो संख्या भी उतनी ही है जितनी दहेज, तीन तलाक, मृत्युभोज, घुंघट, पर्दा आदि से ग्रस्त लोगों की है ? जब हम क्षत्रियों का इतिहास देखते हैं तो पाते हैं कि एक पुरे गांव का इतिहास खंगालने पर व 15-20 पिढीयों में कोई १-२ सती हुई है । यानी किसी भी समय सती होना प्रत्येक स्त्री पर अनिवार्य या बाध्यता नहीं रही ।
वो एक समर्पण था, उच्च कोटी का समर्पण जिसे मापने कि क्षमता ना आपकी कलम में है ना ही आपकी वाणी में । वो एक पवित्रता का अनुपम उदाहरण था । वो एक पति व पत्नि के बिच के प्रेम का अनुपम उदाहरण था ।
आपने किताबों में सतीयों के विरूद्द जिस राजाराममोहन राय के आंदोलन को पढा है वो कभी राजस्थान या अन्य किसी क्षत्रिय बाहुल प्रदेश में नहीं आए, ना ही उन्होंने यहां कि सतीयों के बारे में कोई अध्ययन किया या वकतव्य दिया । हो सकता है उनके बंगाल में ये कोई प्रथा रही हो लेकिन बंगाल के आधार पर राजस्थान के सांस्कृतिक मूल्यों आंकलन करना वैसा ही है जैसा पृथ्वी के आधार पर मंगल के बारे में कोई धारणा बनाना । इसलिए सर्वप्रथम तो सती के आगे प्रथा लगाना बंद करे ।
अब यदि बात करें सती व जौहर कि तो इन्हें एक ना समझें । सती केवल पति कि मृत्यु के बाद हुआ करती हैं लेकिन अमुमन जौहर मृत्यु से पहले यानी क्षत्रियों के शाका करने कि पहली रात्री को । हां कुछ जौहर मृत्यु के बाद भी हुए हैं जब समाचार मिले कि सभी क्षत्रिय युद्द में वीरगती को प्राप्त हुए और शत्रु कि सेना दुर्ग कि ओर आ रही है ।
ऐसे कई उदाहरण हैं जो जीवित रहते सती हुई हैं जैसे बाला सती रूप कंवर । चूंकि मैं स्वयं क्षत्रिय हूं तो आप मेरी बात पर विश्वाश ना करें तो आप भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद कि जीवन डायरी का अध्ययन करें उसके एक दो जगह नहीं कई जगह बाला सती के वृतांतो का उल्लेख है । अब यदि जौहर कि बात करें तो जौहर जीवित रहते हुए नहीं हो सकता ।
सती पति के प्रति समर्पण का प्रतिक है तो जौहर देशभक्ति कि उच्चतम कसौटी । अब जो लोग कह रहे हैं कि जौहर करने से अच्छा तो युद्द करती फिर तो वो ये भी सोचते होंगे कि गांधी को अनशन कि बजाय अंग्रेजों से युद्द करना चाहिए था कुछ को तो मारता ही । अन्ना को अनशन कि बजाय भ्रष्टाचारियों को मारना चाहिए था ।
मतलब साफ है हर काल समय के अनुसार समाज कि मांग व समाज को प्रेरित किए जाने वाले उदाहरण बदल जाते हैं । जैसे आज तलवार बाजी से प्रेरित नहीं किया जा सकता लेकिन किसी समय किया जा सकता था । इसी तरह किसी समय जौहर वो अनुपम देशभक्ति का कार्य था जो आने वाली सैंकडो़ पिढीयों को संदेश दे सके ।
वर्तमान में कुछ लोग कहते हैं सती कोई नहीं होती थी उन्हें जबरन जलाया जाता है तो वो लोग अपने पापा या दादोसा कि उम्र के उस व्यक्ति से पुछें जिन्होंने 1987 में रूप कंवर (दिवराला, सीकर) या 1957 में उगम कंवर (तालियाना, जालौर) को या किन्हीं अन्य को पति के साथ सती होते अपनी नग्न आंखो से देखा हो (सभी जाती धर्म के लाखों लोग वहां मौजूद थे) । और यदि आप इसे आत्महत्या मानते हो तो फिर तो जैन धर्म के संतो द्वारा उपवास से प्राण त्यागना (संथारा) व बौध धर्म के संतो द्वारा भी इच्छा से प्राण त्यागना, आत्मदाह करना व सनातन धर्म के कई संतो द्वारा समाधी ली जाना भी आपकी नजरों में आत्महत्या ही हुई । इसलिए पहले विचार करें फिर कुछ लिखें या बोलें ।
जौहर, सती व झुंझारो कि शक्ति के विषय में केवल इतना ही कहना चाहूंगा कि आप पुरे विश्व में कोई भी एक उदाहरण ऐसा बता दो जहां कोई तलवार या बाहुबल से 500 वर्ष भी शासन करने में सक्षम हुए हों तो फिर क्षत्रियों में ऐसा क्या था कि श्रीराम के पहले से अब तक लाखों वर्षों तक शासन कर लिया । खेर राम से अब तक के लिखित प्रमाण नहीं है लेकिन कृष्ण से अब तक यानी लगभग 5200 वर्षों का तो लिखित प्रमाण है क्षत्रियों के सकुशल शासन के । ये केवल सती झुंझारो कि शक्ति व पवित्रता का ही परिणाम था ।
इसलिए मैं तो यही कहना चाहूंगा कि ये सब बकवास जो आप लोग शोसल मिडीया पर आधुनिकता के नाम पर कर रहे हो इससे अाप केवल अपने पुर्वाग्रहों के आधार पर अपने ज्ञान का नाश कर रहे हो इससे ज्यादा कुछ नहीं ।
इस लेख को पढकर क्षत्रिय बंधु भी ज्यादा प्रश्न ना हों वर्तमान में यह वर्ण (क्षत्रिय) सती, झुंझार, संत, महात्माओं व महापुरूषों के बताए मार्ग को छोड़ चूका है और उसी का प्रमाण है कि वर्तमान में क्षत्रिय किसी वार्ड के वार्ड पंच बनकर उस वार्ड कि जनता को भी पांच वर्ष तक खुश नहीं रख पाते । राज्य या देश तो बहुत बडी़बात हो गई ।
अंत में सती व जौहर पर गलत लिखने वाले भाईयों में निवेदन है वो जरा निष्पक्षता से अध्ययन करें व क्षत्रिय भाईयों से निवेदन है कि जन्म से ही नहीं कर्म से भी क्षत्रिय बनने कि कोशिश करें । केवल वंशावलियों से ही नहीं कर्मों से भी राम व कृष्ण कि संतान होने का बोध कराएं । अन्यथा कोई औचित्य नहीं है आपकी इन वंशावलियों का ।
सभी कि प्रतिक्रियाएं केवल सभ्य भाषा में ही आमंत्रित है ।
- कुंवर अवधेश शेखावत (धमोरा) एक राही
कुछ लोग सतीयों के खिलाफ लिख रहे हैं तो कुछ जौहर के खिलाफ जहर उगल रहे हैं । पहले तो आपको सती के आगे प्रथा शब्द लगाने से पहले 'प्रथा' का आश्य समझना होगा । प्रथा का मतलब है कोई भी ऐसा कार्य जो किसी जाती, धर्म या वर्ग के सभी या अधिकतर लोगों द्वारा किया जाता है ।
जैसे दहेज एक प्रथा है क्योंकि लगभग हर व्यक्ति इससे ग्रस्त है, इसके अलावा तीन तलाक, मृत्युभोज, घुंघट, पर्दा आदि को प्रथाओं कि श्रेणी में रखा जा सकता है क्योंकि इससे एक वर्ग विशेष के लगभग सभी लोग ग्रस्त थे या हैं । ये कुप्रथाएं हैं या नहीं वो अलग विषय है ।
अब जब आपको ये समझ आ गया कि प्रथा क्या होती है तो सती के आगे प्रथा लगाने से पहले अपने परिवार जाती या धर्म का इतिहास उठाकर देखें कि अब तक कितनी औरतें पति कि मृत्यु पर सती हुई है ? क्या वो संख्या भी उतनी ही है जितनी दहेज, तीन तलाक, मृत्युभोज, घुंघट, पर्दा आदि से ग्रस्त लोगों की है ? जब हम क्षत्रियों का इतिहास देखते हैं तो पाते हैं कि एक पुरे गांव का इतिहास खंगालने पर व 15-20 पिढीयों में कोई १-२ सती हुई है । यानी किसी भी समय सती होना प्रत्येक स्त्री पर अनिवार्य या बाध्यता नहीं रही ।
वो एक समर्पण था, उच्च कोटी का समर्पण जिसे मापने कि क्षमता ना आपकी कलम में है ना ही आपकी वाणी में । वो एक पवित्रता का अनुपम उदाहरण था । वो एक पति व पत्नि के बिच के प्रेम का अनुपम उदाहरण था ।
आपने किताबों में सतीयों के विरूद्द जिस राजाराममोहन राय के आंदोलन को पढा है वो कभी राजस्थान या अन्य किसी क्षत्रिय बाहुल प्रदेश में नहीं आए, ना ही उन्होंने यहां कि सतीयों के बारे में कोई अध्ययन किया या वकतव्य दिया । हो सकता है उनके बंगाल में ये कोई प्रथा रही हो लेकिन बंगाल के आधार पर राजस्थान के सांस्कृतिक मूल्यों आंकलन करना वैसा ही है जैसा पृथ्वी के आधार पर मंगल के बारे में कोई धारणा बनाना । इसलिए सर्वप्रथम तो सती के आगे प्रथा लगाना बंद करे ।
अब यदि बात करें सती व जौहर कि तो इन्हें एक ना समझें । सती केवल पति कि मृत्यु के बाद हुआ करती हैं लेकिन अमुमन जौहर मृत्यु से पहले यानी क्षत्रियों के शाका करने कि पहली रात्री को । हां कुछ जौहर मृत्यु के बाद भी हुए हैं जब समाचार मिले कि सभी क्षत्रिय युद्द में वीरगती को प्राप्त हुए और शत्रु कि सेना दुर्ग कि ओर आ रही है ।
ऐसे कई उदाहरण हैं जो जीवित रहते सती हुई हैं जैसे बाला सती रूप कंवर । चूंकि मैं स्वयं क्षत्रिय हूं तो आप मेरी बात पर विश्वाश ना करें तो आप भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद कि जीवन डायरी का अध्ययन करें उसके एक दो जगह नहीं कई जगह बाला सती के वृतांतो का उल्लेख है । अब यदि जौहर कि बात करें तो जौहर जीवित रहते हुए नहीं हो सकता ।
सती पति के प्रति समर्पण का प्रतिक है तो जौहर देशभक्ति कि उच्चतम कसौटी । अब जो लोग कह रहे हैं कि जौहर करने से अच्छा तो युद्द करती फिर तो वो ये भी सोचते होंगे कि गांधी को अनशन कि बजाय अंग्रेजों से युद्द करना चाहिए था कुछ को तो मारता ही । अन्ना को अनशन कि बजाय भ्रष्टाचारियों को मारना चाहिए था ।
मतलब साफ है हर काल समय के अनुसार समाज कि मांग व समाज को प्रेरित किए जाने वाले उदाहरण बदल जाते हैं । जैसे आज तलवार बाजी से प्रेरित नहीं किया जा सकता लेकिन किसी समय किया जा सकता था । इसी तरह किसी समय जौहर वो अनुपम देशभक्ति का कार्य था जो आने वाली सैंकडो़ पिढीयों को संदेश दे सके ।
वर्तमान में कुछ लोग कहते हैं सती कोई नहीं होती थी उन्हें जबरन जलाया जाता है तो वो लोग अपने पापा या दादोसा कि उम्र के उस व्यक्ति से पुछें जिन्होंने 1987 में रूप कंवर (दिवराला, सीकर) या 1957 में उगम कंवर (तालियाना, जालौर) को या किन्हीं अन्य को पति के साथ सती होते अपनी नग्न आंखो से देखा हो (सभी जाती धर्म के लाखों लोग वहां मौजूद थे) । और यदि आप इसे आत्महत्या मानते हो तो फिर तो जैन धर्म के संतो द्वारा उपवास से प्राण त्यागना (संथारा) व बौध धर्म के संतो द्वारा भी इच्छा से प्राण त्यागना, आत्मदाह करना व सनातन धर्म के कई संतो द्वारा समाधी ली जाना भी आपकी नजरों में आत्महत्या ही हुई । इसलिए पहले विचार करें फिर कुछ लिखें या बोलें ।
जौहर, सती व झुंझारो कि शक्ति के विषय में केवल इतना ही कहना चाहूंगा कि आप पुरे विश्व में कोई भी एक उदाहरण ऐसा बता दो जहां कोई तलवार या बाहुबल से 500 वर्ष भी शासन करने में सक्षम हुए हों तो फिर क्षत्रियों में ऐसा क्या था कि श्रीराम के पहले से अब तक लाखों वर्षों तक शासन कर लिया । खेर राम से अब तक के लिखित प्रमाण नहीं है लेकिन कृष्ण से अब तक यानी लगभग 5200 वर्षों का तो लिखित प्रमाण है क्षत्रियों के सकुशल शासन के । ये केवल सती झुंझारो कि शक्ति व पवित्रता का ही परिणाम था ।
इसलिए मैं तो यही कहना चाहूंगा कि ये सब बकवास जो आप लोग शोसल मिडीया पर आधुनिकता के नाम पर कर रहे हो इससे अाप केवल अपने पुर्वाग्रहों के आधार पर अपने ज्ञान का नाश कर रहे हो इससे ज्यादा कुछ नहीं ।
इस लेख को पढकर क्षत्रिय बंधु भी ज्यादा प्रश्न ना हों वर्तमान में यह वर्ण (क्षत्रिय) सती, झुंझार, संत, महात्माओं व महापुरूषों के बताए मार्ग को छोड़ चूका है और उसी का प्रमाण है कि वर्तमान में क्षत्रिय किसी वार्ड के वार्ड पंच बनकर उस वार्ड कि जनता को भी पांच वर्ष तक खुश नहीं रख पाते । राज्य या देश तो बहुत बडी़बात हो गई ।
अंत में सती व जौहर पर गलत लिखने वाले भाईयों में निवेदन है वो जरा निष्पक्षता से अध्ययन करें व क्षत्रिय भाईयों से निवेदन है कि जन्म से ही नहीं कर्म से भी क्षत्रिय बनने कि कोशिश करें । केवल वंशावलियों से ही नहीं कर्मों से भी राम व कृष्ण कि संतान होने का बोध कराएं । अन्यथा कोई औचित्य नहीं है आपकी इन वंशावलियों का ।
सभी कि प्रतिक्रियाएं केवल सभ्य भाषा में ही आमंत्रित है ।
- कुंवर अवधेश शेखावत (धमोरा) एक राही
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