Wednesday 22 February 2017

सामाजिकता कि दौड़

सामाजिकता कि दौड़

इस समाज का बच्चा बच्चा सामाजिक है, और पुरे दिल से कार्य भी करता है ।
पर इस सामाजिकता कि दौड़ बङी कच्ची और छोटी है ।
सभी सामाजिक महोदयो का हाल एक जैसा ही है ।
सब सामाजिक लोग अपने प्रयासों को सफल बनाने का पहला प्रयास यह करते है कि मैं इस समाज को सुधार दूँ ।
और इस सुधार कि पहली सीढी उन्हें नजर आती है सामाजिक संगठन और वह उस तरफ भागता है ।
इन संगठनों कि भव्यता को देखता है कही कही चकाचौंध को देखता है और निराश हो जाता है कि मुझे इसमें कोई जानता नही में कैसे समाज का भला करुँ ।


वह एक बार लौट आता है पर सामाजिकता का किङा उसे फिर काटता है और फिर वह किसी संगठन कि तरफ दौड़ता है, इस बार उसे लगता है कि मैं कुछ लोगों के नाम जानने लगा हुँ फला फला संगठन में फला फला लोग है ।
अब वह उन नामों को इधर उधर बताता है और जताता है कि हाँ मैं अब सामाजिक कार्य करनी कि तरफ बढ चुका हुँ ।
मैं संगठन के कुछ लोगों को जानने लगा हुँ ।
और धिरे धिरे वह परिचित होता है और उत्साह और मनमुग्धा सातवें आसमान पर होती है ।
फिर देखता है कि इसी संगठन का पुराना समाज सेवक दुखी है कि कोई उसकी सुनता नही और वह समाज सेवा नही कर पा रहा है, धिरे धिरे उसे लगता है मैं यहाँ से समाज सेवा नही कर सकता ।


अब कुछ लोग समाजसेवी का ठपा लगवाकर खुश हो जाते है और कुछ आलोचक बन जाते है ।
कुछ लोग विरोधी भाव लिये समाचार इधर से उधर उछाल कर भडांस निकाल लेते है ।
कुछ सज्जन शांति से गृहस्थ आश्रम कि और पलायन करते है और कोई कोई इन सामाजिक भावों से नफरत करने लगता है ।
यह सब स्थितियाँ व्यक्ति के स्वयं के विश्लेषण पर निर्भर करती है कि वह क्या सोचता व समझता है ।
क्या वह मूल रुप व भाव को समझ पाया है या नही ??

अब भी एक आध ऐसे बच जाते है जिनमें सामाजिकता का बङा किङा काटता है,
वह फिर एक और पाखण्ड रचते है पाखण्डीयों से मिले अनुभव कि आलोचना का पाखण्ड असल में जो करने कि कार्य योजना है उसी रास्ते कि आलोचना कर कुछ छोटे छोटे किङे काटने वालो का समुह बना अपनी अपना एक नया संगठन बनाता है और यह नया संगठन क्या करेगा ??
वही पुराने कार्य जो बाकि कर रहे है ।।
एक तराह के सामाजिक और होते है जिनका मकसद होता है लोग मुझे जानने लगे बस इनके ख्वाब बङे छोटे होते है बाबाजी कि तराह बस खाने को रोटी मिले और राम नाम का जप ।

एक सामाजिक भाई साहब जिनका मकसद ही राजनीतिक पार्टी से जुङना होता है वह तो क्या क्या पैंतरे अपना ले कुछ कहाँ नही जा सकता ।।
आखिर सब अपना अपना भला मत मुताबिक कर लेते है बस समाज और सामाजिकता अब भी दर्द लिये घुमते है ।।
"बलवीर"

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