Wednesday 12 October 2016

"हाडा ले डुबिया गणगौर"

"हाडा ले डुबिया गणगौर"

बूंदी राव साब मेड़ता के जवाई थे, एक बार जब वो सुसराल आये तो उन्होंने राव चांदा की बहादुरी के किस्से सुने , सो उन्होंने घमंड में कहा दिया ''ऐसा बहादुर है राव चांदा तो मेरे बूंदी की गणगौर लूट के बता ।"
राव चांदा को जब ये बात पता चली तो उन्होंने अपने 24 सवार तैयार किये, और वैस बदल कर गणगौर सवारी से पहले बूंदी में आ कर छुप कर रहने लगे, और अपने आदमियों से पुरे गणगौर की सवारी निकलने वाले मार्ग की अच्छे से छान- बीन कर अपनी योजना बना ली ।
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चुकि उस वक़्त एक दुसरे की गणगौर लूट लेना आम बात थी, क्योकि गणगौर माता की मूर्ति पर ठिकाने/राज्य का सब से अच्छा गहना चड़ा होता था, लूटने वाले के लिए शान की बात थी और जिस की गणगौर है उनकी प्रतिस्था की बात होती थी ।

सो गणगौर की सवारी के साथ भारी भरकम सेना चलती थी, और कड़ा पहरा होता था, बूंदी की गणगौर की सवारी को बूंदी शहर में होते हुए जाना होता था और फिर उनको एक नदी पार करनी होती थी, जो की वो नाव से करते थे, राव चांदा ने देख लिया की ज़मीन मार्ग पर गणगौर लूटना संभव नहीं होगा, सो वो अपने साथियों के साथ नदी में छिप जाते है, और जैसे ही गणगौर की नाव बीच नदी में आती है, वो हमला कर गणगौर लूट लेते है, और तैर कर नदी के अगले पड़ाव पर अपने तैयार खड़े घोड़ो पर सवार हो कर बूंदी से निकल लेते है ।

इस योजना में राव चांदाजी सफल रहे बलुन्दा ठिकाने में आज भी जो ईशर -गणगौर रखी है, जो बूंदी से लूटी गयी थी !!

राव चंदाजी के बूंदी राज्य की गणगौर लूट लेने के प्रसंग पर बनी कहावत :
''"हाडा ले डुबिया गणगौर"...!!

1 comment

  1. परसों ही इस प्रकरण पर लिखने की सोच रहा था, बस समय ही नहीं मिला| अब आपने लिख दी, तो नेट पर यह कहानी उपलब्ध हो गई :)

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