Friday 9 September 2016

राजा मानसिंह आमेर कि उङीसा पर चढाई ।


उड़ीसा पर चढ़ाई - राजा मानसिंह आमेर ।


जब उड़ीसा प्रान्त के बलवाइयों ने फिर से सिर उठाया, तब 35 साल के मान सिंह जी ने झारखंड के रास्ते से उड़ीसा पर चढ़ाई की, उड़ीसा प्रान्त के शासनकर्ता हमेशा अलग शासन करते थे। इससे कुछ पहले प्रतापदेव नामक राजा था, जिसके पुत्र वीरसिंह देव ने अपने बुरे स्वभाव के कारण पिता का पद लेना चाहा और अवसर मिलने पर उसे विष दे दिया, जिससे वह मर गया।

तेलंगाना से आकर मुकुंददेव नामक एक पुरुष इनके यहाँ पर नौकर हो चुका था। वह इस बुरे काम से घबरा कर पुत्र से बदला देने की फ़िक्र में पड़ा। उसने यह प्रकट किया कि मेरी स्त्री मुझे देखने आती है। इस प्रकार बहाना कर शस्त्रों से भरी हुई डोलियाँ दुर्ग में जाने लगीं और बहुत सा युद्ध का सामान दो सौ अनुभवी मनुष्यों के साथ दुर्ग में पहुँच गया।

वहाँ उसका काम जल्दी समाप्त हो गया और उसे सरदारी मिल गई। यह कोई अच्छी चाल नहीं है कि पूर्वजों के संचित कोष पर राजा अधिकार कर ले; पर इसने कोष के सत्तर तालों को तोड़कर उनमें का संचित धन ले लिया। यद्यपि इसने दान बहुत किया, पर यह आज्ञापालन के रास्ते से हट गया।

सुलेमान किर्रानी ने, जिसका बंगाल पर अधिकार हो गया था, अपने पुत्र वायजीद को झारखण्ड के रास्ते से इस प्रान्त पर भेजा और इसकंदर ख़ाँ उजबेग़ को, जो अकबर के पास विद्रोह करके सुलेमान किर्रानी के पास चला आया, था साथ कर दिया।

राजा ने अपने सुख के कारण दो सेनाएँ झपटराय और दुर्गा तेज़ के अधीन भेजी। ये दोनों स्वामीद्रोही शत्रु के सेनाध्यक्षों से मिल कर युद्ध से लौट आए। बड़ी अतिष्ठा हुई। निरुपाय होकर राजा ने शरीर का त्यागना विचार कर बायजीद का सामना किया। उसकी अधीनता में घोर युद्ध हुआ। जिसमें राजा और झपटराय मारे गए तथा दुर्गा तेज़ सरदार हुआ। सुलेमान ने उसको कपट से अपने पास बुलवा कर मरवा डाला और प्रान्त पर अपना अधिकार कर लिया[3]।

मुनइम ख़ाँ ख़ानख़ानाँ और ख़ानेजहाँ तुर्कमान की सूबेदारी में उस प्रान्त से बहुतेरे सरदार साम्राज्य में चल आए। बंगाल के सरदारों की गड़बड़ी में कतलू ख़ाँ लोहानी वहाँ प्रबल हो उठा। जब राजा उसी वर्ष प्रान्त में गया, तब कतलू ने उन पर चढ़ाई की।

जब बादशाही सेना परास्त हो गई, तब राजा दृढ़ नहीं रह सकते थे। पर कतलू (जो की बीमार था) एकाएक मर गया और उसके प्रधान ईसा ने उसके छोटे पुत्र नसीर ख़ाँ को सरदार बनाकर राजा से संधि कर ली। राजा जगन्नाथ जी का मन्दिर उसकी भूसम्पत्ति सहित लेकर बिहार लौट गए। यह मन्दिर हिन्दुओं के प्रसिद्ध तीर्थों में से एक है और परसोतम नगर में समुद्र के पास है। उसमें श्रीकृष्ण जी, उनके भाई और बहिन की चंदन की मूर्तियाँ हैं।

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