Monday 25 September 2017

राजपूत क्षत्रिय शाही राजवंश (काबुल और जाबुल के राज्य

राजपूत क्षत्रिय शाही राजवंश
अपगणस्थान (अफगानिस्तान)



काबुल और जाबुल के राज्य

650-876 ई के मध्य इन दोनों भारतीय राज्यों ने अरब के मुसलमान आक्रमणकारियों का सफलता से सामना किया था । तक्षशिला महाविहार विश्वविद्यालय जो आब पाकिस्तान में इस्लामाबाद के पास है की देख-रेख ये ही दोनों राज्य किया करते थे ।

अरब के आक्रमणों में इन राज्यों का एक वीर सामन्त था जिसका नाम रणमल था । अपने द्वारा देश धर्म रक्षा में योग्य नेतृत्व, बहादुरी और शौर्य के किस्से पूरे अरब देश और मध्य एशिया में प्रसिद्ध हो गए थे ।

काबुल और जाबुल राज्य पर तिब्बत मूल का तुर्की शाही वंश का राजा लागातुर्मन जो शायद बौद्ध था, राज्य कर रहा था ।

850-865 ई के मध्य लागातुर्मन के कल्लार नाम के मंत्री ने राजा को पदच्युत करके हिन्दू शाही वंश का आरम्भ किया । कल्हण रचित राजतंरगिणी में जो कश्मीर का प्राचीन इतिहास है कल्लर के हिन्दू शाही वंश को क्षत्रिय राजपूत बताया गया है ।

870 ई में एक याकुब नाम के तुर्क डाकू ने कपट, मित्रद्रोह और धूर्तता द्वारा शाही वंश का काबुल और जाबुल से अधिकार समाप्त कर दिया । जाबुल राज्य तो समाप्त हो गया परन्तु काबुल का हिन्दू शाही वंश अपनी नई राजधानी उदभाण्डपुर से शासन करने लगा । इस वंश ने 60 वर्ष 4 पिढी़ तक लगातार देश धर्म की रक्षा की ।

962-63 ई में खुरासान के सुबेदार अलप्तगीन गजनी के सुल्तान अबू लवीक को हटाकर स्वयं गजनी का सुल्तान बन गया । यहां से गजनवी वंश की शुरुआत हुई ।

Sunday 24 September 2017

सम्राट भोजदेव रघुवंशी प्रतिहार (प्रथम) आदिवराह कन्नौज (836-882 ई.)

सम्राट भोजदेव रघुवंशी प्रतिहार (प्रथम) आदिवराह 
कन्नौज (836-882 ई.)

प्रतिहार राजपूतों का मूल स्थान गुजरात-राजस्थान था । मंडोर और भीनमाल इनकी पुरानी राजधानियां थी । 550 ई. के बाद वे प्रसिद्धि में आए ।

728 ई. के पूर्व उन्होंने उज्जैन मालवा जीता और 795-833 ई. के बीच नागभट्ट द्वितीय ने कन्नौज पर अधिकार कर लिया । उनके पुत्र राजा रामभद्र की 836 ई. में मृत्यु के बाद, उनके पुत्र भोजदेव प्रथम कन्नौज के सम्राट बने ।

सम्राट भोजदेव प्रतिहार प्रथम भारत के महान शासकों में से एक था वह सैन्य विध्या का ज्ञाता था । सुलेमान अरब यात्री 851 ई. में लिखता है कि भोज की विशाल सेना थी, सुन्दर घुङ सेना थी, देश समृद्ध था, अरबी मुसलमानों को देश के लिये घातक समझता था । राजमार्ग डाकुओं से मुक्त थे । भोज का राज्य उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, राजस्थान, सौराष्ट्र, दक्षिणी-पूर्वी पंजाब तथा बिहार के कुछ भाग तक विस्तृत था । कन्नौज उसकी राजधानी थी ।

अल मसुदी लिखता है कि जब भी अरबों को सिंध से निकालने के लिए भोज सैनिक प्रयास करने लगता है, अरबी मुसलमान मुल्तान में स्थित सूर्य मन्दिर तोङने का डर दिखाते है, जिसके कारण राजा भोज रुक जाता है ।

भगवान श्रीराम के भाई लक्ष्मण, राम के प्रतिहारी थे इसी कारण लक्ष्मण के वंशज प्रतिहार कहलाते थे ।प्रतिहार वंश में भोज महानतम था । वह यशस्वी और सागर के समान शान्त था । वह निरभिमान, उज्ज्वल चरित्र, अच्छा प्रशासक और बुराई मिटाने वाला था । वह ऐसा मृदुभाषी था कि जैसे भगवान राम थे ।

भोज एक विजेता और महान सम्राट था जिसने 46 वर्ष तक धर्म की रक्षा की थी । भारता उस पर सदा गर्व करता रहेगा ।

भोजदेव भगवती के उपासक थे और उन्होंने बहुत से मंदिर देवी-देवताओ के बनवाए थे और उनका विरुद आदि वराह था जो कि विष्णु के अवतार के रुप में भार की रक्षा अरब के मुसलमान आक्रमणकारियों से कर रहा था ।

सम्राट महिपाल प्रथम की 942-43 ई. में मृत्यु के बाद प्रतिहार साम्राज्य निर्बल होने लगा और महमूद गजनवी ने 1018 में उसे समाप्त कर दिया ।

Thursday 21 September 2017

राजा रायसल पुत्र लाडखान

राजा रायसल के बड़े लड़के लाडखान जी ने बदले की भावना पर काबू कर पारिवारिक कलह नही होने दी -

                     
                       
                                                        एक वाकिया ।

१५९६ ई में भयंकर अकाल पड़ा, राजा रायसल के पुत्र भोजराज खंडेला में रहकर राज्य व्यवस्था देख रहे थे। इस दुर्भिक्ष में उन्होंने प्रजा के लिये राज्य के अनभंडार खोल दिये। इस से आक्रोशित हो कर उन के सबसे बड़े भाई लाड खान जी के पुत्रों ने  जो की बहुत उदंड थे व अपने आप को खंडेला के भावी शासक समझते थे ने अपने काका भोजराजी को से इस बात को लेकर अपशब्द कहे व  झगड़ा किया जिस में लाडखान जी का लड़का कल्याण सिंह मरा गया।

इस संबंध में प्रसिद्ध है -
"भोज भगर कै कारणे मारयो भंवर कल्याण"

तब तो उसके भाई माधो सिंह आदि भोजराज जी को मारने के लिए उद्धत हुए। यह देख कर लाडखान जी भी युद्ध के लिए तैयार होने लगे।

यह देख कर उन के पुत्र माधो सिंह ने कहा की पिताजी आप को चलने की जरूरत नही है यह बदला तो हम लोग ही लेलेंगे।

तब लाडखान जी ने कहा की मैं तुम्हारे पक्ष में नही अपने भाई के पक्ष में तैयार हो रहा हूँ।
तुम अपने भाई की मौत का बदला लेने जा रहे हो और मैं अपने भाई को बचाने जा रहा हूँ ।

यह सुन कर माधो सिंह ने बदला लेने का विचार त्याग दिया और एक बड़ा गृह कलह टल गया।

पुत्र मोह से बङा भाई का प्रेम अन्यत्र कम ही देखने मिलेगा ऐसा कोई उदाहरण और इसी कारण राजपूत सभी जातियों में अपनी अलग पहचान रखते है ।।

Monday 18 September 2017

सवाई सिंह धमोरा क्षत्रिय युवक संघ के आधार स्तम्भ ।

सवाई सिंह धमोरा क्षत्रिय युवक संघ के आधार स्तम्भ:-


1949 में हुए चौपासनी आंदोलन में सवाई सिंह जी धमोरा के नेतृत्व में 109 लोगो के जत्थे ने गिरफ्तारियां दी।

वही भू स्वामी आंदोलन के लिए दो दल बनाये गए थे जिनमें एक भू स्वामी संघटन और दूसरे में क्षत्रिय युवक संघ के चुने हुए स्वयं सेवकों का क्षत्रिय युवक संघ से सिर्फ सवाई सिंह जी धमोरा ही थे जिन्हें सिर्फ गिरफ्तार होने के निर्देश दिए गए थे ।

भू स्वामी आंदोलन में सबसे ज्यादा जेल में धमोरा साहब रहे और।



प्रधानमंत्री के हस्तक्षेप से सभी मांगे मान कर आंदोलन समाप्त हुआ लेकिन सवाई सिंह जी, तन सिंह जी और आयुवान सिंह जी को जेल से रिहा नही किया गया था।

हाई कोर्ट से तन सिंह जी के रिहाई के आदेश हो गए।
जेल में सवाई सिंह जी और आयुवान सिंह जी रहा गए।

जब मोहर सिंह जी लाखाउ ने देखा कि सरकार की मंशा इनको छोड़ने की नहीं है, तो उन्होंने कार्रवाई की और अंत में ये दोनों 13 अगस्त 1956 को जेल से रिहा कर दिए गए।

इस प्रकार ये आंदोलन समाप्त हुआ।

क्षत्रिय युवक संघ के हर एक निर्देश को हमेशा सर्वोपरि माना, हमेशा समाज हित के अलावा खुद का निज हित नही देखा।

धमोरा साहब के योगदान को शब्दों में बयां नही किया जा सकता ।।
भूस्वामी आंदोलन का नतीजा सभी लोगो की अथक मेहनत का परिणाम था।