Sunday 13 September 2015
झुंझार सिंह जी
झुंझार सिंह जी
वीर झुंझार सिंह शेखावत, गुढ़ा गौड़जी का
"डूंगर बांको है गुडहो, रन बांको झुंझार,
एक अली के कारण, मारया पञ्च हजार !!
एक अली के कारण, मारया पञ्च हजार !!
राजा रायसल दरबारी खंडेला के 12 पुत्रों को जागीर में अलग अलग ठिकाने मिले| और यही से शेखावतों की विभिन्न शाखाओं का जन्म हुआ|इन्ही के पुत्रों में से एक ठाकुर भोजराज जी को उदयपुरवाटी जागीर के रूप में मिली| इन्ही के वंशज 'भोजराज जी के शेखावत" कहलाते है|
भोजराज जी के पश्चात उनके पुत्र टोडरमल उदयपुर (शेखावाटी)के स्वामी बने,टोडरमल जी दानशीलता के लिए इतिहास विख्यात है,टोडरमलजी के पुत्रों में से एक झुंझार सिंह थे,झुंझार सिंह सबसे वीर प्रतापी निडर कुशल योद्धा थे, तत्कालीन समय "केड" गाँव पर नवाब का शासन था,छानवाब की बढती ताकत से टोडरमल जी चिंतित हुए| परन्तु वो काफी वृद्ध हो चुके थे|इसलिए केड पर अधिकार नहीं कर पाए|कहते है टोडरमल जी मृत्यु शय्या पर थे लेकिन मन्न में एक बैचेनी उन्हें हर समय खटकती थी,इसके चलते उनके पैर सीधे नहीं हो रहे थे| वीर पुत्र झुंझार सिंह ने अपने पिता से इसका कारण पुछा|टोडरमल जी ने कहा "बेटा पैर सीधे कैसे करू,इनके केड अड़ रही है"(अर्थात केड पर अधिकार किये बिना मुझे शांति नहीं मिलेगी)| पिता की अंतिम इच्छा सुनकर वीर क्षत्रिये पुत्र भला चुप कैसे बैठ सकता था?
झुंझार सिंह अपने नाम के अनुरूप वीर योद्धा,पित्रभक्त थे !उन्होंने तुरंत केड पर आक्रमण कर दिया| इस युद्ध में उन्होंने केड को बुरी तरह तहस नहस कर दिया| जलते हुए केड की लपटों के उठते धुएं को देखकर टोडरमल जी को परमशांति का अनुभव हुआ,और उन्होंने स्वर्गलोक का रुख किया|इन्ही झुंझार सिंह ने अपनी प्रिय ठकुरानी गौड़जी के नाम पर "गुढ़ा गौड़जी का" बसाया| तत्कालीन समय में इस क्षेत्र में चोरों का आतंक था, झुंझार सिंह ने चोरों के आतंक से इस क्षेत्र को मुक्त कराया| किसी कवि का ये दोहा आज भी उस वीर पुरुष की यशोगाथा को बखूबी बयां कर रहा है-
इस लेख के लेखक- गजेन्द्र सिंह शेखावत
रायसिंह जी बिकानेर
रायसिंह जी बिकानेर
बीकानेर के राजा रायसिंहजी का भाई अमरसिंह किसी बात पर दिल्ली के बादशाह अकबर से नाराज हो बागी बन गया था और बादशाह के अधीन खालसा गांवों में लूटपाट करने लगा इसलिए उसे पकड़ने के लिए अकबर ने आरबखां को सेना के साथ जाने का हुक्म
दिया |
इस बात का पता जब अमरसिंह के बड़े भाई पृथ्वीराजसिंह जी को लगा तो वे अकबर के पास गए
बोले-
" मेरा भाई अमर बादशाह से विमुख हुआ है आपके शासित गांवों में उसने लूटपाट की है उसकी तो उसको सजा मिलनी चाहिए पर एक बात है आपने जिन्हें उसे पकड़ने हेतु भेजा है वह उनसे कभी पकड़ में नहीं आएगा | ये पकड़ने जाने वाले मारे जायेंगे | ये पक्की बात है हजरत इसे गाँठ बांधलें |"
बोले-
" मेरा भाई अमर बादशाह से विमुख हुआ है आपके शासित गांवों में उसने लूटपाट की है उसकी तो उसको सजा मिलनी चाहिए पर एक बात है आपने जिन्हें उसे पकड़ने हेतु भेजा है वह उनसे कभी पकड़ में नहीं आएगा | ये पकड़ने जाने वाले मारे जायेंगे | ये पक्की बात है हजरत इसे गाँठ बांधलें |"
अकबर बोला- "पृथ्वीराज !
हम तुम्हारे भाई को जरुर पकड़कर दिखायेंगे |"
पृथ्वीराज ने फिर कहा- "जहाँपनाह ! वो मेरा भाई है उसे मैं अच्छी तरह से जानता हूँ वो हरगिज पकड़ में नहीं आएगा और पकड़ने वालों को मारेगा भी | पृथ्वीराज के साथ इस तरह की बातचीत होने के बाद अकबर ने मीरहम्जा को तीन हजार घुड़सवारों के साथ आरबखां की मदद के लिए रवाना कर दिया |
पृथ्वीराज ने फिर कहा- "जहाँपनाह ! वो मेरा भाई है उसे मैं अच्छी तरह से जानता हूँ वो हरगिज पकड़ में नहीं आएगा और पकड़ने वालों को मारेगा भी | पृथ्वीराज के साथ इस तरह की बातचीत होने के बाद अकबर ने मीरहम्जा को तीन हजार घुड़सवारों के साथ आरबखां की मदद के लिए रवाना कर दिया |
उधर पृथ्वीराजजी ने अपने भाई अमरसिंह को पत्र लिख भेजा कि- "भाई अमरसिंह ! मेरे और बादशाह के बीच वाद विवाद हो गया है | तेरे ऊपर बादशाह के सिपहसलार फ़ौज लेकर चढ़ने आ रहे है तुम इनको पकड़ना मत, इन्हें मार देना |
और तूं तो जिन्दा कभी पकड़ने में आएगा नहीं ये मुझे भरोसा है | भाई मेरी बात रखना |"
ये वही पृथ्वीराज थे जो अकबर के खास प्रिय थे और जिन्होंने राणा प्रताप को अपने प्रण पर दृढ रहने हेतु दोहे लिखकर भेजे थे जिन्हें पढने के बाद महाराणा प्रताप ने अकबर के आगे कभी न झुकने का प्रण किया था |
और तूं तो जिन्दा कभी पकड़ने में आएगा नहीं ये मुझे भरोसा है | भाई मेरी बात रखना |"
ये वही पृथ्वीराज थे जो अकबर के खास प्रिय थे और जिन्होंने राणा प्रताप को अपने प्रण पर दृढ रहने हेतु दोहे लिखकर भेजे थे जिन्हें पढने के बाद महाराणा प्रताप ने अकबर के आगे कभी न झुकने का प्रण किया था |
पृथ्वीराज जी का पत्र मिलते ही अमरसिंह ने अपने साथी २००० घुड़सवार राजपूत योद्धाओं को वह पत्र पढ़कर
सुनाया, पत्र सुनने के बाद सभी ने अपनी मूंछों पर ताव देते हुए मरने मारने की कसम खाई कि- "मरेंगे या मरेंगे |" अमरसिंह को अम्ल (अफीम) का नशा करने की आदत थी | नशा कर वे जब सो जाते थे तो उन्हें जगाने की किसी की हिम्मत नहीं होती थी कारण नशे में जगाने पर वे बिना देखे, सुने सीधे जगाने वाले के सिर पर तलवार की ठोक देते थे | उस दिन अमरसिंह अफीम के नशे में सो रहे थे कि अचानक आरबखां ने अपनी सेनासहित "हारणी खेड़ा" नामक गांव जिसमे अमरसिंह रहता था को घेर लिया पर अमरसिंह तो सो रहे थे उन्हें जगाने की किसी की हिम्मत नहीं हो रही थी ,कौन अपना सिर गंवाना चाहता |
सुनाया, पत्र सुनने के बाद सभी ने अपनी मूंछों पर ताव देते हुए मरने मारने की कसम खाई कि- "मरेंगे या मरेंगे |" अमरसिंह को अम्ल (अफीम) का नशा करने की आदत थी | नशा कर वे जब सो जाते थे तो उन्हें जगाने की किसी की हिम्मत नहीं होती थी कारण नशे में जगाने पर वे बिना देखे, सुने सीधे जगाने वाले के सिर पर तलवार की ठोक देते थे | उस दिन अमरसिंह अफीम के नशे में सो रहे थे कि अचानक आरबखां ने अपनी सेनासहित "हारणी खेड़ा" नामक गांव जिसमे अमरसिंह रहता था को घेर लिया पर अमरसिंह तो सो रहे थे उन्हें जगाने की किसी की हिम्मत नहीं हो रही थी ,कौन अपना सिर गंवाना चाहता |
आखिर वहां रहने वाली एक चारण कन्या "पद्मा" जिसे अमरसिंह ने धर्म बहन बना रखा था ने अमरसिंह को जगाने का निर्णय लिया | पद्मा बहुत अच्छी कवियत्री थी | उसने अमरसिंह को संबोधित कर एक ऐसी वीर रस की कविता सुनाई जो कविता क्या कोई मन्त्र था, प्रेरणा का पुंज था, युद्ध का न्योता था | उसकी कविता का एक एक अक्षर एसा कि कायर भी सुन ले तो तलवार उठाकर युद्ध भूमि में चला जाए | कोई मृत योद्धा सुनले तो उठकर तलवार बजाने लग जाये |
पद्मा की कविता के बोलों ने अमरसिंह को नशे से उठा दिया | वे बोले - "बहन पद्मा ! क्या बादशाह
की फ़ौज आ गयी है ?"
अमरसिंह तुरंत उठे ,शस्त्र संभाले,अपने सभी राजपूतों को अम्ल की मनुहार की | और घोड़े पर अपने साथियों सहित आरबखां पर टूट पड़े | उन्होंने देखा आरबखां धनुष लिए हाथी पर बैठा है और दुसरे ही क्षण उन्होंने अपना घोडा आरबखां के हाथी पर कूदा दिया , अमरसिंह के घोड़े के अगले दोनों पैर हाथी के दांतों पर थे अमरसिंह ने एक हाथ से तुरंत हाथी का होदा पकड़ा और दुसरे हाथ से आरबखां पर वार करने के उछला ही था कि पीछे से किसी मुग़ल सैनिक में अमरसिंह की कमर पर तलवार का एक जोरदार वार किया और उनकी कमर कट गयी पर धड़ उछल चूका था,
अमरसिंह का कमर से निचे का धड़ उनके घोड़े पर रह गया और ऊपर का धड़ उछलकर सीधे आरबखां के हाथी के होदे में कूदता हुआ पहुंचा और एक ही झटके में आरबखां की गर्दन उड़ गयी | पक्ष विपक्ष के लोगों ने देखा अमरसिंह का आधा धड़ घोड़े पर सवार है और आधा धड़ हाथी के होदे में पड़ा है और सबके मुंह से वाह वाह निकल पड़ा |
एक सन्देशवाहक ने जाकर बादशाह अकबर को सन्देश दिया -" जहाँपनाह ! अमरसिंह मारा गया और बादशाह
सलामत की फ़ौज विजयी हुई |"
अकबर ने पृथ्वीराज की और देखते हुए कहा- "अमरसिंह को श्रधांजलि दो|"
पृथ्वीराज ने कहा - "अभी श्रधांजलि नहीं दूंगा, ये खबर पूरी नहीं है झूंठी है |"
तभी के दूसरा संदेशवाहक अकबर के दरबार में पहुंचा और उसने पूरा घटनाकर्म सुनाते हुए बताया कि- "कैसे अमरसिंह के शरीर के दो टुकड़े होने के बाद भी उसकी धड़ ने उछलकर आरबखां का वध कर दिया |"
अकबर चूँकि गुणग्राही था ,अमरसिंह की वीरता भरी मौत कीई कहानी सुनकर विचलित हुआ और बोल पड़ा - "अमरसिंह उड़ता शेर था, पृथ्वीराज !
भाई पर तुझे जैसा गुमान था वह ठीक वैसा ही था ,अमरसिंह वाकई सच्चा वीर राजपूत था | काश वह हमसे रूठता नहीं |"
अमरसिंह की मौत पर पद्मा ने उनकी याद और वीरता पर दोहे बनाये -
आरब मारयो अमरसी, बड़ हत्थे वरियाम,
हठ कर खेड़े हांरणी, कमधज आयो काम |
कमर कटे उड़कै कमध, भमर हूएली भार,
आरब हण हौदे अमर, समर बजाई सार ||
राव कुँपाजी
राव कुँपाजी :-
राव कुंपा जी जिन्होंने मरुधरा पर अपना अमर बलिदान दिया, जिसका स्वरुप ये वीररस गीत है ।
जोधाणे माल, अजै गढ़ जैतो ।
कूंप बीक पुर राज करै ।।
कूंप बीक पुर राज करै ।।
लाखाँ लोग चढ़ै ज्यां लारे ।
दिल्ली आगरो दहूं डरै ।।
दिल्ली आगरो दहूं डरै ।।
माल धणी अर जैत मुसाहिब ।
कूप करण दीवाण कहै ।।
कूप करण दीवाण कहै ।।
बेगङ अरवा सदा धुर वामि ।
वडरा जीमणीयाल बहै ।।
वडरा जीमणीयाल बहै ।।
गंगावत मंडोर गरजियो ।
पचाणोत बावन गढ़पाट ।।
पचाणोत बावन गढ़पाट ।।
सुत मेहराज जंगल धर सौहे ।
धङे न कोई हूवा घाट ।।
धङे न कोई हूवा घाट ।।
अनमां नाम उनथां नाथै ।
बलवन्त भरै गयण सु बाथ ।।
बलवन्त भरै गयण सु बाथ ।।
असमर त्याग कमंधा आगे ।
हिन्दू तूरक न काढ़ै हाथ ।।
हिन्दू तूरक न काढ़ै हाथ ।।
Saturday 12 September 2015
Wednesday 9 September 2015
सामन्त :-
सामन्त :-
कैसे हो दादाजी !
बेटा कोई 8 दशक बीत गये इन आँखों ने क्या कुछ नही देखा ?
मुझे याद है भरी जवानी के वो दिन जब देश झूठी आजादी कि तरफ दौड़ रहा था,
मैं खुद सामन्तों के विरुद्ध झण्डा लिये उत्साह से घुमा करता था !!
(और एक गहरी श्वास छोड़ते हुए बोले हाय रे देश कि किस्मत ।)
(और एक गहरी श्वास छोड़ते हुए बोले हाय रे देश कि किस्मत ।)
आज आजादी के इतने सालो बाद भी वो मंजर याद आता है,
वो जो उँचा टिल्ला है वहाँ ठाकुर लाल सिंह जी का किला था,
कितने दीन दुःखीयो को उस किले बहार खङे होकर गुहार लगाने से न्याय मिला है याद है मुझे !!
आज उनका परिवार तो इस गाँव मे नहीं पर मुझे याद है,
मेरी दादी मुझे यह कहते हुवे सुबह उठाती थी कि ठाकुर साहब सूर्य को जल चढाने छत पर आ रहे है मुंह देख ले बङा शुभ दिन निकलेगा ।
मेरी दादी मुझे यह कहते हुवे सुबह उठाती थी कि ठाकुर साहब सूर्य को जल चढाने छत पर आ रहे है मुंह देख ले बङा शुभ दिन निकलेगा ।
मुझे याद है तिज-त्यौहार और वो मैले जिनमें ठाकुर साहब गाँव कि खुशी के लिये राजकोष से धन खर्च करते थे ।
हम जहाँ उत्साह से खेलते कूदते हुवे बङे हुवे वो ठाकुर साहब का श्याम बाग और कृष्ण मन्दिर तो अब एक याद बनकर रह गया ।
हमारे गाँव कि चर्चा थी जमाने भर मे थी, कितने खुशहाल थे हम सब !!
लाल सिंह जी जब गढ़ से निकलते तो गाँव के बङे बूढ़े भी उनके सम्मान मे खड़े हो जाते ।और वो हर गरीब दुखयारे कि बात सुनते थे ।
बेटा जब ये अंग्रेजी शिक्षा आयी तो हमें सामन्तों के बारे में गलत प्रचारित किया गया,
तब मेरी दादी इस गाँव के चौक के बिचो-बिच बैठकर हमें समझाती थी कि तुम्हारी मती खराब हो गयी है,
काश हम मेरी दादी कि बात समझ पाते ।
तब मेरी दादी इस गाँव के चौक के बिचो-बिच बैठकर हमें समझाती थी कि तुम्हारी मती खराब हो गयी है,
काश हम मेरी दादी कि बात समझ पाते ।
देश आजाद हुआ और उनकी जमीने गयी,
पर किले के चारों तरफ कि जमिन गढ़ के नाम थी,
लाल सिंह जी ने फिर भी पुरे गाँव को बसने के लिये जमिन दी ।
पर किले के चारों तरफ कि जमिन गढ़ के नाम थी,
लाल सिंह जी ने फिर भी पुरे गाँव को बसने के लिये जमिन दी ।
हम सामन्तों का विरोध करते रहे वो खुशी खुशी हमारी खुशी के लिये सब कुछ त्यागते गये ।
लाल सिंह जी के पत्र व्यवहार है बेटा मेरे पास,
लाल सिंह जी के पत्र व्यवहार है बेटा मेरे पास,
साफ साफ लिखा है उन्होंने हम लोक कल्याण के लिये जागीरो को त्याग रहे है ।
(अब क्या बताउ आज लोक मे गरीब का कोई कल्याण नही हो सकता )
(अब क्या बताउ आज लोक मे गरीब का कोई कल्याण नही हो सकता )
लोक मे नयी कानून व्यवस्था है गरीब कि कोई सुनता नही ।
अब उस किले के बाहर खड़े होकर गुहार लगाने से न्याय नही मिलता !!
हम अपने ही हाथो अनाथ हो गये बेटा !!
हम अपने ही हाथो अनाथ हो गये बेटा !!
आज भी ये बूढ़ी आँखें देख रही है कि उस खण्डहर किले से कोई लाल सिंह जी आये और हम गरीबों कि सुने ।।
लेखन - बलवीर राठौड़ डढेल ।
अखण्ड, प्रचण्ड और खण्ड - खण्ड
अखण्ड, प्रचण्ड और खण्ड - खण्ड :-
खण्ड-खण्ड प्रचण्ड था जिसका, वो मेरा भारत था अखण्ड !
खण्ड-खण्ड हुवा भारत मेरा, ना दिखता अब कुछ प्रचण्ड !!
भीष्म से भयंकर वीर से अर्जुन के अँधा-धुन्द तीर से, भारत दिखता था प्रचण्ड !
शकुनी से अपने मामा ने देखो, भारत को किया खण्ड-खण्ड !!
कुम्भा के कर-कमलो में, भारत दिखता था अखण्ड !
जयचंद कि जयकर गूँजती, भारत दिखता था प्रचण्ड !
जयचंद कि जयकर गूँजती, भारत दिखता था प्रचण्ड !
आल्हा-उदल से उदार झुन्झते, भारत दिखता था अखण्ड !!
गोरा-बादल का घमासान देखकर, भारत दिखा था अखण्ड !!
केशरिया निशानी अखण्ड कि, जौहर ज्वाला थी प्रचण्ड !
खण्ड-खण्ड हुवा भारत मेरा, कुछ ना दिखता अब प्रचण्ड !!
रजपूती शौर्ये को देखकर, भारत दिखता था प्रचण्ड !!
रजपूती शौर्ये था प्रचण्ड, अब रजपूती भी हुयी खण्ड-खण्ड !
बिन रजपूती के मेरा भारत, कैसे रह पाता अखण्ड !!
सिंहा से सरताज देखकर, भारत लगता था प्रचण्ड !
पाबू के परोपकार देखकर, भारत दिखता था अखण्ड !!
बिन राणा और शिवा के, भारत दिखता अब खण्ड-खण्ड !
मान सिंह कि काबुल फतेह से, भारत दिखता था प्रचण्ड !
मान सिंह के बिना मान के, भारत हुवा था खण्ड-खण्ड !!
दुर्गादास का साहस अखण्ड था, भारत दिखता था प्रचण्ड !
दुर्गादास बिना ना कोई आश, भारत दिखता अब खण्ड-खण्ड !!
अमर सिंह तो अमर हुवे पर, भारत दिखता था प्रचण्ड !
खण्ड-खण्ड अब भारत मेरा, कुछ न दिखता अब प्रचण्ड !!
फत्ता सा फौलादी झुन्झता, भारत दिखता था अखण्ड !!
सुरों से इन वीरो से, भारत दिखता था प्रचण्ड !
पण्डो से पाखण्डो से, भारत हुवा खण्ड-खण्ड !!
बल-बुद्धि थी प्रचण्ड और मेरा भारत था अखण्ड !
बिन बल-बुद्धि के कैसे, भारत रहे अब प्रचण्ड !!
खण्ड-खण्ड पर खाण्डा खड़का, तलवारे भी थी प्रचण्ड !
खण्ड-खण्ड हुवा खाण्डा अब तो, तलवारे कैसे रहे प्रचण्ड !!
नर-मुण्डो की माला पहने, भारत दीखता था प्रचण्ड !
नर-मुण्डो की माला बिन, भारत दिखता अब खण्ड-खण्ड !!
पीढ़ी-पीढ़ी खण्ड-खण्ड हुवा और शांत हुवा भारत अखण्ड !
पीढ़ी-पीढ़ी प्रचंडता सिमटी, भारत दिखता है अब खण्ड -खण्ड !!
खण्ड-खण्ड प्रचण्ड था जिसका, वो मेरा भारत था अखण्ड !
खण्ड-खण्ड हुवा भारत मेरा, ना दिखता अब कुछ प्रचण्ड !!
रियासत -ए- मारवाड़ :-
रियासत- ए - मारवाड़ :-
मारवाड़ रियासत हो, राठौड़ो का राज हो !
रणवीरो में रोश हो, जौधा जैसा जोश हो !!
पिथल सा पानी हो, कुम्पा कि कहानी हो !
मीरा सि मेड़तानी हो, साथ माँ भटयाणि हो !!
रक्त में रवानी हो, रण-भूमि इसकी निशानी हो !
शेखा इसके शानी हो, सच्ची ये कहानी हो !!
चन्द्र सेन चौतरफा हो, माँ नाग्नेच्या रि कृपा !
जसवंत सिंह सि झुंझलाहट, राठौड़ो कि हर तरफ आहट हो !!
गज सिंह कि गर्जना हो, हणुवन्त सिंह कि हुँकार हो !
मारवाड़ का गुणगान हो, हाथा में तलवार हो !!
रण-बंको को रहम हो, पर रण -भूमि सबसे अहम हो !
रिडमल सि राजनीती हो, आ बात अठे बीती हो !!
चाम्पा सा चरित्र हो, मुकन्दास सा मित्र हो !
मेडतिया रि वो मार हो, अमर सिंह सि कटार हो !!
कांधल रि किर्ति हो, माँ करणी रि कृपा हो !
मालदेव सि मात हो, राठौड़ जग - विख्यात हो !!
जैमल रि जयकार हो, राजपुताना रि पुकार हो !
फत्ता सा फौलाद हो, शेखा सी औलाद हो !!
जौधा जैसा जंगी हो, तो भाग ज्यावे फिरंगी हो !
पाबु रा प्रवाडा जो याद करया आवे आडा !!
दारू हो दाखिरा रि, धरती हो आ वीरा रि !
शूरा हो शिकार हो, हाथा में तलवार हो !!
दुदाजी रा दिदार हो, हाथा में तलवार हो !
आसोप से आश हो, उदा से उम्मीद हो !!
दुर्गा जैसा दम हो, साथ आप और हम हो
मारवाड़ लुन्ठो होवे, रण-वीरा रो खूंटो होवे !!
गिरी -सुमेल पर गर्व हो, राजपूत एकता सर्वे हो !
तलवारा रा वार हो, राठौड़ी रि जयकार हो !!
वही आन बान शान हो, राजपुताना अपनी जान हो !
रणवीरो में रोश हो, जौधा जैसा जोश हो !!
पिथल सा पानी हो, कुम्पा कि कहानी हो !
मीरा सि मेड़तानी हो, साथ माँ भटयाणि हो !!
रक्त में रवानी हो, रण-भूमि इसकी निशानी हो !
शेखा इसके शानी हो, सच्ची ये कहानी हो !!
चन्द्र सेन चौतरफा हो, माँ नाग्नेच्या रि कृपा !
जसवंत सिंह सि झुंझलाहट, राठौड़ो कि हर तरफ आहट हो !!
गज सिंह कि गर्जना हो, हणुवन्त सिंह कि हुँकार हो !
मारवाड़ का गुणगान हो, हाथा में तलवार हो !!
रण-बंको को रहम हो, पर रण -भूमि सबसे अहम हो !
रिडमल सि राजनीती हो, आ बात अठे बीती हो !!
चाम्पा सा चरित्र हो, मुकन्दास सा मित्र हो !
मेडतिया रि वो मार हो, अमर सिंह सि कटार हो !!
कांधल रि किर्ति हो, माँ करणी रि कृपा हो !
मालदेव सि मात हो, राठौड़ जग - विख्यात हो !!
जैमल रि जयकार हो, राजपुताना रि पुकार हो !
फत्ता सा फौलाद हो, शेखा सी औलाद हो !!
जौधा जैसा जंगी हो, तो भाग ज्यावे फिरंगी हो !
पाबु रा प्रवाडा जो याद करया आवे आडा !!
दारू हो दाखिरा रि, धरती हो आ वीरा रि !
शूरा हो शिकार हो, हाथा में तलवार हो !!
दुदाजी रा दिदार हो, हाथा में तलवार हो !
आसोप से आश हो, उदा से उम्मीद हो !!
दुर्गा जैसा दम हो, साथ आप और हम हो
मारवाड़ लुन्ठो होवे, रण-वीरा रो खूंटो होवे !!
गिरी -सुमेल पर गर्व हो, राजपूत एकता सर्वे हो !
तलवारा रा वार हो, राठौड़ी रि जयकार हो !!
वही आन बान शान हो, राजपुताना अपनी जान हो !
हठीलो राजस्थान ।।
तुने सदैव युद्ध-भूमि की अग्रिम पंक्ति में रहकर
भगवान शिवजी की मुण्ड-माला के लीए चुन-चुन कर शत्रुओं के शीश भेजे हैं ।
तेरे बाहु-बल के भरोसे ही इस देश के रण-वाध्य ( नगाड़े ) बजते आये हैं ।।
साभार - हठीलो राजस्थान
लेखक - आयुवान सिंह हुडील
लेखक - आयुवान सिंह हुडील
Sunday 6 September 2015
Subscribe to:
Posts (Atom)