Monday 9 January 2017

सवाई सिंह जी धमोरा साहब से एक मुलाकात ।

सवाई सिंह जी धमोरा साहब से एक मुलाकात ।

क्षात्र धर्म कि पाठशाला व भुस्वामी आन्दोलन के मुख्य वक्ता जिन्हें साथी भाषण भानु(सूर्य)  कहते थे ।
संघ शक्ति के पुराने सभी लेखों में आदरणीय सवाई सिंह जी धमोरा साहब के लेख भाषण भानु (सूर्य) के नाम से निकलते थे ।

भुस्वामी आन्दोलन में सबसे लम्बे समय तक जेल में रहने वाले और क्षत्रिय युवक संघ के व्योवृद्ध स्वयं सेवक, लेखक सवाई सिंह जी धमोरा साहब से मिलने का कल सौभाग्य मिला एक विशेष बात कि उनकी Library देखने का भी सौभाग्य मिला ।।

सवाई सिंह जी धमोरा साहब कि उम्र अभी 90 के लगभग है लेकिन उनकी स्मृति इतनी तेज है आज भी कि उन्हें हर एक बात के तथ्य नाम सहीत और काल समय सहित याद है, अभी आपका स्वास्थ्य ठिक नही है फिर भी आपने हमें क्षात्र धर्म के कठोर नियम पालन करने का मार्गदर्शन दिया ।।

सवाई सिंह जी धमोरा साहब का कहना था आदमी अपनी औकाल भुल रहा है आज, व्यक्ति समाज से बङा नही होता यह बात समझ नही पा रहे सब, इसीलिए सब कबाङा हो रहा है ।
पढ़ लिख जाने से या पैसा कमाने से आदमी बङा नही बनता आदमी सदैव समाज से छोटा होता है यह बात पहले के राजपूतों में थी अब नही है ।

स्मृति से.....

Sunday 8 January 2017

अमर सिंह राठौड़ नागौर


वीरवर राव अमरसिंह राठौङ की 404वीं जयंती

स्वाभिमान के प्रतीक, आत्मसम्मान व् आन बान की रक्षा करने वाले, दिल्ली की पतशाही को हिला कर रख देने वाले वीरवर राव अमरसिंह राठौर को 404वीं जयंती पर शत: शत: नमन।
राव अमरसिंहजी जोधपुर महाराजा के ज्येष्ठ पुत्र थे, पारिवारिक कारणों के चलते उनको युवराज पद से वंचित होना पड़ा। इस कारण रावजी ने अपने स्वाभिमान के साथ शाही दरबार मे अपनी सेना की सेवा दी। एक दिन काफी दिनों बाद अमरसिंह जी शाही दरबार मे उपस्थित हुए तो शाही दरबार लगा हुआ था और मुगल शासक शाहजंहा का साला सलावत खान जो दिल्ली का प्रधानमन्त्री था, उसने रावजी को अपशब्द कहे तो एक स्वाभिमानी राजपूत यह सहन नहीं कर सका और रावजी ने अपनी कटार निकाली और सलावत खान का वध कर दिया। अगले ही क्षण शाहजंहा पर तलवार से वार कर दिया, लेकिन पहले से सचेत शाहजंहा वंहा से भागने मे सफल हो गया। उनकी इस वीरता पर एक दोहा है :-

"उन मुख ते गगो कहियो, उत् कर गयी कटार।
वार कह नही पायो, जमदत्त हो गयी पर।।"

अर्थात - अमरसिंह जी काफी दिन बाद जब दरबार में आये तो सलावत खान ने उनको कहा की आप इतने दिन कंहा थे तब अमर सिंह जी ने उसको आँख दिखाई तो सलावत खान उनको 'गंवार' कहना चाह रहा था तब उसने 'ग' ही कहा था तभी अमरसिंह जी ने अपनी कटार बाहर निकाल ली और सलावत खान के 'वार' कहने से पहले ही कटार को सलावत के शरीर मे घोंप दी। और घोङे सहित आगरा के किले की दिवार से कुद कर बाहर आ गए।

✍ हिम्मत सिंह राजोद
साभार पुस्तक - "वीरवर राव अमरसिंह राठौङ"

Thursday 5 January 2017

सनातन धर्म रक्षक राजा मानसिंह आमेर का स्मृति समारोह


सनातन धर्म रक्षक राजा मानसिंह आमेर का स्मृति समारोह

सनातन धर्म रक्षक राजा मानसिंह आमेर का स्मृति समारोह जैसे जैसे नजदीक आ रहा है कुकुरमूतों की बौखलाहट बढ रही है ।
स्वाभिमान, धर्म रक्षार्थ संघर्ष इनके समझ से परे है खुद भाजपा, कांग्रेस के यहाँ चाहे उम्र भर से दरी बिछा रहे है पर बाते बङी बङी ।
इनकी नजर में एक व्यक्तित्व महान है तो दुसरा कोई हो नही सकता ।

खैर यह सब मानसिक विकलांगता इसलिए है क्योंकि वह सुनी सुनाई बातों को बङी जोर जोर से प्रचारित करते है उनके लिये नई शोध पूर्ण जानकारी को पचा पाना मुश्किल है ।।

एक कायस्थ राजीव नयन प्रसाद जो भारत के प्रथम राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद के पुत्र थे ने लगातार शोध कर "राजा मानसिंह आमेर" पुस्तक लिखी, इस पुस्तक में लेखक ने सनातन धर्म रक्षक राजा मानसिंह आमेर के संपूर्ण जीवन का वर्णन किया है । उनकी काबुल से कन्याकुमारी तक की विजय और संघर्ष कि गाथा है, कैसे उन्होंने विपरीत परिस्थितियों में भी विजय हासिल की ।।

सबसे बङी बात समकालीन कवियों और लेखकों ने, यहाँ तक कि मुस्लिम सरदारों ने भी माना कि राजा मानसिंह आमेर सनातन धर्म रक्षक है और वह इस्लाम को भारत में फलने फुलने कि संभावना को सदा के लिये खत्म कर देते है, इस विषय पर बिना पढे़ जाने बक बक करना मानसिक दिवालियापन ही है ।।
लेखक राजीव नयन प्रसाद ने पुस्तक राजा मानसिंह आमेर में लिखा है कि काबुल में स्थित वह पाँच राज्य जहाँ हथियार बनते थे और वह हथियार भारत पर आक्रमण करने वाले आक्रान्ताओं को मुफ्त में देते थे और इसके बदले भारत से लुट के माल का हिस्सा लेते थे ।

मोहम्मद बिन कासिम से लेकर राजा मानसिंह आमेर के काबुल अभियान से पहले तक लगातार पठानों ने भारत पर आक्रमण कर मन्दिर लूटे और लोंगों को लुटा ।
एक समय जो भारत ईरान तक अपना केशरिया फहराता था धीरे धीरे backfoot पर आता रहा। हमारी स्थिति यह हो गई कि हम हमारे ही राज्य में हमारे घर किलों में कैद हो जाते थे जब यह बाहरी आक्रमणकारी आते थे हमारी माता बहिनों को जौहर करना पङता और हम केसरियाँ कर अमर हो जाते। इन सब के परिणाम यह होते कि हमारे जौहर व केसरिया करने के बाद आक्रान्ता हमारे राज्य को लूट कर कत्ले आम करते ।

राजा मानसिंह आमेर पहले राजा हुवै जिन्होंने इस बात को जाना कि भारत को इस्लामीकरण से बचाना है तो हमें काबुल में स्थिति उन पाँच राज्यों को तबाह करना पङेगा जहाँ हथियार के बङी संख्या में कारखाने है ।।
हमारी स्थिति उस समय यह थी कि हम हमारे घर में दुश्मन को नही परास्त कर पाते थे। पठान पंजाब, उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल, उङीसा तक पहुंच चुके थे। इस विषम परिस्थिति में मुगलों के साथ गठबंधन करके राजा मानसिंह आमेर ने Defensive policy को खत्म कर दुश्मन के विरुद्ध Aggressive policyy अपनाई और खैबर के दर्रे हो चाहे काबुल के पाँच राज्य सबको नेस्तनाबूद कर दिया ।।

सनातन धर्म रक्षक राजा मान आमेर के बारे में ज्यादा जानने के लिये www.dadhel.com पर visit करें ।
एक अन्तिम बात दुनिया में लोग अपने माँ बाप के लात मारने वाले भी पैदा होते है उनसे पूर्वजों के सम्मान कि कल्पना कोरी है इसलिए सकारात्मक मानसिकता के भाईयों से निवेदन है किचङ से दुर रहे ।।
✍�✍�
बलवीर राठौड़ डढे़ल-डीडवाना
*संदर्भ*
राजा मानसिंह आमेर स्मृति समारोह
29 जनवरी 2017
जयपुर ।

Sunday 1 January 2017

बिहारी द्वारा सनातन धर्म रक्षक राजा मानसिंह आमेर कि प्रशंसा

बिहारी द्वारा सनातन धर्म रक्षक राजा मानसिंह आमेर कि प्रशंसा |


हिन्दी साहित्य के मूर्धन्य कवी बिहारी द्वारा सनातन धर्म रक्षक राजा मानसिंह आमेर कि प्रशंसा |
बिहारी मिर्जा राजा जयसिंह जी के आश्रीत कवि थे |
प. लोकनाथ सिलाकारी की पुस्तक "बिहारी दर्शन" से यह छन्द जो कि बिहारी कृत है |


महाराज मानसिंह पूरब पठान मारे
सोणित की सरिता अजौं न सिमटत है ||

सुकवी विहारी अजौं उठत कबंध कूदी
अजु लगि रन ते सोही ना मिटत है ||

अजुलौं पिसाचन की चहलन तैं चौंकी चौंकी
सची मघवा की छतियाँ सो लिपटत है ||

आजु लगि ओढे़ं है कपाली आली आली खालें
आजु लगि काली मुख लाली ना मिटत है ||

राजा मानसिंह आमेर - बिहार के गवर्नर के रुप में ।

राजा मानसिंह आमेर - बिहार के गवर्नर के रुप में ।


बिहार में जिस शक्तिशाली नीति का अनुसरण मानसिंह कर रहे थे उनके अपने लाभ थे । विद्रोही कुचल दिया गया था और शांति तथा मित्रता स्थापित हो चुकी थी ।

सुबे में हर जगह मानसिंह आमेर के अधिकार का अनुभव किया जाने लगा था, बिहार में शांति स्थापना के बाद राजा मानसिंह ने अपना ध्यान उङीया के भूभागों के दमन में लगाया । यध्यपि मुनीमखान और उसके बाद आने वाले गवर्नरों के काल में उङीसा नाम मात्र का साम्राज्य का सूबा था पर मुगल सुदृढ़ता से से यहाँ अपना शासन स्थापित नही कर सके थे । अफगान लोग बार बार विद्रोह कर बैठते, और इस प्रकार इस भूभाग में शांति भंग कर देते ।
1583 में दाउदखान की मृत्यु से लेकर कुतलुखान जो अफगान सरदार था, उङीसा का वास्तविक अधिपती बन बैठा था । बंगाल के गवर्नर सादिकखान द्वारा कुतलुखान की पराजय के बावजूद अफगान सरदार पूरी तराह दबाया नहीं जा सका था । उसने अपनी लूट मार पहले की तरह जारी रखी जिसके कारण विवश होकर बंगाल के गवर्नर को उससे शांति की सन्धि करनी पङी । सादिक खान और कुतलुखान के बीच हुई सन्धि से उङीसा अफगानों को इस शर्त के साथ छोड़ दिया गया था कि वे बंगाल से हट जायेंगे । इसी प्रकार उङीसा वास्तव में कुतलुखान के नेतृत्व में अफागानों के हाथ में जा चुका था ।
अब राजा मानसिंह आमेर ने उङीसा को जीतने पर अपना ध्यान लगाया ।
राजा मानसिंह आमेर ने अपना ध्यान बिहार से हटाकर उङीसा पर लगाया । यह प्रदेश विद्रोही पठानों के कब्जे में था । राजा मानसिंह को अफगान लोगों की लूटमार का भारत के उत्तर पश्चिमी सीमान्त प्रदेश में काफी अनुभव हो चुका था । उनकी आदतों और तौर तरीकों के इस अनुभव के कारण राजा ने अप्रैल 1590 में उङीसा विजय का अभियान शुरु किया ।
उङीसा जाते हुए मानसिंह भागलपुर के पास रुके और सैयद खान जो बंगाल का गवर्नर था को अभियान में सम्मिलित होने को कहा, सैयद खान स्वय...ं नहीं गया पर उसने पहाङखान, बाबू-ए-मंकाली, राय पातरदास को तोपखाने के साथ राजा मानसिंह की सेना में सम्मिलित होने के लिये भेज दिया । राजा कि सेना ने जहानाबाद में शिविर स्थापित किया क्योंकि वर्षा शुरु हो गयी थी । राजा के वहाँ ठहरने का एक अन्य कारण भी था । उसे आशा थी कि सैयद मखसुस और बंगाल के अन्य जागीरदार इसी बीच उससे आकर मिल जायेंगे । अफगान सरदार कुतलुखान ने एक बङी फौज बहादुर कुर्रा के नेतृत्व में रायपुर के किले में भेजी जो राजा मानसिंह के शिविर से 50 मील पश्चिम में अवस्थित था ।
क्रमशः

अगली पोस्ट में कुतलुखान और राजा मानसिंह के आमने सामने कि कहानी ।

सनातन धर्म रक्षक राजा मानसिंह आमेर स्मृती समारोह
29 जनवरी 2017
रविवार, 1 बजे से !!
श्री राजपूत सभा भवन जयपुर
निवेदक- इतिहास शुद्धीकरण अभियान !!