Tuesday 21 October 2014

बहादुर सिंह राठौड़ कुङकी !

बहादुर सिंह राठौड़ कुङकी :-



कर तीङा धुकवे तने दौङे बहादुर दौड़ ।
शुर वीर मरुदेश रा रंग खोङा राठौङ ।।

जयमल मेङतिया

"जयमल जपे जपमाला, भागा राव मण्डोर वाला"

Monday 20 October 2014

चाँम्पावत

चाँम्पावत

काहु के दो चार है, काहू के दस बीस ।
रहे उजेनी राङ मे, चाँपावत चालीस ॥

जुध कीयो जोरे जबर, जाण्यो सोह जगत ।
खाग बजाई खैरवे, चौङे चाँपावत ॥

चाँपा थारी चाल, औरा न आवे नी ।
बीकानौ थारे लार, जैपर है जलेब मे ॥

चलियो चांपो चंड, अमर पिंड धर अषव पर ।
पहुँचयो प्रबल प्रचंड, मुगलां दल देखत मुदै ।।

प्राचिर ऊपर पूग्ग, कोई नय नंहलरव कमध ।
पैली पारहि पुग्ग, कपि शिर खाई लाँघकर ।।

कुम्भलगढ

कुम्भलगढ़

कुम्भलगढ़ कटारगढ़, पाजिज अवलन फेर |
संवली मत दे साजना, बसुंज, कुम्भल्मेर ||

रणबंका

रणबंका

वीर धीर गंभीर वर, जीण में खिसकण री न खोड,
जिण सु बाजे जगत में रण-बंका राठौङ !

मरुधरा

मरुधरा

जल उंडा, थल उजला, नारी नवले वेश ।
पुरुष पटघर निपजे, म्हारो मरुधर देश ।।

जहा पानी गहरा हो, जमीं सोने की तरह चमकदार हो,
जहा नारी का वेश सतरंगी हो और 
वहा का पुरुष बलवान और वीर हो ऐसा हमारा मरुधर देश हैं ।

रजथान

रजथान 

सियाळो खाटू भलो, उन्हालो अजमेर,
नागाणों नित रौ भलो, सावण बीकानेर ।

रण-राठौङ

 रण-राठौङ

हु खप जातो खग तले, कट जातो उण ठोङ ।
बोटी-बोटी बिखरती, रेतो रण राठौङ ॥

वसुन्धरा

वसुन्धरा

वसुन्धरा वीरा रि वधु, वीर तीको ही बिन्द |
रण खेती राजपूत रि, वीर न भूले बाल ||

अथार्थ
धरती वीरों की वधु होती है
और युद्ध क्षत्रिय का व्यवसाय |

मरुधरा

मरुधरा

साळ बखाणु सिणधरी, अर मुंग मंडोवर देस ।
झिणो कपङो माळव, तो मारु मरुधर देस ।।

सोनो बायो ना निपजै, मोती लागै ना डाळै ।
रुप उधारो ना मिलै, तो रुळतो फिर गिवार ।।

मंगल - मरण :-

मंगल - मरण :-

मरणो - मरणो सब करै, मरै सकल नर नार !
मरनै पहली जो मरै, सो मरण बळीहार !!

मरै सरब पण ठाकरां, मरनै भेद बहोत !
सूरा रण खेतां मरै, कायर मोचै मौत !!

मरदां मरणा हक्क है, उबरसी गल्हा !
सा पुरसां रा जीवणा, थोड़ा ही भल्ला !!

मरै चोर, कायर मरै, अंतर मरण अपार !
हुवै सोच घर कायरा, सुहडा जस संसार !!

मेवाड़ धर ।

मेवाड़ धर ।

तरकस तीर कमाण, भाला खडगा ढाल ले !
माच्यो जद घमसाण, तुरक तजी मेवाड़ धर !!

चुरु चाली ।

चुरु चाली ।

कादाँ खाया कमध्जा, घी खायो गोला ।
चुरू चाळी ठाकरा, बाजंता ढोळाह ॥

हाठ हताया बिगड्या, गढ़ बिगड्या गोला ।
चूरु थारी ठाकरा बाजंता ढोला ।।

कहावत

खीर मिठाई ब्राह्मण बाणीया
छाछ राबङी जाट गीवार ।
पशुधन माँस खावै तुर्कङा
दारु मिठ्ठि रांगडा (सुरवीर क्षत्रिय)
ये हँस हँस देवै मातरभौम ने आपरा शीश ।।

जयमल-फत्ता

जयमल-फत्ता

जयमल बळता जीवणे, पत्तो बायेँ पासे।
हिँदू चढ़िया चड्यो जस आकाश........।

मेङतिया

मेङतिया

मरण ने मेड़तिया, राज करण ने जोधा।
मरण ने दूदा, जान मेँ ऊदा...........।।

रजपूत

रजपूत

तारो के तेज में चन्द्र छिपे नहीं,सूरज छिपे नहीं बादल छायो !
चंचल नार के नैन छिपे नही, प्रीत छिपे नहीं पीठ दिखायो !!

रण पड़े राजपूत छिपे नहीं, दाता छिपे नहीं मंगन आयो !
कवि गंग कहे सुनो शाह अकबर, कर्म छिपे नहीं भभूत लगायो !!

The Rajput

एक अंग्रेज इतिहासकार लिखता है -

"The Rajputs have learnt nothing and forgotten nothing since the days of Mohamed-bin-kasim".

अर्थात् भारत पर प्रथम मुसलमान आक्रमणकारी मोहम्मद बिन कासिम के समय से लगातार अब तक राजपूतों ने न कुछ सीखा है और ने कुछ भुला है ।

Sunday 19 October 2014

प्रमाण अलेखूं पुख्ता है ।

प्रमाण अलेखूं पुख्ता है ।

प्रमाण अलेखूं पुख्ता है, इतिहास जिकण रो साखी है ।
इण आजादी री इज्जत नैं, म्हे राजस्थान्यां राखी है ।।

म्हैं इतिहासां में बांच्योड़ी, साचकली बात बताऊं हूं ।
घटना दर घटना भारत रै, गौरव री गाथ सुणाऊं हूं ।।

इण गौरवगाथा रै पानां में, सोनलिया आखर म्हारा है ।
कटतोड़ा माथा, धड़ लड़ता, बख्तर अर पाखर म्हारा है ।।

धारां धंसतोड़ां, भड़बंकां, मर कर राखी है आजादी ।
सिंदूर, दूध अर राखी री, कीमत दे राखी आजादी ।।

म्हे रीझ्या सिंधू रागां पर, खागां री खनकां साखी है।
इण आजादी री इज्जत नैं, म्हे राजस्थान्यां राखी है।।

''शक्तिसुत''

Wednesday 15 October 2014

"उतर भट्ट किवाड़ भाटी"

उतर भट्ट किवाड़ भाटी :-

वि. सं. 1233 के करीब यवन सेना अनहलवाङ पर चढाई को चली ।
लोद्रवा के भाटी भोजदेव ने जिनकी पदवी "उत्तर भटट् किवाड़ भाटी" थी ।
ने यवनों के आक्रमण को रोकने के लिए अपने चाचा जैसलदेव को लिखा ।।

"भङ किवाड़ उतराद रा भाटी झेलण भार,
वचन रखा विजराज रो, समहर बांधा सार ।
तोङा धङ तुकराण री, मोडां खान मगेज,
दाखै अनमी भोजदे, जादम करे न जेज" ।।

Friday 10 October 2014

झिरमिर झिरमर मेवा बरसे !!

झिरमिर झिरमर मेवा बरसे !!

खंडेला के देव मंदिर की रक्षार्थ सुजाण सिंह छापोली के बलिदान की गौरव गाथाये शेखावाटी के जन मन में किस रूप से व्याप्त हैं द्रष्टव्य है -

झिरमिर झिरमर मेवा बरसे मोरां छतरी छायी !
कुळ मैं है तो आव सुजाणा फौज देवरै आयी !!
कै न प्यारा छोरी -छोरा कै न प्यारी जोय !
सूजा नै प्यारो देवरो राम करै सो होय !!

सुजाण सिंह के साथ भोळिया नाई भी लड़ाई में था । लोक काव्य ने उसे भी अमर कर दिया -

सोनगिरि पर रह्डू चालै, कर कर के गुमराई !
सुजाण सिंह कै साथ लड़े, अरे भोळियो नाई !!
रे नाई का आछ्या मुंड्या, बिना पाछण मूँड़ !
धन थारी जाई न रै, धन थारी माई न !!

साभार - मदन सिंह शेखावत