Wednesday 29 April 2020

कन्फ़्यूशियस ओर लाओत्से




कन्फ़्यूशियस लाओत्से से मिलने गया, कन्फ़्यूशियस चीन का प्रतिष्ठित विचारक था उसकी बहुत इज्जत थी, सम्राट तक खङे होकर कन्फ़्यूशियस को कहते थे बैठो कन्फ्युसीश ।

कन्फ़्यूशियस जब लाओत्से से मिलने गया उसकी झोपड़ी में तो लाओत्से बैठा था कन्फ़्यूशियस ने चारो तरफ देखा कि कहाँ बैठु लेकिन झौपङी तो एक समान थी उसमें कोई विशेष आसन नही था, लाओत्से ने कन्फ़्यूशियस से कहां बैठ जाओ झोपड़ी को कुछ फर्क नही पङेगा तुम कहाँ बैठे हो झोपड़ी तुम्हें नही देखने वाली ।

कन्फ़्यूशियस बैठ तो गया लाओत्से के कहने पर लेकिन वह लाओत्से क्या कह रहा है सुन नही पा रहे थे बङे बैचेन हो गये, लाओत्से ने फिर कन्फ़्यूशियस से कहाँ तुम तो बैठ गये हो मन को भी बैठा लो ।


कन्फ़्यूशियस वापस लौटा तो अपने शिष्यों से कहाँ कि कोई उस बुढे़ के पास मत जाना, वो खा जायेगा तुम्हें, वह आदमी नही सिंह है ।

ओशो

ओशो कहता है स्त्री पुरुष के बिच संवाद नही हो सकता ।
क्योंकि पुरुष के बातचीत का ढंग तर्क है, और स्त्री तर्क से परिचित नही होती, वह निष्कर्ष पर बात करती है ।

Thursday 23 April 2020

सॉरन किअर्केगार्ड और विन्सेंट वैन गो

जो बात सबको समझ आ जाये उसकी कोई उम्र नही होती

एक आदमी कवीता करता है उसकी कवीता सबको समझ आ जाती है, एक बार सुनकर पढ़कर समझ आ जाती है, तो दो चार दिन से ज्यादा टिकने वाली नही है ।
समझ नही आती, किसी किसी को समझ आती है, शिखर पर जो है उसे समझ आती है तो वो कवीता हजारों साल टिक जाती है ।
एक कालिदास हजारों साल टिक पाता है ।

एक फिल्मी गीत दो महीने भी नही टिक पाता, सभी को समझ आता है, एक दम से धुन पकङ लेता है मौहल्ले मौहल्ले, गाँव गाँव, खेत खेत, गल्ली गल्ली, कुचे कुचे गाया जाता है, बच्चे से बुढे तक उसको गुन गुना लेता है ।

लेकिन अचानक वो खो जाता है, दुबारा उसकी कोई खबर नही मिलती बात क्या है ?
सबकी समझ में इतना आ गया, कि सबकी समझ के तल का था, उसके बचने का कोई उपाय नही है ।

लेकिन जब एक कोई सच में गीत पैदा होता है किसी को समझ नही आता, कभी कभी कवी मर जाता है तब समझ आता है ।


सॉरन किअर्केगार्ड (1813-55) ने किताबें लिखी उसकी जिन्दगी में किसी को पता ने चल सका ।
एक किताब मुश्किल से छाप पाया तो उसकी 5 काँपी बिकि वह भी उसके मित्रों ने खरीदी ।
बाप जो पैसा छोङ गया था, बैंक में जमा था उसी से अपना जिन्दगी भर खर्च चलाया ।
क्योंकि वह तो 24 घंटे सोचने खोजने मे लगा था, कमाने कि फुर्सत ने थी ।
बाप जो छोङ गया उसमें से हर महिने कुछ पैसा निकाल गुजारा चलाता, यही चक्र था ।
जिस दिन बैंक में पैसा खत्म हो गया, उसको पता चला अब खाते में पैसा न बचा है बैंक के बाहर दरवाजे पर ही मर गया ।

क्योंकि जिने का कोई सहारा ना था एक पैसा कही से आ जाये यह संभावना न थी, उसने कहाँ जिने का अब तो कोई महत्व नही ।

सॉरन किअर्केगार्ड के मरने के 100 साल तक उसे किसी ने याद भी नही किया, उसकी किताबों को उसके नाम का कोई पता न था ।
इधरे पिछले पचास साल पहले सॉरन किअर्केगार्ड कि पुनर्खोज हुई, और पिछले कुछ वर्षों में युरोप में जिस आदमी का सर्वाधिक प्रभाव है वह सॉरन किअर्केगार्ड है, और लोग कहते है सैकड़ों वर्ष लगेंगे सॉरन किअर्केगार्ड को समझने में लेकिन उसके गाँव के लोग हंसे, लोगों ने मजाक उङाई कि पागल हो अरे कुछ कमाओ ।


विन्सेंट वैन गो (1853-90) ने जो चित्र बनाये इसके एक एक चित्र कि किमत लाखो में है, एक एक चित्र 5-5, 10-10 लाख में बिकते है ।
और विन्सेंट वैन गो अपने जीवन में एक चित्र ने बेच सका ।
किसी दुकान से 2 कप चाय लिये थे तो एक पेंटिंग दे आया कि पैसे तो नही है, कहीं से सिगरेट का एक पैकेट लिया उसको एक पेंटिंग दे आया कि पैसे तो नहीं है ।

मरने के 60 साल बाद जब उसका पता चलने लगा विन्सेंट वैन गो का तो लोगों ने कबाङ खानों से खोजकर उसके चित्र निकाल लिये ।
किसी होटल में पङा था, किसी दुकान में पङा था, किसी से रोटी ली और एक चित्र दे गया था, जिनके पास पङे मिल गये वो लखपती हो गये थे क्योंकि एक एक चित्र कि किमत 5-5 लाख रुपया हो गयी ।

आज केवल 200 चित्र है उसके, लोग छाती पिट पिट के रोये क्योंकि वह तो कईयो को दे गया था, तो कोई फेंक चुका था कोई नष्ट कर चुका था ।

विन्सेंट वैन गो चित्रकारों में चर्म कोटि का चित्रकार है अब ।
लेकिन अपने वक्त में वह सप्ताह है में पुरे सात दिन रोटी  नहीं खा सका, क्योंकि उसका भाई उसको जितना पैसा देता वो इतना होता था कि वो सात दिन सिर्फ रोटी खा सके ।
तो वो चार दिन रोटि खा लेता और तीन दिन का पैसा बचा के रंग खरीद के चित्र बनाता ।

32 साल कि उम्र में जब बिल्कुल मरणासन्न हो गया, क्योंकि चार दिन खाना खाना और तीन दिन चित्र बनाना यह कैसे चलता तो खुद को गोली मारकर मर गया ।
और लिख गया यह कि अब कोई प्रयोजन नही है क्योंकि कि मैं भाई को व्यर्थ तकलीफ दुं, उसको आखिर रोटी के लिये पैसा तो देना ही पङता है ।
और मुझे जो बनाना था बना लिया एक चित्र जिसके लिये मैं साल भर से रुका था वो आज पुरा हो गया