Sunday 1 January 2017

राजा मानसिंह आमेर - बिहार के गवर्नर के रुप में ।

राजा मानसिंह आमेर - बिहार के गवर्नर के रुप में ।


बिहार में जिस शक्तिशाली नीति का अनुसरण मानसिंह कर रहे थे उनके अपने लाभ थे । विद्रोही कुचल दिया गया था और शांति तथा मित्रता स्थापित हो चुकी थी ।

सुबे में हर जगह मानसिंह आमेर के अधिकार का अनुभव किया जाने लगा था, बिहार में शांति स्थापना के बाद राजा मानसिंह ने अपना ध्यान उङीया के भूभागों के दमन में लगाया । यध्यपि मुनीमखान और उसके बाद आने वाले गवर्नरों के काल में उङीसा नाम मात्र का साम्राज्य का सूबा था पर मुगल सुदृढ़ता से से यहाँ अपना शासन स्थापित नही कर सके थे । अफगान लोग बार बार विद्रोह कर बैठते, और इस प्रकार इस भूभाग में शांति भंग कर देते ।
1583 में दाउदखान की मृत्यु से लेकर कुतलुखान जो अफगान सरदार था, उङीसा का वास्तविक अधिपती बन बैठा था । बंगाल के गवर्नर सादिकखान द्वारा कुतलुखान की पराजय के बावजूद अफगान सरदार पूरी तराह दबाया नहीं जा सका था । उसने अपनी लूट मार पहले की तरह जारी रखी जिसके कारण विवश होकर बंगाल के गवर्नर को उससे शांति की सन्धि करनी पङी । सादिक खान और कुतलुखान के बीच हुई सन्धि से उङीसा अफगानों को इस शर्त के साथ छोड़ दिया गया था कि वे बंगाल से हट जायेंगे । इसी प्रकार उङीसा वास्तव में कुतलुखान के नेतृत्व में अफागानों के हाथ में जा चुका था ।
अब राजा मानसिंह आमेर ने उङीसा को जीतने पर अपना ध्यान लगाया ।
राजा मानसिंह आमेर ने अपना ध्यान बिहार से हटाकर उङीसा पर लगाया । यह प्रदेश विद्रोही पठानों के कब्जे में था । राजा मानसिंह को अफगान लोगों की लूटमार का भारत के उत्तर पश्चिमी सीमान्त प्रदेश में काफी अनुभव हो चुका था । उनकी आदतों और तौर तरीकों के इस अनुभव के कारण राजा ने अप्रैल 1590 में उङीसा विजय का अभियान शुरु किया ।
उङीसा जाते हुए मानसिंह भागलपुर के पास रुके और सैयद खान जो बंगाल का गवर्नर था को अभियान में सम्मिलित होने को कहा, सैयद खान स्वय...ं नहीं गया पर उसने पहाङखान, बाबू-ए-मंकाली, राय पातरदास को तोपखाने के साथ राजा मानसिंह की सेना में सम्मिलित होने के लिये भेज दिया । राजा कि सेना ने जहानाबाद में शिविर स्थापित किया क्योंकि वर्षा शुरु हो गयी थी । राजा के वहाँ ठहरने का एक अन्य कारण भी था । उसे आशा थी कि सैयद मखसुस और बंगाल के अन्य जागीरदार इसी बीच उससे आकर मिल जायेंगे । अफगान सरदार कुतलुखान ने एक बङी फौज बहादुर कुर्रा के नेतृत्व में रायपुर के किले में भेजी जो राजा मानसिंह के शिविर से 50 मील पश्चिम में अवस्थित था ।
क्रमशः

अगली पोस्ट में कुतलुखान और राजा मानसिंह के आमने सामने कि कहानी ।

सनातन धर्म रक्षक राजा मानसिंह आमेर स्मृती समारोह
29 जनवरी 2017
रविवार, 1 बजे से !!
श्री राजपूत सभा भवन जयपुर
निवेदक- इतिहास शुद्धीकरण अभियान !!

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