"राजा मानसिंह आमेर"
भूमिका- देवीसिंह महार साहबविद्वान लेखक ने अकबर व भारमल की मित्रता में जो चकतायी खान की भूमिका का वर्णन किया है वह यथार्थ है किन्तु सम्भवतया पुस्तक 'कूर्मविलास' जो उस समय अप्रकाशित थी, लेखक को देखने को नहीं मिली, जिसमें उल्लेख हैं कि शेरशाह ने जिस युद्ध में हुमायूँ को परास्त किया था उसमें भारमल शेरशाह की तरफ से लङ रहे थे । युद्ध में हुमायूँ को परास्त होकर भागना पङा था, व उसके सेनापति बहरामखाँ को बन्दी बना लिया गया था ।
शेरशाह ने बहराम खाँ के लिए मृत्युदण्ड की घोषणा की, तब राजा भारमल ने शेरशाह से अनुरोध किया था कि ऐसे वीर पुरुष के लिए मृत्युदण्ड उचित नहीं है, इस पर शेरशाह ने उसे मुक्त कर दिया था ।
'कूर्म विलास' में यह उल्लेख है कि मुगल सेनापति शरीफुद्दिन से दुःखी होकर भारमल ने अपने भाई गोपालजी को बहरामखाँ के पास भेजा था । इस प्रसंग में यह उल्लेखनीय है उस समय चकतायी खान से भी बहरामखाँ अधिक प्रभावशाली था, अतः भारमल के साथ अकबर का समझौता कराने में न केवल चकतायी खाँ की, बल्कि बहरामखाँ की भी अहम् भूमिका थी । बहरामखाँ उस समय एक प्रकार से मुगल साम्राज्य का सर्वेसर्वा था, इसलिए तुरन्त, भारमल के साथ मुगल शासन के संबंध सुदृढ़ हो गये ।।
'कूर्म विलास' में यह उल्लेख है कि मुगल सेनापति शरीफुद्दिन से दुःखी होकर भारमल ने अपने भाई गोपालजी को बहरामखाँ के पास भेजा था । इस प्रसंग में यह उल्लेखनीय है उस समय चकतायी खान से भी बहरामखाँ अधिक प्रभावशाली था, अतः भारमल के साथ अकबर का समझौता कराने में न केवल चकतायी खाँ की, बल्कि बहरामखाँ की भी अहम् भूमिका थी । बहरामखाँ उस समय एक प्रकार से मुगल साम्राज्य का सर्वेसर्वा था, इसलिए तुरन्त, भारमल के साथ मुगल शासन के संबंध सुदृढ़ हो गये ।।
बहुत ही मस्त जानकारी है
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