Wednesday 23 May 2018

कैं. गजराजसिंह चौहान

मेरी जीवन गाथा - ठा. ओंकारसिंह बाबरा -
कैं. गजराजसिंह चौहान :-

जयपुर में रहते हुए मेरी जान पहचान कई भले लोगों से हुई। उन्होंने कई प्रकरणों में मेरी सहायता की। मैंने भी बहुत से लोगों की सहायता की। उनकी सूची लम्बी है। मैं उनके नाम नहीं गिनाऊँगा क्योंकि मुझे भय है कि कहीं मैं आत्म-प्रशंसा की फिसलन पट्टी पर पैर न रख दें। जिन भले लोगों से मेरा परिचय हुआ उनमें एक थे कैं. गजराजसिंह चौहान। ये राज्य के शिक्षा विभाग के निदेशक थे। राजस्थान राज्य के निर्माण से पहले वे जयपुर राज्य की सेवा में थे। ये उत्तरप्रदेश के एटा जिले के रहने वाले थे, और जयपुर राज्य में पहले पहल नोबल्स स्कूल के मौतमीन के पद पर नियुक्त हुए थे। अपनी योग्यता से पदोन्नति करते हुए ये शिक्षा विभाग के उच्चतम पद पर पहुँचे। मेरे निवेदन पर इन्होंने कई लोगों को अपने विभाग में अध्यापकों के पद पर नियुक्तियाँ दी।

अब मुझे अपने भतीजे रणवीरसिंह (दिवंगत बड़े भाई खांगसिंहजी के ज्येष्ठ पुत्र) की नौकरी के लिये उनसे निवेदन करना था। मुझे संकोच हुआ कि कहीं बार-बार नौकरियों हेतु निवेदन करने से श्री गजराजसिंह नाराज न हो जाय, परन्तु यह मेरे परिवार का ही मामला था अत: मुझे उनसे निवेदन करना ही पड़ा। मैं जब उनसे मिला तो वे प्रसन्न मुद्रा में थे, क्योंकि उन्हें सरकार शिक्षा विषयक एक सम्मेलन में अमेरिका भेज रही थी, और वे वहीं जाने की तैयारी में लगे हुए थे। मैंने उनसे निवेदन किया कि रणवीरसिंह को न केवल नियुक्ति दी जाय अपितु उसे तिजारा के हाई स्कूल में पदस्थापित किया जाय। इसका कारण मैंने बताया कि रणवीरसिंह कहीं अन्य स्थान पर नियुक्त होगा तो उसका खाना कौन बनाएगा। यदि मेरे पास रहेगा तो उसे इस विषय में कोई कठिनाई नहीं होगी। श्री गजराजसिंहजी ने मेरी बात मानते हुए दूसरे ही दिन रणवीरसिंह की नियुक्ति के आदेश जारी कर दिये। मैंने हार्दिक आभार जताया।

रणवीरसिंह की नियुक्ति से मुझे बड़ी प्रसन्नता हुई, परन्तु तभी ऐसा समाचार प्राप्त हुआ जिससे मैं दुःखी हो गया। छोटे भाई नटवरसिंह ने मुझे बिना पूछे ही नमक विभाग के इस्पेक्टर पद से त्यागपत्र देकर पुन: शिक्षा विभाग में अध्यापक के पद पर नियुक्त ले ली। उससे पत्र द्वारा कारण पूछा गया तो उसने लिखा कि नमक विभाग के इंस्पेक्टर पद पर दौरे बहुत करने पड़ते हैं, जो उसके वश की बात नहीं है। यह कारण एक बहाना मात्र था। राज्य में नमक केवल तीन स्थानों पर बनता था- डीडवाना, फलौदी और पचपदरा। ये तीनों स्थान रेलमार्ग से जुड़े हुए थे और यात्रा में किसी प्रकार की कठिनाई नहीं थी। नटवरसिंह बीएससी पास कर चुका था और अब एम.ए. और बी.एड. भी शिक्षा विभाग की नौकरी करते हुए ही पास करना चाहता था।

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