Tuesday 12 December 2017

व्यास ने किशनगढ़ के अपने चुनाव के समय घोषणा की थी कि वे जागीर प्रथा को समाप्त करेंगे।

मेरी जीवन-गाथा (39)
ठा. ओंकारसिंह, आई. ए. एस. (से. नि.)


व्यास ने किशनगढ़ के अपने चुनाव के समय घोषणा की थी कि वे जागीर प्रथा को समाप्त करेंगे।

व्यास ने किशनगढ़ के अपने चुनाव के समय बढ चढ कर घोषणाएँ की थी कि वे जागीर प्रथा को समाप्त करेंगे। इससे जागीरदारों में भय व्याप्त हो गया कि उनकी जागीरें छिन जायेंगी। वे कांग्रेस से समझौता करने का विचार करने लगे।
उधर कांग्रेस में फूट पड़ने लगी। व्यास अन्य मंत्रियों और कांग्रेस नेताओं को हर बात मानने को तैयार नहीं थे। वे नैतिक मूल्यों का हवाला देते थे। इससे कांग्रेस में उनके विरुद्ध षड़यंत्र होने लगे। इन षड़यंत्रकारियों में सबसे अधिक सक्रिय उन्हीं के प्रमुख साथी रहे मथुरादास माथुर थे।
परन्तु व्यास को देश के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का समर्थन प्राप्त था, अत: उनके विरोधी अपने उद्देश्य में सफल नहीं हो रहे थे। पं. नेहरू भारतीय देशी राज्य लोकपरिषद् के जब अध्यक्ष थे तब व्यास उस परिषद के महामंत्री रहे थे।



अब व्यास और अन्य कांग्रेसी नेताओं के बीच मतभेद बढ़ने लगा। स्थानान्तरण, नियुक्तियों आदि में कांग्रेस के नेताओं का हस्तक्षेप होने लगा। कांग्रेस के शीर्षस्थ नेता माणिक्यलाल वर्मा को एक विवाद के दौरान व्यास ने स्पष्ट कहा कि "आप शासन के काम में हस्तक्षेप न करें, कांग्रेस संगठन को भी केवल नीति निर्धारण करनी है और शासन चलाने का अधिकार मुख्यमंत्री का है।'


व्यास सदा नैतिकता की बात पर चलने का प्रयास करते थे परन्तु उनके द्वारा नियुक्त किये गये अपनी ही जाति के अधिकारी कई ऐसे काम करते थे जिनसे व्यास की बदनामी होने लगी। उन्होंने अपने सचिव के पद पर शिवराम पुरोहित को नियुक्त किया। पुरोहित जोधपुर राज्य की न्यायिक सेवा में थे परन्तु वहाँ से लम्बी छुट्टी लेकर बम्बई में व्यवसाय करने लगे, जब वे दो वर्ष तक नहीं लौटे तो उनकी सेवायें समाप्त कर दी गई। अब व्यास ने उन्हें बुलाकर पुनः नियुति दे दी और पुरानी सेवाओं का भी लाभ दे दिया। शिवराम के भाई मंशाराम पुरोहित को विधानसभा का सचिव नियुक्त कर दिया। इस काल में एक ऐसी घटना घटी जिसका प्रभाव व्यास पर भी पड़ा।

व्यास ने अपनी जाति के एक अधिकारी को सवाई मानसिंह अस्पताल में प्रशासनिक अधिकारी नियुक्त कर दिया। (शायद उसका नाम मांगीलाल पुरोहित था)। वह अस्पताल के वार्डों में घूमता रहता और नसों तथा महिला रोगियों से बातचीत करता रहता।

अस्पताल में एक पुलिस अधिकारी राजा अमरसिंह की धर्मपत्नी कॉटेज वार्ड में भर्ती थी। (अमरसिंह रतलाम के राज परिवार के थे और उनके पिता महाराजा रतलाम से मनमुटाव होने के कारण जयपुर में आकर बस गये थे।) मांगीलाल राजा अमरसिंह की धर्मपत्नी के वार्ड में बार-बार जाता और उनकी धर्मपत्नी के हाल-चाल पूछता। वे मुस्कराकर उत्तर दे देती, इससे मांगीलाल ने उनसे छेड़खानी करना शुरू किया।

एक बार जब मांगीलाल ने उनका हाथ पकड़कर दबाया तो महिला ने तकिये के नीचे से एक चाकू निकालकर मांगीलाल के मुँह पर मारा। इससे मांगीलाल का होठ कट गया और एक दाँत टूट गया। इस घटना का पता चलते ही अस्पताल में हड़बड़ी मच गई। घटना की सूचना नगर में भी पहुँच गयी और दूसरे ही दिन स्थानीय समाचारपत्रों में समाचार प्रकाशित हुआ।

व्यास को विवश होकर मांगीलाल को उसके पद से हटाना पड़ा, और उसके विरुद्ध जाँच का आदेश दे दिया गया। व्यास के विरोधी कांग्रेसी नेताओं ने आवाज उठाई कि मांगीलाल को बखास्त किया जाना चाहिए था और जाँच के बहाने उसे बचाने का प्रयास किया जा रहा है। इस घटना से व्यास की प्रतिष्ठा को बड़ा आघात लगा।

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