Monday 18 December 2017

जयपुर के अतीत "बनी" जंगल से बना है बनीपार्क ।

मेरी जीवन-गाथा (39)
ठा. ओंकारसिंह, आई. ए. एस. (से. नि.)


जयपुर के अतीत "बनी" जंगल से बना है बनीपार्क

मुझे जो कुछ रूपये कार की बिक्री और पिताश्री के देहान्त के बाद मिले उन्हें मैंने निवेश करने का विचार किया। कई मित्रों से विचार करके मैंने जयपुर नगर में भवन निर्माण हेतु प्लॉट खरीदना तय किया। मैंने जयपुर विकास न्यास के मंत्री से सम्पर्क किया तो उन्होंने बताया कि बहुत से राज्याधिकारी नगर में प्लॉट खरीद रहे हैं, और मंत्रीगण तो मुफ्त में प्लाट हथिया रहे हैं।
उन्होंने यह भी बताया कि प्लॉट सस्ते हैं, एक प्लाट सी-स्कीम में सेन्ट जेवियर स्कूल के सामने केवल साढ़े चार (4.50) रुपये प्रति गज की दर पर बिका है।
मुझे उन्होंने बनीपार्क क्षेत्र के कई प्लॉट बताये। इस क्षेत्र में पहले जंगल था जिसे 'बनी' कहते थे अत: इसका नाम 'बनी पार्क' पड़ा।

यह नगर की डी-स्कीम भी कहलाती थी। इसमें पहले-पहल जयपुर राज्य की सेना के अधिकारियों ने प्लॉट खरीदे। उन्हें केवल चार आने गज में ही बड़े-बड़े प्लाट मिल गये। मैंने जगदीश मार्ग पर 1000 वर्ग गज का प्लॉट चुना जो मुझे सवा रूपये गज की दर पर मिल गया।

एक बार मैं नगर विकास न्यास (अरबन इम्प्रूवमेन्ट ट्रस्ट) के मंत्री श्री महेशचन्द्र जोशी के कार्यालय में बैठा था तो देखा कि न्यास की कई योजनाओं की सड़कों का नामकरण ही नहीं हुआ था और एक इंजीनियर इस विषय पर चर्चा कर रहे थे तो मैंने एक छोटी सड़क का नाम 'दुर्गादास मार्ग' रखने का सुझाव दिया।
उन्होंने यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। कुछ दिन बाद देखा तो अशोक मार्ग से निकलने वाली इस सड़क के कोने पर पत्थर के पट्ट पर 'दुर्गादास मार्ग' लिखा हुआ था। यह देखकर मुझे बड़ी प्रसन्नता हुई, परन्तु कुछ काल पश्चात मैं अपने परिचित विष्णुदत्त शर्मा से मिलने गया जिनका मकान उसी छोटी सड़क पर था। श्री शर्मा चोपासनी स्कूल में पढ़े थे, जहाँ उनके पिता श्री रामप्रसाद शर्मा शिक्षक थे। इस बार देखा तो पत्थर के पट्ट पर 'दुर्गादास मार्ग' के स्थान पर 'दुर्गा मार्ग' ही लिखा हुआ था। बीच के शब्द 'दास' पर सफेदी पोत दी गयी थी।

मैंने शर्माजी से इस विषय में पूछा तो उन्होंने बताया कि उनके मकान के सामने ही जयपुर संभाग के कमिश्नर किशनपुरी ने बड़ा प्लॉट लिया है और उस पर भवन बन रहा है। पुरीजी ने ही पत्थर के पट्ट पर 'दास' शब्द पर सफेदी पुतवाई थी। इससे मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ।
पुरीजी मारवाड़ के रहने वाले थे, और वीर दुर्गादास मारवाड़ के ही प्रसिद्ध वीर और इतिहास-पुरुष थे, अत: मारवाड़ के एक मूल निवासी द्वारा दुर्गादास का नाम मिटाना एक घृणित कृत्य था।

पुरीजी ने यह कुकृत्य इसलिए किया होगा कि वे अपने आपको राजपूतों या किसी राजपूत इतिहास-पुरुष से संबंद्ध नहीं दिखना चाहते थे। वे अब कांग्रेस सत्ताधारियों को प्रसन्न रखने में ही अपना हित समझते थे।

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