Sunday 10 December 2017

उस दिन एक मत से कांग्रेस सरकार हार जाती, परन्तु विपक्ष के एक विधायक खेतसिंह (शेरगढ़, जोधपुर) ने व्यास मंत्रिमण्डल को बचा दिया।

मेरी जीवन-गाथा (39)
ठा. ओंकारसिंह, आई. ए. एस. (से. नि.)

उस दिन एक मत से कांग्रेस सरकार हार जाती, परन्तु विपक्ष के एक विधायक खेतसिंह (शेरगढ़, जोधपुर) ने व्यास मंत्रिमण्डल को बचा दिया।

जयनारायण व्यास ने 1 नवम्बर, 1952 को पुन: मुख्यमंत्री का पद संभाला। व्यास के मंत्रिमण्डल में टीकाराम पालीवाल, मोहनलाल सुखाड़िया, रामकरण जोशी, मास्टर भोलानाथ, रामकिशोर व्यास, भोगीलाल पंड्या, नाथूराम मिर्धा और अमृतलाल यादव मंत्री बने। श्री पालीवाल ने मुख्यमंत्री का पद छोड़ा था। अत: उन्हें उप-मुख्यमंत्री का पद दिया गया।

व्यास के साथी मथुरादास माथुर और कुम्भाराम आर्य को मंत्रिमण्डल में नहीं लिया गया, इससे कांग्रेस पार्टी में विवाद होने लगे और फूट के आसार हो गये। अप्रेल 1953 में पालीवाल, रामकिशोर व्यास और मिर्धा ने मंत्री पद से त्यागपत्र दे दिये। इस पर व्यासजी ने जाट नेता कुम्भाराम आर्य को मंत्रिमण्डल में ले लिया और चन्दनमल बैद और नरसिंह कछवाहा (जोधपुर) को उपमंत्री नियुत किया।

विधानसभा में विपक्ष के नेता बीकानेर के कुंवर जसवन्तसिंह तंवर चुने गये। विपक्ष में राजपूतों का बाहुल्य था और वे कांग्रेस की फूट का लाभ उठाना चाहते थे। उन्होंने सोच विचार कर विधानसभा से वाकआउट (बाहर चले जाने) की योजना इस उद्देश्य से बनाई कि विधानसभा में बैठे रहे कांग्रेसियों का अल्प मत स्पष्ट रूप से दिखाई देगा और कांग्रेस सरकार का पतन हो जाएगा।
उस दिन एक मत से कांग्रेस सरकार हार जाती, परन्तु विपक्ष के एक विधायक खेतसिंह (शेरगढ़, जोधपुर) ने व्यास मंत्रिमण्डल को बचा दिया। वे विधानसभा में ही बैठे रहे। खेतसिंह के इस कृत्य से विपक्ष विधायकों को बड़ा आघात लगा, खेतसिंह की निंदा होने लगी
गवर्मेन्ट हॉस्टल, जो विधायक निवास बन गया था, उसमे संध्या को डाइनिंग हॉल में विधायक भोजन करने के लिये एकत्रित हुए तब विपक्षी विधायक मेजर भाटी (इनका नाम याद नहीं है) एक कुसीं उठाकर खेतसिंह को गालियाँ देते हुए मारने को झपटे, परन्तु अन्य विधायकों ने बीच-बचाव किया और खेतसिंह को वहाँ से बाहर ले गये।

खेतसिंह की सर्वत्र निंदा होने लगी। इस संदर्भ में अलवर के प्रसिद्ध चारण कवि श्री अक्षयसिंह रत्नू, जो शासन सचिवालय में कार्यरत थे, ने खेतसिंह की निंदा में दोहे रचे, उनमें से दो यहाँ उद्धृत किये जाते हैं -
रुक्यो रह्यो रण खेत, औरां तजी असेम्ब्ली
हुयो विरोध्या हेत, क्षत्री सांचो खेत सी ।।
(औरों ने असेम्बली का त्याग कर दिया, परन्तु खेतसिंह रणक्षेत्र में डटा रहा। मैदान में डटे रहकर वह सच्चा क्षत्रिय सिद्ध हुआ, परन्तु विरोधियों के लाभ हेतु)

जिण जणणि जणियों, सखरो सुत सुल्ताण सो सुल्तानसिंह (खेतसिंह के बड़े भाई)
उणरे उपनियो, खांप लजानो खेत सी ।।
(जिस माता ने सुलतानसिंह सरीखा सुपुत्र जन्मा उसी माता के खेतसिंह जैसा खांप (देवराज) को लज्जित करने वाला पुत्र पैदा हुआ ।।

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