Thursday 28 December 2017

सनातन धर्म रक्षक काशीराज महाराज जयचन्द

सनातन धर्म रक्षक काशीराज महाराज जयचन्द:-

काशीराज महाराज जयचंद के यश को कम करने व कुछ देश द्रोहीयों के नाम छुपाने के लिये षड्यंत्र के तहत जयचन्द जी का नाम बदनाम किया गया ।।
निम्नलिखित इतिहासकारों ने ऐतिहासिक ग्रन्थों व सभी लेखकों को पढ़ने के बाद महाराज जयन्द जी पर अपनी राय दि है ।।


डा. आर. सी. मजूमदार का मत है कि इस कथन में कोई सत्यता नहीं है कि महाराज जयचन्द ने पृथ्वीराज पर आक्रमण करने के लिये मुहम्मद गौरी को आमंत्रित किया हो ( एन्सेंट इण्डिया पृ. 336 डाँ. R.C. मजूमदार ) । अपनी एक अन्य पुस्तक में इन्हीं विद्वान इतिहासकार ने निमंत्रण की बात का खण्डन किया है ।।

J. C. पोवल प्राइस महोदय का मत है कि यह बात आधारहीन है कि महाराज जयचन्द ने मोहम्मद गौरी को पृथ्वीराज पर आक्रमण करने के लिये आमंत्रित किया । ( हिस्ट्री आफ इण्डिया ) ।

डा. रामशंकर त्रिपाठी का कथन है कि जयचन्द पर यह आरोप गलत है । उन्होंने माना है कि समकालीन मुसलमान इतिहासकार इस बात पर पूर्णतया मौन है कि जयचन्द ने ऐसा कोई निमंत्रण भेजा हो ।

श्री महेन्द्रनाथ मिश्र जो कि एक अच्छे इतिहासकार है ने जयचन्द के विरुद्ध देश-द्रोहीता के आरोप को असत्य माना है । उनका कथन है कि यह धारणा कि मुसलमानों को पृथ्वीराज पर चढाई करने के लिये आमंत्रित किया निराधार हे । उस समय के कपितय ग्रन्थ प्राप्य है किन्तु किसी में भी इन बातों का उल्लेख नहीं है । वे ग्रन्थ पृथ्वीराज-विजय, हम्मीर महाकाव्य, रम्भा- मन्जरी तथा प्रबन्ध-कोश किसी भी मुसलमान यात्री ने इसका जिक्र नहीं किया है । इतिहास साक्षी है कि जयचन्द ने चन्दावर में मोहम्मद गौरी से शौर्यपूर्ण युद्ध किया था ।

इब्न नसीर कृत "कामिल-उत्-तवारीख" में भी स्पष्ट कहा गया है कि, यह बात नितान्त असत्य है कि जयचन्द ने शाहबुद्दीन को पृथ्वीराज पर आक्रमण करने के लिये आमंत्रित किया । शहाबुद्दीन अच्छी तराह जानता था कि जब तक उतर भारत के महाशक्तिशाली जयचन्द को परास्त न किया जाएगा तब तक उसका दिल्ली और अजमेर आदि भू-भाग पर किया गया अधिकार स्थाई न होगा क्योंकि जयचन्द के पूर्वजों ने और स्वयं जयचन्द ने तुर्कों से अनेकों बार मोर्चा लेकर हराया था ।

स्मिथ महोदय ने अपने ग्रन्थ अर्ली हिस्ट्री आफ इण्डिया में इस आरोप का उल्लेख नहीं किया है । पृथ्वीराज की तराईन के दुसरे युद्ध में हुई पराजय का दोष जयचन्द पर नहीं लगाया है ।

डा. राजबली पाण्डे ने अपनी पुस्तक प्राचीन भारत टिप्पणी में लिखा है "यह विश्वास कि गौरी को जयचन्द ने पृथ्वीराज के विरुद्ध निमन्त्रण दिया था,(डा. त्रिपाठी के अनुसार ) ठिक नही जान पङता क्योंकि मुसलमान लेखकों ने कहीं भी इसका जिक्र नहीं किया है ।

हिस्ट्री आफ कन्नौज- डा. त्रिपाठी । इसका अर्थ यह है कि डा. पाण्डे ने डा. त्रिपाठी के कथन को सत्य माना है । वे पूर्णतः सहमत है क्योंकि उन्होंने प्रतिवाद नहीं किया ।

3 comments

  1. उत्तर भारत में पहले तुर्क दिल्ली के तंवरो से या पश्चिम में अजमेरु के चौहानो से या अगर और नीचे से आते तो चितोड़ के गुहिलों से लड़ते ,,, इन सब के बाद कन्नौज के राठौड़ो से मुकाबला होता ,,, और एक बात जयचन्द और पृथ्वीराज दोनों के मामा दिल्ली के तंवर थे ,,, दोनों की माँ क्या सगी बहने थी ? ,,, और संयोगिता किस्सा मात्र परिकल्पना ! और काशी नरेश ये भी पहली बार सुना !!! जयचन्द को इन लांछनों से निकाले इतिहासकार और उनका व्यक्तित्व व राज काज सही व पूर्ण रूप से हिंदुस्थान के समक्ष रखे ! क्यू की इन्ही के वंसज राठौड़ो ने राजस्थान 65 % भू भाग और हिंदुस्तान के बहुत बड़े परिक्षेत्र पर हिंदूत्व राज कायम रखा और विदेसी अतुतायियो से लोहा लिया !!!

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  2. उत्तर भारत में पहले तुर्क दिल्ली के तंवरो से या पश्चिम में अजमेरु के चौहानो से या अगर और नीचे से आते तो चितोड़ के गुहिलों से लड़ते ,,, इन सब के बाद कन्नौज के राठौड़ो से मुकाबला होता ,,, और एक बात जयचन्द और पृथ्वीराज दोनों के मामा दिल्ली के तंवर थे ,,, दोनों की माँ क्या सगी बहने थी ? ,,, और संयोगिता किस्सा मात्र परिकल्पना ! और काशी नरेश ये भी पहली बार सुना !!! जयचन्द को इन लांछनों से निकाले इतिहासकार और उनका व्यक्तित्व व राज काज सही व पूर्ण रूप से हिंदुस्थान के समक्ष रखे ! क्यू की इन्ही के वंसज राठौड़ो ने राजस्थान 65 % भू भाग और हिंदुस्तान के बहुत बड़े परिक्षेत्र पर हिंदूत्व राज कायम रखा और विदेसी अतुतायियो से लोहा लिया !!!

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