Wednesday 19 October 2016

सनातन धर्म रक्षक राजा मानसिंह आमेर और गुजरात





4 जुलाई 1572 को राजा मानसिंह आमेर गुजरात कि तराफ बढे । उन्होंने अपने साथ चुनिन्दा फौज ली । गुजरात के रास्ते में जब सेना डीसा नामक नगर में पहुँची जो आबूरोड से थोड़ा दक्षिण में था, मानसिंह जी को यह ज्ञात हुआ कि शेरखां फौलादी के पुत्र, जिसका अहमदाबाद पर अधिकार था, इडर कि तरफ जा रहा था जो खेड ब्रह्मा ( दक्षिण पश्चिम में बीजापुर के पास ) से केवल दस मिल दूर था । इनके साथ इनका हरम और सेना भी थी ।


अकबर ने कुँवर मानसिंह को सजी-सजायी हुई से...ना देकर उनका पीछा करने के लिये भेजा । मानसिंह ने पुरे जोश के साथ उनका पीछा किया पर वे अपने साजोसामान को छोड़कर भाग गये । कुँवर मानसिंह लौटकर अपने शिविर में चले आये । जो गुजरात की प्राचीन राजधानी रही थी । 20 नवम्बर 1572 को अहमदाबाद को जीतकर वहाँ ठहरे थे । अहमदाबाद जीत से वह संतुष्ट नही हुवै । सुरत के बन्दरगाह पर कब्जा करने कि मंशा थी जहाँ विद्रोही अफगान सरदार आश्रय किये हुवे थे । जब सेनाएं अलग अलग दिशा में थी अकबर के दस्ते में 200 से ज्यादा सैनिक नही थे ।



सामने इब्राहिम हुसैन मिर्जा नदी के उस पार बङी सेना लेकर खङा था जब सिपाहियों ने यह सुना तो अकबर सेना का साहस ङगमङ करने लगा । महीदी नदी को पार करते समय कुँवर मानसिंह आमेर सेना के अग्र भाग में रहे जबकि अकबर डरा हुआ था कि उसके पास बेहद छोटी सी टुकङी है । महीदी नदी के तट प्रदेश में ही किला था दरवाजा नदी कि और था । जब इब्राहिम हुसैन मिर्जा को मालुम हुआ कि कुँवर मानसिंह कि सेना आगे है तो वह सरनाल से बाहर चला गया ।


कुँवर मानसिंह व राजा भगवन्तदास ने उसका पिछा किया एक ऐसी जगह दोनों सेनाओं का आमना सामना हुआ जहाँ रास्ता बङा तंग था दोनों तरफ झाड़ियां थी । तीन घुङसवार जहाँ मुश्किल से खङे हो सकते हो ।
मिर्जा के घुङसवारों ने हमला किया भगवन्तदास पर हमला किया जिसका उन्होंने बहुत अच्छा जवाब दिया ।
अंत में घुङसवारों को भागने पर विवश होना पङा । सेना पर बाण वर्षों हुई तो कुँवर मानसिंह ने अपना घोड़ा शत्रु दल के बिच कुदा दिया व झाड़ियों के बिच जाकर बङी विरता से उनकों खत्म किया । उमरा-ए-हनूद ने मानसिंह कि विरता कि प्रसंशा कि है ।


23 दिसम्बर 1572, को सरनाल की लङाई समाप्त हो गयी । इब्राहीम हुसैन मिर्जा युद्ध क्षेत्र से भाग गया था ।
इस युद्ध में विरता के लिये आमेर को सरनाल युद्ध के हरावल में रहने कि याद में ध्वज व नगारा विजय प्रतीक रुप में मिला ।।

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