Friday 7 August 2015

मेङतिया राठौङ !

मेड़तिया राठौङो  की 26 खापें और ठिकाने, मेड़तिया राठौङो की खापें और ठिकाने :-


जोधपुर के शासक जोधा के पुत्र दूदाजी के वंशज मेड़ता के नाम से मेड़तिया कहलाये, दूदाजी का जन्म जोधा की सोनगरी राणी चाम्पा के गर्भ से 15 जूं 1440 को हुआ !

दूदाजी  ने मेड़ता को विशेष आबाद किया, इसमें उनके भाई बरसिंह का भी साथ था ।
बरसिंह व दूदाजी जी ने सांख्लों (परमार ) से चौकड़ी, कोसाणा आदी जीते ।
बीकाजी द्वारा सारंगखां के विरुद्ध किये गये युद्ध में दूदाजी ने अद्भुत वीरता दिखाई ।
मल्लूखां ( सांभर का हाकिम ) ने जब मेड़ता पर अधिकार कर लिया था ।
दूदाजी, सांतल, सूजा, बरसिंह, बीसलपुर पहुंचे और मल्लूखां को पराजीत किया ।
मल्लूखां ने बरसिंह को अजमेर में जहर दे दिया जिससे बरसिंह की म्रत्यु हो गयी उनका पुत्र सीहा गद्धी पर बैठे और इसके बाद मेड़ता दूदाजी और सीहा में बंटकर आधा २ रह गया |

इसके बाद दूदाजी के पांच पुत्र वीरमदेव, रायमल, रायसल, रतनसिंह और पंचायण थे ।
मीराबाई रतन सिंह की पुत्री थी, रतनसिंह कूड़की ठिकाने के स्वामी थे ।

शरफुधीन ने 1563 ईस्वी में मेड़ता पर आक्रमण किया तब पंचायण इस युद्ध में मारे गए ।

दूदाजी के पुत्र वीरमदेव ईसवी 1515 में मेड़ता की गद्धी पर बैठे, इनका जन्म 19 नवम्बर 1477 को हुआ । वीरमदेव अपने समय के उद्भट योधा थे |
17 मार्च खानवा में बाबर व् सांगा के बीच हुए युद्ध में वीरमदेव ने राणा सांगा का साथ दिया, राणा सांगा की मूर्छित अवस्था के समय वे भी घायल थे । इस युद्ध में उनके भाई रायमल व् रतनसिंह भी मुगल सेना से लड़ते हुए वीरगति प्राप्त हुए ।

जोधपुर के राजा मालदेव मेड़ता पर अधिकार करना चाहते थे, वीरमदेव ने 1536 ईस्वी में अजमेर पर भी अधिकार कर लिया था । मालदेव ने अजमेर लेना चाहा पर वीरमदेव ने नहीं दिया तब मालदेव ने मेड़ता पर आक्रमण कर दिया । मालदेव का मेड़ता पर अधिकार हो गया । कुछ समय बाद मालदेव का अजमेर पर भी अधिकार हो गया ।
तब वीरमदेव रायमल अमरसर के पास चले गए | वीरमदेव आपने राज्य मेड़ता पर पुनः अधिकार करना चाहते थे अतः वीरमदेव रणथम्भोर की नवाब की मदद से शेरशाह के पास पहुँच गए । और मालदेव पर आक्रमण करने के लिए शेरशाह को तैयार किया |

बीकानेर के राव कल्याणमल भी मालदेव द्वारा बीकानेर छीन लेने के कारन मालदेव के विरुद्ध थे, उन्होंने भी शेरशाह का साथ दिया ।
शेरशाह को बड़ी सेना लेकर जोधपुर की तरह बढ़ा और विक्रमी संवत 1600 ईस्वी 1544 में अजमेर के पास सुमेल स्थान पर युद्ध हुआ । मालदेव पहले हि मैदान छोड़ चूका था । जैता और कुम्पा शेरशाह के सामने डटे रहे परन्तु मालदेव की सेना को पराजीत होना पड़ा । इस युद्ध के बाद वीरमदेव ने मेड़ता पर पुनः अधिकार कर लिया । वीरमदेव की म्रत्यु फाल्गुन विक्रमी संवत 1600 को हुयी |

इनके 10 पुत्र थे, 
१. जयमल 
२. ईशरदास 
३. करण 
४. जगमाल 
५. चांदा
६. बीका ( बीका के पुत्र बलू को बापरी  सोजत ) चार गाँवो से मिला 
७. प्रथ्वीराज ( इनके वंशज मेड़ता में रहे )
८. प्रतापसिंह 
9. सारंगदे 
१०. मांडण

१. जयमलोत मेड़तिया :-
वीरम दुदावत के पुत्र जयमल बड़े वीर थे, इनका जन्म 17 सिप्तम्बर 1507 को हुवा !

ई.स. 1544 ( विक्रमी 1600) में मेड़ता के स्वामी बने मालदेवजी जोधपुर ने मेड़ता पर आक्रमण किया परन्तु उन्हें पराजीत होना पड़ा, मालदेव मेड़ता छीनना चाहते थे, उन्होंने फिर ई. स. 1557 में मेड़ता पर आक्रमण किया और मेड़ता पर अधिकार कर लिया । उन्होंने आधा मेड़ता जयमल के भाई जगमाल को दे दिया ।

जयमल अकबर की सेवा में चले गए, और सहायता पाकर पुनः 1563 ई.वि. 1620 में मेड़ता पर अधिकार कर लिया |
इन्होने अकबर के विद्रोह सरफुधीन को शरण दी । अतः अकबर की सेना ने मेड़ता पर अधिकार कर लिया । जयमल उदयसिंह के पास चितोड़ चले गए |
उदयसिंह ने इनको बदनोर का ठिकाना प्रदान किया । अकबर ने मगसिर वदी 6 वि.1624 को चितोड़ का घेरा डाला । संकट की इन घड़ियों में उदयसिंह को भेजकर चितोद की रक्षा का भार आपने पर लिया । अकबर की सेना से लड़ते हुए यहीं इन्होने वीरगति प्राप्त की |

इन्ही प्रसिद्ध जयमल के सुरताण, केश्वदाश, गोयंददास, माधवदास, कल्याणदास, रामदास, विठलदास, मुकंद्दास, श्यामदास, नारायणदास, नरसिंहदास, द्वारकादास, हरिदास व शार्दुल 14 पुत्र थे । बहादुरसिंह बीदासर ने अनोपसिंह अनोपसिंह नामक ऐक और पुत्र भी लिखा है |

२. सुरतानोत मेड़तिया :-
वि.सं. 1624 में हुए चितोड़ के तीसरे शाके में जयमल वीरगति प्राप्त हुए । उनके बड़े पुत्र सुरताण महाराणा उदयसिंह की सेवा में उपश्थित हुए । बदनोर पर तो अकबर का अधिकार हो गया । अतः उदयसिंह ने सुरतान को गढ़बोर गाँव प्रदान किया । इसके बाद  सुरतान मेड़ता प्राप्त करने के लिए अकबर के पास जा रहे । उनकी सेवाओं से प्रसन्न होकर अकबर ने उन्हें मेड़ता दे दिया |
इन्ही सुरतान के वंशज सुरतानोत मेड़तिया कहलाये ।
सुरतान के दो पुत्र भोपत व् भाण उग्रसेन ( बांवाड़ा शासक ) के समय बाँसवाड़ा राज्य में चले गए तथा ऐक पुत्र हरिराम डूंगरपुर राज्य में जा रहे ।
मारवाड़ में सुर्तानोतों के लवणों ( २ गाँव ) गूलर( पांच गाँव ) रोहिणी ( चार गाँव ) बाजुवास( दो गाँव ) जावलो( तीन गाँव ) जालरो ( सात गाँव ) भटवरी (पांच गाँव ) इनके अलावा जझोलो, सील भखरी,किशनपुरा आदी ऐक -ऐक गाँव के ठिकाने थे |

३. केशवदासोत मेड़तिया :-
जयमल के पुत्र थे, अकबर ने इन्हें आधा मेड़ता दिया ।
वि.सं. 1655 में गोपालदास के साथ शाही सेना के साथ पक्ष में लड़ते हुए बीड़ की लड़ाई में काम आये ।
बाद में मेड़ता जोधपुर के सूरसिंह को दे दिया गया, यही से मेड़ता से मेद्तियों का राज समाप्त होता है ।

इन्ही केशवदास के वंशज केशव्दासोत को 22 गाँवो सहित केकिद मिला ।
केशवदास के दुसरे पुत्र गिरधरदास को परवतसर का पट्टा मिला, परवतसर के बाद में केशवदास मेड़तीयों का बदु तेरह गाँवो का ठिकाना था । इसके अतिरिक्त सबेलपुर ( ७ गाँव ) बोडावड(चार गाँव ) बुडसु (नो गाँव ) मडोली तथा बरनेल ,बणाग़नो ,चितावो,उंचेरियों,लाडोली ,कालवो( दो गाँव )आदी ऐक गाँव के ठिकाने थे |

४. अखेसिंहोत मेड़तिया :-
केशवदास के बाद क्रमशः- गिरधरदास, गदाधर, श्यामसिंह व् अखेसिंह हुए ।
इन्ही अखेसिंह के वंशज अखेसिंहोत मेड़तिया कहलाये ।
बुड़सु, खीदरपुर कुकडदो, तथा चाँवठिया इनके मुख्या ठिकाने थे, इनके अतिरिक्त टागलो, खोजावास, बीदयाद, डोडवाडो, जूसरियो, तोसीनो आदी छोटे -छोटे ठिकाने थे |

चिडालिया नागौर से दो भाई देवीसिंह व् डूंगरसिंह घोड़ों पर सवार हेदराबाद पहुंचे जिसमे की देवीसिंह वहीँ पर पिछड़ गए !
डूंगर सिंह ने अपनी वीरता से निजाम हेदराबाद को प्रसन्न किया निजाम ने उन्हें सर्फे खास व् नज्म की उपाधियाँ दी । १ हाथी 100 घोड़े और 100 सिपाही रखने की इजाजत दी ।
राठोड़ों का बेड़ा स्थापित करने की जगह दी । वर्तमान में डूंगर सिंह के ७ वें वंशज प्रेमसिंह प्रतिष्टित राठोड़ है |

५. अमरसिहोत मेड़तिया:-
अखेसिंह के बड़े पुत्र अमरसिंह के वंशज !
मैनाणा, इनके सात गाँवो का मुख्या ठिकाना था, इसके आलावा रोडू विरड़ा ( ६ गाँव ) तथा डासानो खुर्द व टांगलो ऐक ऐक गाँव के ठिकाने थे |

६. गोयंददासोत मेड़तिया :- 
वीरम के पुत्र जयमल के पुत्र गोयंददास के वंशज । 
भावतो ( 31 गाँवो ) का ठिकाना था, इनके हिस्से थे । इनके आलावा परगना मारोठ, परवतसर नागौर मेड़ता (कुछ गाँवो में ) के बहुत से गाँवो में इनकी जागीरी थी । 
गेड़ी (मेड़ता परगने के तीन गाँव ), सरनावड़ो (मेड़ता नागौर व् परवतसर परगनों के ६ गाँव ), डोभड़ी ( मेड़ता परगने के दो गाँव ), इटावा, लालो, इटावा खिंचिया, जसवंतपुरा, दुमोई बड़ी, दुमोई खुर्द, पालडी राजां, डोभड़ी, खुर्द, रामसियो, खुडी, रामसियो खुडी, राथीगाँव, नौरंगपूरा, भवाद, पोली, बेहडवो, झाड़ोद आदी ऐक ऐक गाँव के कई ठिकाने थे ।

खरेस आदी नाथसिंहोत के ठिकाने थे, गोयंददास के पुत्र नाथुसिंह के नाथूसिहोत है ।

७. रघुनाथसिहोत मेड़तिया :-
गोयन्द्दास के पुत्र सांवलदास के पुत्र रघुनाथसिंह थे, रघुनाथसिंह बड़े वीर थे । ओरंगजेब के समय में इन्होने 1715 वि.में गोड़ों से मारोठ का परगना छीन लिया । इनके वंशज  एंव रघुनाथसिहोत मेड़तिया कहलाये ।
मारोठ परगने में भावतो(13 गाँव ), घाटवो(11 गाँव ), नरोंणपूरा(15 गाँव ), नडवो(6गाँव ), वासा(७गाँव ), मगलानो गढ़ों(१० गाँव ), झिलियो(14 गाँव ), सरगोठ(13 गाँव ), कुकडवाली(५ गाँव ), लिचानो(५ गाँव ), जव्दी नगर(७ गाँव ), !
मीठड़ी(नावां ), परवतसर मारोठ नागौर व् मेड़ता तीनो परगनों के 15 गाँव, करोप (मेड़ता व् दौलतपुरा परगना के तीन गाँव ), खारठीयो(नावां परगना दो गाँव ), चालुखो(नागौर वा दौलतपुरा परगना के दो गाँव ), नीबी(दौलतपुरा व् नागोर परगना के ६ गाँव ), अलतवो(मेड़ता परगना के दो गाँव ), डोडीयानो(मेड़ता परगना के ६ गाँव ), पीपलाद(परबतसर परगने के ४ गाँव ), लापोलाई(मेड़ता वा परबतसर परगने के ३ गाँव ), भाद्लिया (मेड़ता, दौलतपुरा और परबतसर परगना के तीन गाँव ), आछोनाइ(मेड़ता परगना के तीन गाँव ), लूणवो(मारोठ परगने के ८ गाँव ), पांचवा(मारोठ परगने के 13 गाँव ), नीबोद (दौलतपुरा वा मारोठ परगने के तीन गाँव ) आदी इनके बड़े ठिकाने थे तथा ऐक गाँव वाले काफी ठिकाने थे |

८. श्यामसिहोत मेड़तिया :- 
जयमल के पुत्र गोयंददास के बाद क्रमशः सांवलदास व् श्यामसिंह हुए, इन्ही श्यामसिंह के वंशज श्यामसिहोत मेड़तिया कहलाये । शेखावाटी (राजस्थान ) के बगड़ और अव्गुणा गाँवो में निवास करते है । नागौर जिले में रेवासा , भूरणी व् नावा में है |

9. माधोदासोत मेड़तिया :-
जयमल के पुत्र माधोदास बड़े वीर थे । इहोने कई युद्धों में भाग लिया और वि.सं .1656 में मुगलों से लड़ते हुए काम आये । इन्ही के वंशज माधोदासोत मेड़तिया कहलाये ।
मेड़ता परगने में रीया इनका मुख्या ठिकाना था । इनके अलावा मेड़ता परगने में बीजाथल (तीन गाँव ), चीखरणीयो बड़ो  (२ गाँव ), चापारुण ( पांच गाँव ), आलणीयावास (चार गाँव ), बलोली ( २ गाँव ), चानणी बड़ी ( २ गाँव ), धीरड (दो गाँव ) तथा जाटी, मेडास, ईड्वो, धोलेराव, पोलास, गोडेतिया, नैणीयो, गोठडो, सुरियाल, भैसडो, कीतलसर, बिखरणीयो, भाडली,बुताटी, बलोली, चुई, डोभड़ी, बरसणु, लंगोड़, आदी ऐक ऐक गाँव के ठिकाने थे ।
बीकानेर राज्य में खारी माधोदासोतों का ऐक छोटा सा ठिकाना था, चूर जिले के भेंसली गाँव में भी रहते है |

१०. कल्याणदासोत मेड़तिया :-
जयमल के पुत्र कल्याणदास को सुरतान द्वारा रायण की जागीर मिली । मोटे राजा उदयसिंह की और से वि.1652 में खेरवा का पट्टा मिला । कालणा, बरकाना, कला रो बास आदी इनके ठिकाने थे |

११. बिशनदासोत मेड़तिया :-
कल्याणदास जयमलोत के पुत्र बिसनदास के वंशज बिशनदासोत मेड़तिया कहलाते है । बिशनदास अपने समय के प्रतिभा व्यक्ति थे । इनके मुख्य ठिकाने में खोडखास (५ गाँव )अमरपुर (दो गाँव )बोरुदो ( दो गाँव ) तथा तामडोली, बरनो, चोसली, जगड़बास, तिलानेस, मयापुर, चुवो, राजलियावास, मीदीयान आदी ऐक ऐक गाँव के ठिकाने थे |

१२.रामदासोत मेड़तिया :-
जयमल के पुत्र रामदास हल्दीघाटी के युद्ध (ई.1576) में वीरगति को प्राप्त हुए । इनके वंशज रामदासोत मेड़तिया कहलाये है । ये मवाद क्षेत्र में है |

13.बिट्ठलदासोत मेड़तिया :-
जयमल के पुत्र बिट्ठलदास के वंशज । नीबी खास इनका दो गाँवो का ठिकाना था । इनके आलावा लूणसरा, इग्योर  आदी मारवाड़ में इनके ठिकाने थे । 
बिट्ठलदास के पुत्र मनोहरदास मवाद में जाकर रहे । मेवाड़ में दांतड़ा इनका ठिकाना था |

14. मुकंददासोत मेड़तिया :-
जयमल के पुत्र मुकुंद्दास को जयमल के चितोड़ में 1624 वि.में वीरगति पाने पर उदयसिंह ने गढ़बोर की जागीरी दी और जब मुगलों का बदनोर से अधिकार हट गया तब इन्हें बदनोर का ठिकाना मिला । इन्ही के वंशज मुकुंद्दासोत मेड़तिया कहलाये । ये बड़े वीर थे । वि.सं .1663 में परवेज द्वारा मेड़ता पर आक्रमण के समय वे इसके विरुद्ध बहादुरी से लड़े और वीरगति प्राप्त की ।
मेवाड़ में बदनोर के आलावा उनके वंशज रूपहेली, डाबला, नीबाहेड़ा, जगपुरा आदी इनके ठिकाने थे |

15. नारायणदासोत मेड़तिया :- जयमल के पुत्र नारायणदास के वंशज |

16. द्वाराकदासोत मेड़तिया :- 
जयमल के पुत्र द्वारकादास अकबर की सेवा में रहे । वि.सं.1655 में वे शाही सेना की और से लड़ते हुए दक्षिण में बीद नामक स्थान पर काम आये । इन्ही के वंशज द्वारकादासोत मेड़तिया हुए । बछवारि इनका मुख्य ठिकाना था |

17. हरिदासोत मेड़तिया :- जयमल के पुत्र हरिदास के वंशज |

18. शार्दुलोत मेड़तिया :-
जयमल के पुत्र शादुर्ल के वंशज शार्दुलोत मेड़तिया कहलाये । मेवाड़ में धोली इनका ठिकाना था |

19. अनोप्सिहोत मेड़तिया :- जयमल के पुत्र अनोपसिंह के वंशज । चानोद इनका ठिकाना था|

२०. ईशरदासोत मेड़तिया :-
वीरम के पुत्र ईशरदास बड़े वीर थे । चितोड़ के युद्ध में वे जयमल के साथ थे । अकबर के मधु नामक हठी के खांडा मारकर उसका दांत पकड़ लिया था और युद्ध करते हुए काम आये । इन्ही के वंशज ईशरदासोत मेड़तिया कहलाये । इनके वंशजों के अधिकार में बीकावास, सुमेल, खरवो, आदी ठिकाने |

21.जगमलोत मेड़तिया :-
वीरम के पुत्र जगमाल मालदेव को सेवा में रहे । मालदेव ने जयमल से मेड़ता लेकर आधा भाग जगमाल को दे दिया । जयमल ने फिर मेड़ता पर अधिकार कर लिया । बादशाह अकबर ने मेड़ता फिर छीन लिया और जगमाल को दे दिया इन्ही जगमाल के वंशज जगमलोत मेड़तिया हुए ।
ड्सानो, बड़ो, घिरडोदो, जेसला, कुडली, छापरी बड़ी, राठील, दाउदसर, बनवासी, भांडासर, घिरडोदी, डडी, माना री ढाणि आदी इनके ठिकाने थे |

22. चांदावत मेड़तिया :-
वीरमदेव के पुत्र चांदा ने बाझाकुंडो की भूमि पर अधिकार कर वि.सं.1603 में बलुन्दा को आबाद किया । चांदा राव मालदेव की सेवा में रहे । मालदेव द्वारा मेड़ता पर आक्रमण करते समय चांदा उनके साथ में थे । मालदेव के भयभीत होने पर उन्होंने जोधपुर पहुँचाया ।
राव मालदेव ने उन्हें ऐक बार आसोप और रास का पट्टा भी दिया था । हुसेन कुलिखां द्वारा जोधपुर पर आक्रमण करने के समय चांदा चन्द्रसेन के पक्ष में लड़े । नागौर के सुबायत हुसेन अली से भी कई लड़ाइया लड़ी । नागौर के नवाब ने उन्हें धोखे से मारना चाहा । इस षड़यंत्र में चांदा तो मरे पर नवाब को भी साथ में लेकर मरे ।
बलुन्दा इनका मुख्या ठिकाना था, धनापो, दूदड़ास, सूदरी, कुडकी, डाभडो, खानड़ी, बडवालो, सेवरीयो, आजडाली, लाडपूरा, सुंथली, हासीयास, पूजीयास, लायी, मुगधडो, देसवाल, नौखा, नोवड़ी, ओलादण, गागुरडो, मागलियास, डोगरानो, अचाखेड़ो, रेवत, रोहल, छापर बड़ी, पीड़ीयो, रोहीना, बसी, सिराधनो, बाखलियाच, चिवली आदी ऐक ऐक गाँव के ठिकाने थे ।
मेवाड़ के शाहपुर राज्य में खामोर चांदावतों का ठिकाना था । ये बलुन्दा ठिकाने से शाहपुरा गए |

23. प्रताप्सिहोत मेड़तिया :-
वीरमदेव के पुत्र प्रतापसिंह महाराणा उदयसिंह चितोड़ के पास रहे । 1624 विक्रमी में अकबर ने चितोड़ पर आक्रमण किया । उस युद्ध में जयमल के साथ वीरगति हुए । इन्ही के वंशज प्रतापसिहोत मेड़तिया हुए ।
इनके तीन पुत्र गोपालदास, भगवानदास, हरिदास थे ।
गोपालदास ने हल्दी घाटी व् कुम्भलगढ़ के युद्ध्दों मे वीरता दिखाई अतः राणा ने इनको घानोराव का इलाका प्रदान किया |

24.गोपिनाथोत मेड़तिया :-
वीरमदेव के पुत्र प्रतापसिंह के बाद क्रमश गोपालदास, किशनदास, दुर्जनसाल व् गोपीनाथ हुए ।
पिता दुर्जनशाल के बड़े पुत्र होने के कारन इन्हें घानोराव प्राप्त हुआ । घानोराव ऐक छोटा सा राज्य था । गोपीनाथ ने जयसिंह व् उनके पुत्र अमरसिंह के बीच हुए मन मुटाव को मिटाया । महाराणा ने इनको खीमेल, नीपरड़ा, अरसीपूरा, राजपुरा, खारडा, टीपरी, वरकाणा आदी गाँव प्रदान किये |
इनके अतिरिक्त मारवाड़ में नादानो बड़ो (25 गाँव ) चानोद(21 गाँव ) कोसेलाव (४ गाँव ) बरकानो (८ गाँव ) फालनों (८ गाँव ) व् सिदरड़ी ऐक गाँव के ठिकाने थे |

25. मांडनोत मेड़तिया :-
वीरमजी के पुत्र मांडण सोलंकियों के विरुद्ध लड़ते बरहड़ा के युद्ध में मरे गए । इन्ही के वंशज मांडनोत मेड़तिया कहलाये |

26.रायमलोत मेड़तिया :- 
मेड़ता राव दूदा के पुत्र रायमल को वीरमदेव ने रायाण का पट्टा प्रदान किया । यह इनका मुख्य ठिकाना था । विक्रमी 1583 के खानवा युद्ध में महाराणा सांगा के पक्ष में आपने भाई वीरमदेव के साथ यह भी युद्ध में लड़े और वीरगति पायी |
इन्ही के वंशज रायमलोत मेड़तिया कहलाये । रायमल के ऐक पुत्र अर्जुन व् उसके भतिज रूपसी चितोद के तीसरे शाके के समय वि.सं.1624 में काम आये ।
रायाणा के अलावा ढावो, जोरोडो, पडो, जालू, बासणी, जाल, बारवलो, जनस्वास, देवालोमोसो, मीठड़ीया आदी इनके ठिकाने थे |

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