Wednesday 27 December 2017

कुँवर आयुवानसिंह हुडील स्मृति समारोह में श्रद्धेय महार साहब के उद्बोधन का अंश

कुँवर आयुवानसिंह हुडील स्मृति समारोह में श्रद्धेय महार साहब के उद्बोधन का अंश


उस व्यक्ति ने अपने जीवन में संघर्ष को चुना, गरीबी से लड़े, अज्ञान से लड़े और एक विचारधारा को खोजने का प्रयत्न किया । जिस रास्ते पर चलकर हम आगे बढ़ सकें, उस रास्ते को खोज करके, केवल खोजने से कुछ नहीं होता जब तक लोगों को उस रास्ते पर चलने के लिए प्रेरित न करें ।

पीढ़ियों से राजाओं के राज्य में, उनका अनुसरण करके जीने वाला राजपूत, अपने आपको भी नेता समझ सकता है यह बात लोगों के दिमाग के बाहर निकल गयी । उस जमाने में आयुवान सिंह जी ने एक शब्द का निर्माण किया 'भूस्वामी'।
आज जनता आपको जागीरदार समझती थी और हम भी अपने आपको जागीरदार समझते हैं । लेकिन जो हम यहाँ पर बैठे हैं उनमे सें एक भी राजाओं के राज्य में जागीरदार नहीं थे ।

जागीरदारों की केवल दो श्रेणियाँ थी एक ताजीमी और एक खास चौकी क़े जागीरदार, ये भोमिया छूटभाई, ये बाड़दार कोई भी जागीरदार की श्रेणी में नहीं थे । तो हमारे दिमाग में से यह निकल जाए की हम जागीरदार नहीं हैं और जनता के दिमाग से भी यह निकल जाए की हम जागीरदार हैं । इसलिए आयुवान सिंह जी ने एक शब्द(भूस्वामी) का अविष्कार किया, अब जमीन को जोतने वाले उसके मालिक हैं 'जागीरदार' । 
एक आंदोलन करके दिखाया एक टाइम में पचास हज़ार आदमी जेल में थे और उस आंदोलन में तीन लाख आदमी जेल में गए, एक भी जगह गोली नहीं चली, एक भी आदमी नहीं मरा ।
B G कामेडकर जैसा IG राजस्थान का, जो हिंदुस्तान के सर्वश्रेष्ठ IPS ऑफिसर्स में गिना जाता था उसने कहा मैं महाराष्ट cader का अफसर हूँ, आजादी के बड़े बड़े आंदोलन देखे हैं हमने गुजरात, महाराष्ट में (उस समय अंग्रेजों के राज्य में महाराष्ट और गुजरात एक ही प्रान्त था) लेकिन ऐसा व्यवस्थित और शान्ति पूर्ण वातावरण मैंने अपने जीवन में नहीं देखा ।
हमारा समाज चाहें अनपढ़ हो गया था, लेकिन जो परम्परा से उसके खून के अंदर अनुशासन था, वो रग रग में भरा हुआ था, उसी के कारण सें इतना बड़ा सफल आंदोलन हुआ, लेकिन इस शिक्षा ने हमारे सारे अनुशासन को खत्म कर दिया ।

शिक्षा में जितना गुण है उतना ही दोष है, हमने कभी इस बात को समझने की कोशिश नहीं की कि केवल शिक्षा के गुणों को हम ग्रहण करें और दोषों को छोड़े, हमने शिक्षा के गुणों को तो कम ग्रहण किया और शिक्षा के सारे दोषों को अपने माथे पर लाद लिया ।
आयुवान सिंह जी में योग्यता थी, अच्छे पत्रकार थे, एक अच्छे लेखक, एक अच्छे संगठनकर्ता, एक अच्छे नेता, ये सारे गुण एक आदमी के अंदर बहुत कम मिलते हैं लेकिन इससे भी एक बड़ा एक गुण था जिसकी तरफ हमने ध्यान नहीं दिया वो है आत्म-विश्वास ।

- कुँवर आयुवानसिंह हुडील स्मृति समारोह में श्रद्धेय महार साहब के उद्बोधन का अंश

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