Saturday 10 December 2016

राजा मानसिंह आमेर कि काबुल विजय कवियों की दृष्टि में |

राजा मानसिंह आमेर कि काबुल विजय कवियों की दृष्टि में |


दोहा:-

शिखा, सूत्र, यज्ञ, देव सह, रहता किम हिन्दूवान ।...
काबुल हद न पाङतो, कूरा राजा मान ।।

धरम, धरा, धन धापता, रहयो देश हिन्दवाण ।
काबुल हद पाङी जणां, मान हुयो ध्रम भारुण ।।
ऐ न हो तो हिन्द में, कछवाहो नृप मान ।
गरदिश में रहतो गर्क, आखो हिन्दुस्तान ।।

काबुल प्रस्थान करने से पूर्व वे अपनी माता से आशीर्वाद लेने व प्रणाम करने गये, तब माता ने स्पष्ट कहा कि
"जा तो रहे हो, परन्तु यह याद रखना कि मार्ग में अटक नदी है । उसको पार करने से हिचक न जाना । यदि शत्रु की प्रबलता देखकर रणांगण त्याग दिया, तो आकर मुझे मुख न दिखलाना"।
ऐसी वीरांगना जननी का क्षत्रियोंचित उद्बोधन पाकर उन्होंने काबुल विजय अभियान के लिए प्रस्थान किया । काव्य में माता के उद्बोधन के दोहों की चर्चा गर्व से की जाती है ।

दोहा :-

विनती अपने पुत्र की, माता लीज्यो जान ।
आज्ञा अकबर शाह की, काबुल चढि़या मान ।।
बीच अटक दरिया बाहै, जल की ना परनाम ।
जल में सेना न उतरै, (गर) लौटे अपना मान ।।
रघुकुल तिलक, ढूंढा़ङ रवि, चिरंजीव प्रिय भान ।
यवन दमन कर लेहु जस, रहियो जब लग भान ।।
रण में खड्ग चलाइया, कुल की ओर निहार ।
एक वार शत्रु करै, आरत हाहाकार ।।
सोच न करियो मौत को, माता तब बलि जाय ।
जो रण त्यागे शत्रु डर, मुख दिखलाजो नांय ।।

सनातन धर्म रक्षक राजा मानसिंह आमेर स्मृति समारोह
29 जनवरी 2017
श्री राजपूत सभा भवन जयपुर
दोपहर 1 बजे से ।।

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