Wednesday 12 October 2016

मिहिरभोज प्रतिहार

मिहिरभोज प्रतिहार

मिहिरभोज प्रतिहार (मूल अग्निवंश) वृहत भारत के प्रतापी शासक थे, इस वंश के शासन बाद के अन्य शासकों की चुनौती बाद के छोटे छोटे विभाजनों बाद प्रतिहार (परिहार) अलग-अलग स्थानों पर शासित अथवा विभाजित हो गए।

यह क्षत्रिय राज वंश, उस काल के श्रेष्ठ शक्तिशाली ऐश्वर्यशाली राजवंशों में गिना जाता था। बाद में प्रतिहार, परिहार, इंदा, इत्यादि के रुप में अपने अपने मूल पुरुषों के नेतृत्व में पश्चिम दक्षिणी राजपूताना गुजरात (सौराष्ट्र) एवं उत्तर, मध्य पूर्व भारत के विभिन्न भागों में छोटी बड़ी रियासतों के रुप में राज्य भोग करता रहा। राठौड़, सिसोदिया (गहलोत) कच्छवाहा वंश के राजपूताना, राजस्थान में आगमन एवं वर्चस्व से पूर्व संपूर्ण भारतवर्ष पर प्रतिहारों, सोलंकियों, चावड़ा इत्यादि विभिन्न वंशों का शक्तिशाली एवं वैभवशाली राज था।

राठौड़ों के कन्नोज से मारवाड़ (जोधपुर) की ओर आगमन के समय मारवाड़ के मंडोर (मंडोवर) नामक स्थान पर प्रतिहार (परिहार) वंश का राज था। जो मध्य पूर्व के मुस्लिम आक्रांताओं के दिल्ली सल्तनत पर काबिज होने बाद के, यहाँ मंडोर राज्य पर आक्रमणों एवं विभिन्न सैन्य पड़ावों के बाद कमजोर सा पड़ने लगा।
राव जोधा जी, जो कन्नोज के राठौड़ वंश से अपनें पूर्व पीढ़ी राव सिहा जी के यहाँ मारवाड़ के विभिन्न भागों पर काबिज शासन के शक्तिशाली उत्तराधिकारी थे ।

राव चुण्डा के समय प्रतिहार (परिहारों) नें वैवाहिक संबंध स्थापित करते हुए, अपनी पुत्री के साथ अपना राज्य मंडोर भी दहेज रुप में सौंप दिया।

कमधज कदे ना विसरे ईंदा रो उपकार ।
 चुण्डा चंवरी चाढ मण्डोर दिनी दायजे ।।

राव जोधा जी नें मारवाड़ राज्य का विस्तार करते हुए,
विशाल मेहरानगढ़ किला निर्मित करते हुए, जोधपुर रियासत का मुख्य स्थान बना मंडोर (मंडोवर) को अपनें राज्य की राजधानी रुप में स्थापित किया।
 मेहरानगढ़ दुर्ग मारवाड़ के राठौड़ शासन का मुख्य केन्द्र था जो वर्तमान में जोधपुर शहर के मुख्य केन्द्र में स्थित है, मंडोर उसके पास ही मेहरानगढ़ दुर्ग पहाड़ी की तलहटी में ही स्थित है।

राव जोधा जी नें प्रतिहार वंश की कुलदेवी चामुण्डा माता को भी अपनें राठौड़ वंश की ईष्ट देवी रुप ग्रहण करते हुए, मंडोर से इन्हें अपनें नव स्थापित मेहरानगढ़ के किले में स्थापित करवाया। जो वर्तमान में भी मेहरानगढ, जोधपुर दुर्ग के प्रसिद्ध मंदिर में विराजित हैं।
चामुंडाय माता को राठौड़ों द्वारा अपनें ईष्ट देवी रुप में ग्रहण के बाद, श्री गाजण माता को अपनें कुल देवी के रुप में ग्रहण किया। जो वर्तमान जोधपुर जिले के शेरगढ़ परगनें (शेरगढ़ विधानसभा क्षेत्र) में मंडोर के परिहार वंश की ही मुख्य शाखा रुप में इंदा वंश की इंदावटी (चौबीस गांवों के मुख्य केन्द्र) बेलवा नामक स्थान पर विराजमान है।

उक्त बेलवा गांव इंदाओं के मुखिया राणा जी के रुप में मान्य है।
जो बेलवा गांव से आज भी उक्त चौबीस गांवों के मुख्य प्रतिनिधि (मुखिया) के रुप में मान्य है।
एवं राणा जी के पदनाम की पारंपरिक उपाधि से सम्मानित है।

इतिहासविद मित्र बंधुओं से निवेदन है, कि उक्त इंदावटी (चौबीस गांवों के परगने) के मुख्य पाटवी स्थान, बेलवा गांव को मंडोर के पूर्व शासक परिहार वंश की इंदा शाखा के मुख्य केन्द्र स्थान में रखते हुए चामुंडाय माता के राठौड़ वंश द्वारा ग्रहण के बाद में गाजण माता को इस वंश की कुलदेवी रुप में मान्य एवं प्रतिष्ठित किया गया, तथा राणा जी इस इंदा शाखा के मुखिया रुप में पारंपरिक रुप से पद स्थापित एवं सम्मानित है।
तथा वे उक्त मंदिर के व्यवस्थापक एवं  सरंक्षक है।

जो परिहार वंश की मुख्य कुल देवी का स्थान होने से, उक्त ऐतिहासिक मंदिर का मारवाड़ के राठौड़ों की कुल देवी स्थल नागणैच्या मंदिर के जैसे ही विशाल एवं शानदार विस्तार होना चाहिए।
पूर्व के दशक में सदियों पुराना राठौड़ वंश की कुलदेवी का उक्त मंदिर भी पूर्व के नामी प्रतापी शासकों के प्रत्यक्ष राज्य में भी उपेक्षित ही था।

जो अब लोकतंत्र में जा, जोधपुर महाराजा के सरंक्षण में स्थापित एक पब्लिक ट्रस्ट द्वारा विस्तारित हुआ है।
जैसाकि अब लग रहा है, कि उक्त राठौड़ कुल देवी नागणैच्या माताजी के ऐतिहासिक मंदिर स्थल के विस्तार का कार्य नागाणा (बाड़मेर जिले, जोधपुर से सत्तर किलोमीटर दूरी) में अभी खूब लंबे समय तक वहां चलता ही रहेगा, ऐसी इस प्रकार से संभावना है।

 उसी प्रकार परिहार (प्रतिहार) वंश जैसे भारत के प्रतापी, वैभवशाली रहे क्षत्रिय वंश की कुलदेवी मंदिर रुप में गाजण माताजी के मंदिर का कार्य भी एक पब्लिक ट्रस्ट रुप में विस्तार देते हुए चलाया जाए।

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