Thursday 21 December 2017

गिरी - सुमेल ।

गिरी - सुमेल ।

आज फिर मैदान तैयार हो चुके है,
नन्हा सा बालक जगतसिंग अपनी माँ से पुछ बैठा.....
कुँवर सा युद्ध के लिये तैयार हो रहे है क्या ?


युद्ध का प्रयाय ये 4 साल कि नन्ही जान क्या जाने 
जो तलवार और ढाल को खिलौने से ज्यादा कुछ नही समझता ।

रगो मे रजपूती खुन है तो तलवार, ढाल, घोड़ा व युद्ध कि वेशभूषा के प्रति आकर्षण है ।
टप टप नन्हीं सी आँखें सब कुछ देख रही थी पिता का पत्थर हृदय भी पिघल आया और आज पहली बार अपने खुन को गोद में उठाने का विचार आया पर लोकलाज से डरकर कदम रोक लिये ।

कही कल कोई ये न कह दे बिकमसिंह के कर्त्तव्य पर ममता भारी पङ गयी ।
माजीसा ये सब देख रहे थे और समझ भी रहे थे पर क्षात्र धर्म कि रक्षार्थ विदा होते अपने पुत्र को कमजोर होते कोई भी क्षत्राणी नही देख सकती ।

समाचार पहुँचे चुके थे बलुन्दा गढ़ से..........     बलुन्दा कि सेना तैयार थी 
आज बलुन्दा राव मालदेव कि सेना कि और से युद्ध भूमि में उतरने वाला हैसामने शेरशाह सुरी व विरमदेव मेङता कि संयुक्त सेना है ।

आज बलुन्दा पर धर्मसंकट भारी है एक तरफ मेङता कि सेना है और दूसरी तरफ जौधपूर कि सेना सभी तराह के समझाने के प्रयास बहुत पहले ही खत्म हो चुके थे ।
एक तरफ राव मालदेव कि जीद्द थी और दूसरी तरफ विरमदेव मेङतिया !!
इनकी आपसी अनबन अब पुरानी हो चुकी थी और कई बार आपसी सेनाओं कि झङप भी ।

एक तरफ जौधपूर के राव होने का गुमान था तो दुसरी तरफ मेङतियों का स्वाभिमानपर बलुन्दागढ़ का धर्मसंकट भारी था आखिर फैसला हुआ शेरशाह सुरी के विरुद्ध मालदेव कि सेना कि तरफ से युद्ध करेंगे ।

बिकमसिंह ने अपने घोड़े पर जिन कसली थी !!
इन बड़े ठिकानों कि लङाईयों मे एक आम राजपूत का साथ उसकी तलवार देती है बस......

पिता इससे पहले मेङता कि तरफ से अजमेर अभियान मे रणखेत रहे थे !
और मेङता ने अजमेर विजय किया था ।
इनाम स्वरूप मिली थोड़ी सी जमीन ही जीविकोपार्जन का साधन थी ।

अब घर मे माजीसा पत्नी तेजकँवर व 4 साल कि नन्ही जान जगत सिंह है ।
विदा होते समय माजिसा ने अपने दूध कि व खून कि लाज रखने कि बात कहते हुवे मुंह फैर लिया ।

तेजकँवर झरोखे से यह सब देख रही थी 
और जगतसिंह बाहर खङा हो कर ये सब विचित्र क्षण ना समझते हुवे भी देखे जा रहा था ।


तेजकँवर जगतसिंह को तेजी अन्दर लेकर जाती है वह नही चाहती अपने पति पर कोई लांछन लगे । बिकमसिंह के कदम ना चाहते हुवे भी पिछे कि तरफ मुङ गये ।
(तभी मेरे मुंह से निकल पङे कुछ शब्द कितना कठिन है मेरा क्षात्र धर्म )

आगे वही सब हुआ जो हर एक राजपूत योद्धा के साथ होता था,
वही सब बाते हुयी जो हर युद्ध के बाद होती है ।

बिकमसिंह ने कोई सैकड़ों शत्रुओं को अपनी तलवार से काटा और रणखेत रहे ।
जैता और कुम्पा के साथ वह भी गिरी-सुमेल कि भूमि पर लङते हुवे काम आये ।




शेरशाह कि सेना दिल्ली लोट गयी ।
मालदेव का जौधपूर सुरक्षित हो गया इनके बलिदान से ।
विरमदेव जी को मेङता मिला ।
बिकमसिंह को पिता कि तराह विर-गति,
तेजकँवर बिकमसिंह के साथ परमधाम को गमन कर गयी ।

अब बचे है जगतसिंह और माजिसा जिनके लिये बलुन्दा से बुलावा आया,
है कि जगतसिंह को बलुन्दा सेना मे शामिल होना है !!

अब उन्हें एक गाँव मिला है आजीविका चलाने के लिये !

ऐसा है मेरा क्षात्र धर्म यहाँ ममता से बङा कर्त्तव्य है ।

आज लोकतंत्र मे जगतसिंह के वंशज राजा कहे जाते है,
और इसीलिए उनके साथ ये सरकार भेदभाव करती है ।

आज भी जगतसिंह के वंशज देश के लिये सिर देने को तैयार है,
पर संविधान मे सिर्फ हमारे साथ भेदभाव लिखा है ।

लेखन - बलवीर राठौड़ डढेल ।
प्रेरणा - आयुवानसिंह हुडील 
प्रेरणा पुस्तक - ममता और कर्त्तव्य ।

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