बिहारी द्वारा सनातन धर्म रक्षक राजा मानसिंह आमेर कि प्रशंसा |
हिन्दी साहित्य के मूर्धन्य कवी बिहारी द्वारा सनातन धर्म रक्षक राजा मानसिंह आमेर कि प्रशंसा |
बिहारी मिर्जा राजा जयसिंह जी के आश्रीत कवि थे |
प. लोकनाथ सिलाकारी की पुस्तक "बिहारी दर्शन" से यह छन्द जो कि बिहारी कृत है |
महाराज मानसिंह पूरब पठान मारे
सोणित की सरिता अजौं न सिमटत है ||
सुकवी विहारी अजौं उठत कबंध कूदी
अजु लगि रन ते सोही ना मिटत है ||
अजुलौं पिसाचन की चहलन तैं चौंकी चौंकी
सची मघवा की छतियाँ सो लिपटत है ||
आजु लगि ओढे़ं है कपाली आली आली खालें
आजु लगि काली मुख लाली ना मिटत है ||
हिन्दी साहित्य के मूर्धन्य कवी बिहारी द्वारा सनातन धर्म रक्षक राजा मानसिंह आमेर कि प्रशंसा |
बिहारी मिर्जा राजा जयसिंह जी के आश्रीत कवि थे |
प. लोकनाथ सिलाकारी की पुस्तक "बिहारी दर्शन" से यह छन्द जो कि बिहारी कृत है |
महाराज मानसिंह पूरब पठान मारे
सोणित की सरिता अजौं न सिमटत है ||
सुकवी विहारी अजौं उठत कबंध कूदी
अजु लगि रन ते सोही ना मिटत है ||
अजुलौं पिसाचन की चहलन तैं चौंकी चौंकी
सची मघवा की छतियाँ सो लिपटत है ||
आजु लगि ओढे़ं है कपाली आली आली खालें
आजु लगि काली मुख लाली ना मिटत है ||
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