Monday 24 October 2016

अकबर व मानसिंह के साथ रहने की मजबूरी




"राजा मानसिंह आमेर"
भूमिका- देवीसिंह महार साहब




पुस्तक के अध्याय सात के अंतिम भाग में लेखक ने मानसिंह के लिए लिखा है की इस समय इनकी भूमिका एक षड्यन्त्रकारी की हो गयी थी । मानसिंह के लिए यह टिप्पणी पूरी तरह अनुचित है, क्योकि वास्तविकता यह है की मानसिंह उस समय उसके विरोधी मुगल षड्यन्त्रकारियों के षड्यन्त्र में पूरी तरह फंस चुके थे । इतिहासकारों की यह धारणा पूरी तराह भ्रामक है की मानसिंह अकबर के प्रति पूर्ण वफादार थे व अकबर मानसिंह पर पूरा विश्वास करता था ।




वास्तविकता यह है की अकबर व मानसिंह दोनों अपनी अपनी मजबूरियों के कारण एक दूसरे के साथ रहने व एक दूसरे के प्रति पूर्ण विश्वास प्रकट करने के लिए बाध्य थे । अकबर यह ठीक प्रकार जानता था की बिना राजपूतों व मानसिंह जैसे सुयोग्य सेनापति के सहयोग के वह पठानों का दमन व अपने शासन को सुरक्षित करने में समर्थ नही था । दूसरी तरफ मानसिंह भी इस बात को ठीक प्रकार से जानते थे की अगर पठान व मुगल परिस्तिथियो के दबाव में एक हो जाते है तो सम्पूर्ण राजपूत शक्ति एकजुट होकर भी उनको परास्त करने में समर्थ नही थी । ऐसी स्थिति में उनको मिलने देने का परिणाम होता सम्पूर्ण भारत का इस्लामीकरण । विभिन्न अवसरों पर खट्टे-मीठे घूंट पीकर भी मानसिंह अकबर व जहांगीर के साथ बने रहे ।।


मानसिंह अपने विरोधी मुग़ल दरबारियो व सेनापतियों की गतिविधियों के प्रति पूर्ण सजग था । मुगल दरबार की गतिविधियों की सूचना उन्हें मिलती रहे, इसके लिये उन्होंने पूरी व्यवस्था की थी । प्रतिदिन आगरा से मुगल दरबार में हुई गतिविधियों की सुचना आमेर भेजी जाती थी । यहां का अधिकारी इनमे से जो भी महत्वपूर्ण सुचना होती उसे तुरन्त अपने राजा के पास, चाहे वह कहीं भी हो, भेजता था । यह व्यवस्था मुगल शासन के अन्त तक लगातार चलती रही ।


लेखक ने राजा मानसिंह के अजमेर जाने का कारण विश्राम, अच्छी जलवायु का होना व शहजादा सलीम की अकबर के प्रति नाराजगी को दूर करना लिखा है । जबकि वास्तविकता यह थी की मानसिंह इस बात की थाह लेना चाहते थे की उनके प्रति सलीम के मन में किस हद तक नफरत भर दी गई है । जब उन्होंने देखा की उसके ह्रदय में सिमा से अधिक नफरत है, तो उन्होंने सलीम को अपने साथ ले जाने का प्रयतन किया ताकि उसे षड्यन्त्रकारियों से दूर रखा जा सके, जिसमे एक बार उन्हें सफलता मिलती दिखाई दी, किन्तु बाद में सलीम ने अलाहाबाद से आगे जाने से इंकार कर दिया ।


यहां पर यह बात द्रष्टव्य है की मुगल दरबार के प्रमुख दरबारियो में से केवल दो ही लोग मानसिंह के हितचिंतक थे, पहला बीरबल, जिसकी मृत्यु उस समय हो चुकी थी, जब मानसिंह बिहार के गवर्नर थे, दुसरा अबुल फज्ल, जिसकी कुछ ही समय पूर्व सलीम ने हत्या करवा दी थी । इस हत्या के बाद एक तरफ अकबर के दरबार में कोई भी प्रमुख व्यक्ति मानसिंह का हितचिंतक नही रह गया था, दूसरी तरफ, अबुल फ़ज़्ल की हत्या के बाद मानसिंह सलीम पर किसी भी प्रकार का विश्वास करने की स्थिति में नही थे । इस तरह वह अपने विरोधी षड्यन्त्रकारियों के चंगुल में फंस चुके थे ।।


उपरोक्त परिस्थितियों में मानसिंह के मन में सलीम व मुगल शासन के प्रति उत्पत्र हुई कटुता को अकबर ठीक प्रकार से समझता था । इसलिए मानसिंह को शांत करने के उद्देश्य से ही उसने अपने जीवन के अंतिम काल में मानसिंह को सप्तहजारी मनसबदार बनाकर उनके प्रति सहानुभूति प्रकट करने की चेष्टा की थी । अकबर व सलिम के बिच ने कोई शत्रुता थी और न कोई न कोई दुरी । सलीम अपनी नाराजगी प्रकट कर मानसिंह के प्रभाव को अकबर द्वारा ही सिमित करवाना चाहता था । क्योकि मानसिंह के विरोधियो ने सलीम को यह पूरी तराह समझा दिया था की मानसिंह उसके लिए सबसे बड़ा खतरा है ।


यद्यपि लेखक ने कर्नल टाड के उस लेख पर में सन्देह व्यक्त किया है जिसमें उसने बूंदी के इतिहास के आधार पर यह लिखा है कि -- "अकबर ने मिठाई में जहर मिलाकर मानसिंह को देने का प्रयास किया था, किन्तु गलती से उस जहरीली मिठाई को अकबर स्वयं खा गया, परिणामस्वरूप वह रुग्ण होकर मृत्यु को प्राप्त हुआ ।" आमेर और जयपुर के हर व्यक्ति के मुँह पर टाड की लिखी यह कथा आज भी प्रचलित है जिसे अस्वीकार करना कठिन है । कारण भी स्पष्ट है की अकबर भी यह ठीक प्रकार से समझ गया था की अब मानसिंह व सलीम के बीच जो दूरियाँ कायम हो गई हैं, उनको मिटाना असम्भव है ।


अतः उसने मानसिंह को ही रास्ते में से ऐसे तरीके से हटाने का प्रयास किया, जिससे उसके सामन्तों व अन्य राजपूत राजाओ में असन्तोष व्याप्त नही हो, किन्तु वह अपनी योजना में इसलिए असफल हुआ कि स्वयं की ही गलती से जिस मिठाई से वह मानसिंह के प्राण लेना चाहता था, उस मिठाई को स्वयं खाकर रुग्ण होकर मर गया


सनातन धर्म रक्षक राजा मानसिंह आमेर स्मृति समारोह
29 जनवरी 2017 ।
रविवार, 1 बजे से ।।
श्री राजपूत सभा भवन जयपुर ।


निवेदक - इतिहास शुद्धिकरण अभियान ।।

10 comments

  1. बहुत उम्दा जानकारी, इतिहास की सच्चाई सामने आणि चाहिए

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  2. बहुत ही सराहनीय कार्य है लोगों के मन में फ़ेलि राजा मानसिंह जी प्रति ग़लत विचारधारा पर प्रभाव पड़ेगा ओर विचाराधारा बदलेगी

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